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Swami Vivekananda Biography in Hindi

Swami Vivekananda Biography in Hindi | स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | Swami Vivekananda No 1 biography pdf download

Swami Vivekananda Biography in Hindi | स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय। में आपको बायोग्राफी, शिक्षा, रामकृष्ण से भेंट, विवेकानंद का वैराग्य जीवन, अमेरिका यात्रा और शिकागो भाषन, पश्चिमी यात्रा के दौरान वेदान्त मठ की स्थापना करना फिर भारत को वापसी और अपना मठ का उत्तराधिकारी नियुकत कर महासमाधि में लिन ।

Table of Contents

Book Review

“विश्वगुरु विवेकानंद”  फिंगरप्रिंट प्रकाशक द्वारा प्रकाशित किया गया एक शानदार किताब! जिसके लेखक एम. आई. राजस्वी हैं। वैसे स्वामी विवेकानंद की बायोग्राफी तो बहुत सारे लेखकों द्वारा लिखी लिखी गई हैं लेकिन राजस्वी द्वारा लिखा गया इस किताब की खासियत ये है कि इसमें विश्वगुरु विवेकानंद की जीवन परिचय, प्रमुख यात्राएं , शिकांगों सहित चुनिंदा कुछ प्रमुख व्याख्यानों साथ-साथ अपने शिष्यों को लिखा गया पत्र और उनके मन-मस्तिष्क से उपजी , भावना रहित कुछ कविताएं भी शामिल हैं।  

मैने अपने पिछले ब्लॉग पोस्ट में एलन मस्क को पश्चिम का सूरज कहा था, अगर मैं विश्वगुरु स्वामी विवेकानंद को पूरब का सूरज कहूँ तो मुझे नहीं लगता कोई अतिशयोक्ति होंगी। जिसका जन्म सिर्फ और सिर्फ इसी उद्देश्य से हुआ कि आप ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को, खास कर पश्चिम के लोगों को( जिनका मन-मस्तिष्क अपनी छोली फैलाए, ज्ञान के लिए पूरब के तरफ आस लगाए बैठा है) उनके जीवन के मार्गदर्शन कर उचित दिशा दिखाए।

एक तरफ भारत पश्चिमी सभ्यता के पैरों तले रौंदा जा रहा था तो वही स्वामि विवेकानंद पश्चिम के लोगों का मार्गदर्शन कर उनकों सही दिशा में सही रास्ते पर लाने का काम कर रहे थे। भारत का परिचय दे रहे थे। ज्ञान की गंगा को उनकी छोटी सी झोली में उड़ेलते जा रहे थे। जिसके जवाब के सामने बड़े से बड़ा धर्म का ज्ञाता तनिक भी टिक नहीं पाता था।  

किसी धर्म गुरु ने कह दिया कि किसी भी धर्म के लोगों की तुलना में ईसाई धर्म के लोग आर्थिक रूप से बहुत मजबूत होते हैं। तब स्वामी विवेकानंद ने तुरंत जवाब दिया कि हाँ, सनातनियों को लूट कर। जो अभी भी जारी है। उस महापुरुष की जुबान पर एक भारी-भरकम ताला लग गया और महापुरुष तुरंत वहाँ से रफूचक्कर हो गए। तो ऐसे थे हमारे स्वामी विवेकानंद।

विश्वगुरु विवेकानंद एकमात्र ऐसे संत रहे हैं जिनके द्वारा स्थापित संघ आज भी निर्विवाद रूप से जन-कल्याण के व्रत का निर्वाह कर रहा है। यह पुस्तक ‘विश्वगुरु विवेकानंद’ ऐसे ही लघु मानव से महामानव और सामान्य सन्यासी से महासन्यासी बनने वाले विलक्षण व्यक्तित्व के दर्शन कराती है।   

Swami Vivekananda Biography in Hindi

प्रारम्भिक जीवन-.

नेन्द्रनाथ दत्त का जन्म 12 जनवरी 1863 को सुबह 6 बजकर 33 मिनट पर हुआ था। जिसके बाद माता भुनेश्वरी देवी और पिता विश्वनाथ दत्त खुशी से फुले नहीं समा रहे थे। तिजोरी में पड़े खजाने पिता द्वारा दास-दसियों को दोनों हाथों से लुटाए जाने जाने लगे। मुहल्लों में नगाड़ों की आवाज गुजने लगी। बधाइयों की बरसात हो गई।। जो कोई भी दरवाजे पर आता इस शुभ घटना से अपने को आनंदित होने से नहीं रोक पाता और विश्वनाथ दत्त उन सबका मुख मीठा कराए बिना नहीं जाने देते थे।

भुनेश्वरी के अराध्य शंकर जी के आशीर्वाद से जन्मे इस तेज को एक नाम दिया गया और विश्वनाथ दत्त विशेश्वर से ‘बिले’ पुकारने लगे। अन्नप्रास संस्कार के दौरान नाम रखने पर बिले ‘नरेन्द्रनाथ दत्त’ हो गए। नरेंद्र की बुध्दि प्रखर और तेज थी। आँख के सामने घटे हर एक घटना का बड़े ही उत्सुक देखते और चपलता से पिता से सवाल करते थे, जिसे पिता द्वारा जवाब नहीं दिए जाने पर उन्हे माता के पास भेज दिया जाता था।

रामकृष्ण से मुलाकात-

नरेंद्र की बढ़ती उम्र के साथ-साथ उनके जीवन में शिक्षा के मानक भी बढ़ते गए। एक दिन वह भी आया जब नरेंद्र को अपने गुरु से भेंट हुई। हुआ यू कि नरेंद्र अपने सखा सुरेन्द्रनाथ घोष के घर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में पहुचे हुए थे। अपनी माता के साथ भजन-कीर्तन में लगने के कारण नरेंद्र को भी भजन आते थे। सखा के कहने पर नरेंद्र ने बड़े ही विनम्रता से भजन सुनाया और जिस पर सबसे ज़्यादा प्रभाव पड़ा वो थे रामकृष्ण परमहंस।

नरेंद्र की मुलाकात गुरु से बहुत अद्भुत हुई। गुरुदेव अपने शिष्य के आभा को जान गए और ऐसे मंतमुग्ध हो गए जैसे उन्हे भगवान के दर्शन हुए हो। ये बात नरेंद्र को नहीं पची। उनका मानना था कि शिष्य की तलास गुरु को होती है नाकि गुरु को शिष्य की । गुरु ने कुछ नहीं कहा और मुसकुराते रहे। अपने निवास स्थान दक्षिणेश्वर आने का निमंत्रण देकर चलते बने।

एक दिन गुरुदेव नरेंद्र की तलास में पूजा-पाठ वाली जगह को पहुचे, जहां नरेंद्र पहले से ही मौजूद थे। उन सभी लोगों में से किसी ने भी गुरु के तरफ ध्यान नहीं दिया, नरेंद्र को यह अच्छा नहीं लगा, चुकी नरेंद्र गुरुदेव की शक्ति-ज्ञान से भली-भांति परिचित थे, अतः जब उनसे नहीं रहा गया तब हॉल की मेन लाइट काट कर गुरुदेव का हाथ पकड़ कर बाहर ले गए और गुरु के कहने पर दक्षिणेश्वर आने का वादा किया। 

अगले दिन जब उनकी मुलाकात गुरु से उनके स्थान पर हुई तो मिलते ही नरेंद्र ने गुरु से पूछा की क्या आपने भगवान को देखा है ? गुरु ने हाँ में जवाब दिया। और नरेंद्र के कहने पर अपने स्पर्श मात्र से गुरु ने छटा दिखाई, जिसके बाद नरेंद्र बदल गए। और अपने को आकाशगंगा में उपस्थित उन सप्त ॠषियों के गण की तरह देखने लगे।

पिता की मृत्यु और वैराग्य-

1884 से पिता की मृत्यु ने ठहरे पानी में ज्वार पैदा कर दी। ये समय ऐसा था कि नरेंद्र का जीवन बहुत उथल-पुथल हो गया। पिता द्वारा धन को इस प्रकार लुटाया गया कि घर में खाने को लाले पड़ गए। नरेंद्र ने अपने गुरु से इसकी उपाय मांगी। गुरु ने मंदिर में उपस्थित अपनी इष्ट देवी काली माँ से वो सारी चीजे मागने को कहा। लेकिन जब भी नरेंद्र मूर्ति के समक्ष जाते। धन-दौलत के जगह विद्या और वैराग्य मांग आते। ये गुरु जान कर बहुत प्रसन्न हुए आशीर्वाद दिया कि वो सभी चीजे मिलगे, जो जरूरत है। नरेंद्र ने गुरु के आशीर्वाद को ग्रहण किया।

धीरे-धीरे घर की स्थिति ठीक होने लगी और नरेंद्र की आस्था अपने गुरु में उतनी ही तेजी से बढ़ने लगा। गुरु से शिक्षा ग्रहण करने के बाद शहर में घूम-घूम कर भिक्षा मांगने की बारी आई, जिसमें नरेंद्र सबसे आगे थे। परीक्षा पूर्ण होने पर नरेंद्र और और गुरु भाइयों की भांति उन्हे भी एक नया नाम मिला स्वामी विदिशानन्द ।

विदिशानन्द और मठ का उत्तरदाईत्व-

15 अगस्त, 1886 को परमहंस रामकृष्ण अपनी सारी बागडोर स्वामी विदिशानन्द के हाथों में सौप कर हमेशा के लिए महासमाधी में लिन हो गए। स्वामी विदिशनन्द अपना उत्तरदाईत्व समझते हुए ईमानदारी से गुरु के कार्यभार को संभाला और मठ चलने लगा। अपना मठ संभालने के बाद स्वामी विदिशानन्द भारत भ्रमण पर निकले और एक से एक संतों से मिलते हुए हर उस राज्य के राजा के दरबार को अपना ज्ञान की गंगा से पवित्र किया, जिसमें राजस्थान, लखनऊ, महाराष्ट्र, गुजरात, मद्रास के निजाम भी शामिल हैं।

इसी दौरान उन्हे ज्ञात हुआ कि पश्चिम में एक सर्व धर्म सम्मेलन होने वाला है। स्वामी विदिशानन्द अपने गुरु रामकृष्ण और गुरुमाता के मार्गदर्शन पर अमेरिका जाने की घोषणा की। लेकिन जाने के लिए उनके पास पर्याप्त पैसा नहीं था। स्वामी जी मदद के लिए बहुत सारे रईसों का दरवाजा खुला वो भी भरे दिल से लेकिन स्वामी जी स्वीकार नहीं किया क्योंकि इस धर्म कार्य के लिए ये उचित नहीं था कि वो पैसे गरीबों से लुटा गया हो।

खेतड़ी के राजा से मुलाकात-

स्वामी जी ने जनता से ही चंदा रूपी पैसा इकट्ठा करना शुरू किया। 10 फरवरी, 1892 को स्वामी हैदराबाद पहुचे तो लोगों ने उनका खूब स्वागत किया। वहाँ के निजाम ने बहुत खूब सेवा-स्वागत किया। और जब उन्हे भी स्वामी जी के जाने का पता चला तो उन्हे भी धन की पेशकश की लेकिन स्वामी जी ने खुशी-खुशी मना कर दिया ।

कुछ दिनों बाद खेतड़ी के राजा अजित सिंह मद्रास घूमने आए थे। स्वामी जी के मुलाकात से वो बड़े प्रभावित हुए क्योंकि स्वामी जी के ही आशीर्वाद से उन्हे पुत्र की प्राप्ति हुई थी। स्वामी जी ओज से प्रभावित होकर उन्होंने एक नया नाम दिया। स्वामी विवेकानन्द। और महाराजा अजित सिंह ने पुत्र-प्राप्ति के भेट स्वरूप विवेकानन्द को अपने दीवान जगमोहन लाल के साथ  ढेर सारा पैसा और अमेरिका की टिकट के साथ मुंबई बंदरगाह को रवाना कर दिया।

31 मई, 1899 को बंबई बंदरगाह से भारतीय वेदान्त की ध्वजा लेकर स्वामी विवेकानन्द करोड़ों भारतीयों की आशाओं के साथ पनिन्सुलर स्टीमर में चढ़े तो उनके शुभचिंतकों और शिष्यों ने हर्षध्वनि के साथ उन्हे विदाई दी। स्वामी जी सिंगापूर, जापान, कनाडा होते हुए बैंकुवर के रेल मार्ग से अमेरिका पहुचे।

शिकागों में प्रवेश-

विवेकानंद ने अमेरिका के शहरों में कुछ दिन बिताया और अपने ज्ञान का प्रकाश वहाँ की गलियों मे फैलाते चले। जिनमें बहुत सारे अमेरिकी उनके शिष्य बनते गए। उन्ही शिष्यों में खास थे, मिस्टर राइट । विवेकानंद ने मिस्टर राइट को अपने अमेरिका आने का उद्देश्य बताया और जब उसका समय आ गया तो मिस्टर राइट ने शिकागो की टिकेत के साथ रेल में बैठा दिया। 9 सितंबर, 1893 को शिकागो पहुचे। 

मिस्टर राइट द्वारा दिया गया पता कहीं गुम हो गया। और स्वामी जी सड़कों पर भटकने लगे। तब एक फरिस्ता बन कर श्री माती जॉर्ज डब्ल्यू. हेल ने स्वामी जी के तरफ मदद का हाथ बताया और उन्हे पाने घर ले गई। स्वामी जी से सारा वाकया सुनने के बाद हेल ने बताया कि उनके पति उस सम्मेलन में हिस्सेदार है। जिसे जानकार स्वामी जी बहुत खुश हुए और मिस्टर हेल ने उस धर्म सम्मेलन के अध्यक्ष से मिलाया।

शिकागों में भाषण-

11 सितंबर, 1893 को अमेरिका के साथ-साथ भारत भी इस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। स्वामी जी थोड़े घबराए हुए थे। क्योंकि उनके जितने भी प्रतिद्वंदी थे, उनके पास अपना बनाया हुआ नोट्स था और सवामी जी खाली हाथ। भाषण देना आरंभ हुआ। एक के बाद एक धर्म अधिकारी देते चले गए। जब भी स्वामी जी का नंबर आटा वो टाल देते और दूसरे को भेजने के लिए कहते। आखिर वो भी समय आ गया जब मंच से स्वामी जी का नाम पुकारा गया।

स्वामी जी मंच पर पहुचे और थोड़ा-बहुत इधर-उधर देखने के बाद अपने वाक्य को कहना प्रारंभ किया…

“सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका…!” बस फिर क्या था, श्रोतागण के कानों में अभी इतने ही वाक्य पहुचे कि सभी खुशी और उन्माद से चिल्लाने लगे और सात मिनट तक पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँजता रहा।

स्वामी जी को थोड़ा उत्साह मिला और स्वामी जी निरंतर उन्माद के साथ बोलते रहे। जब तक स्वामी जी अपनी जुबान को विराम देते, पूरा हॉल और लगभग सभी धर्म-अधिकारी भी मंत्रमुग्ध हो चुके थे। अगली सुबह अमेरिका के चारों ओर सिर्फ और सिर्फ स्वामी जी की ही गूंज थी। सारे लोग स्वामी जी से मिलने को मतवाले हो गए। और विपक्ष हो गया अपने ही देश से आए हुए कुछ धर्म अधिकारी। और यहाँ के उपस्थित ईसाई वर्ग के पोप।

भिन्न देशों की यात्रा-

न्यूयार्क, पेरिस और लंदन में एक के बाद एक भाषण देने के बाद वहाँ के लोगों में हिन्दू धर्म को स्थापित कर, हिन्दू धर्म के दीपक को जला कर भारत को रवाना हो गए। श्री लंका होते हुए मद्रास पहुचे। लाखों भारतीय उनकी स्वागत को फूल-माला लिए खड़े रहे। और लोगों के अभिवादन को स्वीकार कर चेन्नई में एक भाषण दिया और फिर कोलकाता को लौट आए।

भारत वापसी-

कलकत्ता मे अपने घर-बार और शिष्यों से मिलने बाद 1, मई, 1897 को रामकृष्ण मिशन की स्थापना की गई। और अपने शिष्यों के साथ लोगों को जागृत करते हुए उत्तर भारत और फिर कलकत्ता को वापसी कर ली। मायावती में अद्वैत आश्रम की स्थापना कर दूसरी बार पश्चिम देशों की यात्रा पर निकल पड़े और न्यूयार्क को प्रस्थान किया।

स्वामी विवेकानंद यही नहीं रुके, सैन फ्रांसिस्को में वेदान्त समिति की भी सथापना किया। जिससे वहाँ के लोगों को जोड़ कर सही मार्ग दिखाया जा सके और उन्हे अंधेरे से प्रकाश की ओर लाया जा सके। न्यूयॉर्क में अंतिम कक्षा के बाद यूरोप को रवाना हुए। जिसमें वियना, हंगरी, ग्रीस, मिश्र, आदि देशों की यात्रा की। फिर भारत में 26 नवंबर, 1900 को वापसी किया।

महासमाधि में लिन-

10 जनवरी, 1901 को मायावती की यात्रा करने के बाद पूर्वी बंगाल और असम की यात्रा की। फिर उत्तर भारत में बोधगया और वाराणसी की यात्रा कर बैलूर मठ को वापस आए और कुछ दिन गुजारने के बाद विवेकानंद अपना कार्यभार अपने सबसे चहेते शिष्य प्रेमानन्द को मठ का उत्तराधिकारी बना कर   4 जुलाई, 1902 को महा समाधि में लिन हो गए।

यह भी पढे:-

  • एलन मस्क की बायोग्राफी पढ़ने के लिए अभी क्लिक करें।
  • लियोनार्डो द विंची का बायोग्राफी पढ़ने के लिए भाई क्लिक करें।

शिकांगों में दिया गया भाषण-

अमेरिकावासी बहनों और भाइयों!

आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया है, उसके लिए प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से परिपूर्ण हो रहा है। संसार में सन्यासियों की सबसे प्राचीन परंपरा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ, धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूँ और सभी संप्रदायों एवं मतों के कोटी-कोटी हिंदुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ।

मैं इस मंच से बोलने वाले उन कतिपय वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ, जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का उल्लेख करते समय यह बताया है कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रसारित करने के गौरव का दावा कर सकते  हैं। मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने का अनुभव करता हूँ, जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति- दोनों की ही शिक्षा दी है। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वाश नहीं करते, वरन समस्त धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार करते हैं।

मुझे एक ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभीमान है, जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों तथा शरणार्थियों को आश्रय प्रदान किया है। मुझे आपको यह बताते हुए गर्व का अनुभव होता है कि हमने अपने वक्ष में यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट अंश को स्थान दिया था, जिन्होंने दक्षिण भारत में आकर उसी वर्ष शरण ली थी, जिस वर्ष उनका पवित्र मंदिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल धूसित कर दिया गया था।

ऐसे धर्म का अनुयायी होने में मैं गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने महान जरथुस्त्रा जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा है।

भाइयों, मैं आप लोगों को एक स्तोत्र की कुछ पंकियाँ सुनाता हूँ, जिसकी आवृति मैं अपने वचन से कर रहा हूँ और जिसकी आवृति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं-

रुचिनां वैचित्र्य दृजुकुटिलनानापथजूषाम|

नृणामेको गम्यस्टवमसि पयसामर्णव इव||

अर्थात हे प्रभो! विभिन्न नदियां जिस प्रकार भिन्न-भिन्न स्त्रोतों से निकलकर समुद्र में समाहित हो जाती हैं, उसी प्रकार भिन्न-भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जाने वाले लोग अंत में तुझमें ही आकार मिल जाते हैं।          

सांप्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी वीभत्स वंशधर धर्माधता इस सुनदार  पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुकी है। ये पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुकी है। ये पृथ्वी को हिंसा से भारती रही है, बारम्बार मानवता के रक्त से नहाती रही है, सभ्यताओं का विध्वंश करती और पूरे-पूरे देशों को निराशा के गर्त में डालती रही है। यदि ये वीभत्स दानवाताएं न होती तो मानव समाज आज की अवस्था से कहीं अधिक उन्नत हो गया होता।

अब उनका अंत समय आआ गया है और मैं आंतरिक रूप से आशा करता हूँ कि आज सुबह इस सभा के सम्मान में जो घंटाध्वनि हुई है, वह समस्त धर्माधता का, तलवार या लेखनी के द्वारा होने वाले सभी उत्पीड़नों का तथा एक ही लक्ष्य की ओर  अग्रसर होने वाले मानवों की पारस्परिक कटुताओं का मृत्युनिनाद सिद्ध हो। 

यह भी पढ़ें:-

  • परमहंस योगनन्दा का बायोग्राफी पढ़ने के लिए बही क्लिक करें-
  • “ एवरेस्ट की बेटी” की बायोग्राफी पढ़ने के लिए अभी क्लिक करें।

चरित्र-चित्रण-

जिज्ञासु, प्रखर बुद्धि, दयालु, तार्किक मन और सोच-विचार, निर्भीकता, धार्मिक-प्रकृति, मुहफट, चरित्रवान, सत्यवादी और सज्जन । स्वामी विवेकानंद के अंदर इतने सारे गुण विद्यमान थे।

विवेकानंद के अनमोल विचार-

  • किसी मनुष्य के प्राण बचाना सबसे बड़ा धर्म है।
  • जब व्यक्ति कुछ करना चाहता है तो उसकी लगन और परिश्रम से अच्छे परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।
  • समाज में कुछ ऐसे लोग भी पाए जाते हैं,  जो अज्ञान के कारण किसी भी बात का बतंगण बना देते हैं।
  • शिक्षित युवा स्वतंत्र निर्णय लेने वाले होते हैं।
  • जीव पर दया नहीं, बल्कि शिवज्ञान से जीव की सेवा करों।   
  • अभी और भी बहुत सारे हैं लेकिन ज्यादा होने के कारण वो आपको दूसरे ब्लॉग पोस्ट में मिलेंगे।  

स्वामी विवेकानंद द्वारा लिखी गई कविता-

स्वामी विवेकानंद कौन थे.

स्वामी विवेकानंद भारत के ही नहीं बल्कि विश्व के आध्यात्मिक गुरु या नेता और समाज सुधारक थे।

स्वामी विवेकानंद का जन्म कब हुआ था?

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में हुआ था।

स्वामी विवेकानंद के गुरु का क्या नाम था?

स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस, जो माता काली के परम भक्त थे।

स्वामी विवेकानन्द ने शिकागों में भाषण कब दिया दिया था?

स्वामी विवेकानंद ने शिकागो शहर में अपना पहला भाषण 18 सितंबर, 1893 को विश्व धर्म सम्मेलन में दिया था। 

स्वामी विवेकानंद को अमेरिका जाने में किसने मदद की थी?    

स्वामी विवेकानंद को विश्व धर्म सम्मेलन में अमेरिका जाने के लिए खेतड़ी नरेश राजा अजित सिंह ने मदद की थी।

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Book का नाम- स्वामी विवेकानंद की जीवनी (vigyan bhairav tantra pdf)
book लेखक का नाम- रोमा रोलां ( Romain Rolland )
प्रकाशक का नाम- सूपर फाइन प्रिंटर्स, इलाहाबाद

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स्वामी विवेकानंद की जीवनी Swami Vivekananda Biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद की जीवनी Swami Vivekananda Biography in Hindi

इस लेख में आप स्वामी विवेकानंद की जीवनी Swami Vivekananda Biography in Hindi पढ़ेंगे। जिसमें आप उनका जन्म, प्रारम्भिक जीवन, शिक्षा, महान कार्य तथा मृत्यु के विषय में पढ़ेंगे।

स्वामी विवेकानंद एक महान हिन्दू सन्यासी थे जो श्री रामकृष्ण के प्रत्यक्ष शिष्य थे। उन्हें भगवान का रूप माना जाता है। विवेकनद जी का भारतीय योग और पश्चिम में वेदांत दर्शन के ज्ञान को बांटने का बहुत ही अहम योगदान है। वर्ष 1893 में उन्होंने शिकागो में विश्व धर्म संसद के उद्घाटन में एक बहुत ही शक्तिशाली भाषण दिया जिसमें उन्होंने विश्व के सभी धर्मों में एकता का मुद्दा उठाया।

Table of Content

विवेकानंद ने पारंपरिक ध्यान का दर्शन दिलाया और निस्वार्थ सेवा को समझाया जिसे कर्म योग कहा जाता है। विवेकनद ने भारतीय महिलाओं के लिए मुक्ति और बुरे और बुरे जाती व्यवस्था को अंत करने का वकालत किया।

भारतीय लोगों और भारत देश का आत्मविश्वास बढाने में उनका बहुत ही अहम हाथ रहा और बाद मैं बहुत सारे राष्ट्रवादी नेताओं ने यह भी बताया की वे विवेकनद जी के सुविचारों और व्यक्तित्व से बहुत ही प्रेरित थे।

विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन Early life of Vivekananda in Hindi

स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 कलकत्ता, बंगाल, ब्रिटिश भारत मैं एक परम्परानिष्ठ हिन्दू परिवार में हुआ था। उनका असली नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। एक बच्चे के रूप में भी विवेकानंद में असीम उर्जा था और वह जीवन के कई पहलुओं से मोहित हो गए थे।

उन्होंने इश्वर चन्द्र विद्यासागर मेट्रोपोलीटैंट इंस्टीट्यूशन से अपनी पश्चिमी शिक्षा प्राप्त की। पढाई में वह अच्छी तरह से पश्चिमी और पूर्वी दर्शनशास्त्र में निपुण हो गये। उनके शिक्षक यह टिप्पणी किया करते थे की विवेकानंद में एक विलक्षण स्मृति और जबरदस्त बौद्धिक क्षमता थी।

स्वामी विवेकानंद बहुत बुद्धिमान थे और वे पूर्व – पश्चिमी दोनों प्रकार के साहित्य में निपूर्ण थे। विवेकानंद विशेष रूप से पश्चिम के तर्कसंगत तरीके को पसंद करते थे जिसके कारण धार्मिक अंधविश्वासियों को निराशा भी हुई। इस चीज के कारण स्वामी विवेकानंद ब्राह्मो समाज से जुड़े।

ब्राह्मो समाज एक आधुनिक हिन्दू अन्दोलत था जिसमें उससे जुड़े लोगों ने भारतीय समाज और जीवन को पुनर्जीवित करने की मांग की और अध्यात्मिक ज्ञान को बढ़ावा दिया। उन्होंने चित्र और मूर्ति पूजा जा विरोध किया।

हालाकिं ब्राह्मो समाज की समजदारी विवेकानंद को उतना आध्यात्मिकता नहीं दे सका। बहुत ही छोटी उम्र से हीउनके जीवन में अध्यात्मिक अनुभवों की शुरुवात हो गयी थी और 18 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने मन में “भगवान के दर्शन” पाने का एक भारी इच्छा बना लिया था।

श्री रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद Ramakrishna Paramahansa and Swami Vivekananda

शुरुवात में कई बातों में रामकृष्ण परमहंस जी के विचार विवेकनंद से अलग थे। रामकृष्ण परमहंस जी एक अशिक्षित और साधारण ग्रामीण व्यक्ति थे जिन्होंने एक स्थानीय काली मंदिर में एक पद को लिया और वहां रहते थे तब भी उनके साधारण रूप में भी एक अत्याधुनिक अध्यात्मिक तेज़ दीखता था।

वे अपने मंदिर के माता काली के समक्ष तीव्र साधना करते थे और रामकृष्ण जी ने ना सिर्फ हिन्दू रसम रिवाज़ का पालन किया बल्कि सभी मुख्य धर्मों के आध्यात्मिक पथ को भी अपनाया। उनका यह मानना था कि सभी धर्मों का एक ही लक्ष्य है वो है एकता के साथ अनंत की खोज।

विवेकानंद के अध्यात्मिक शक्ति के विषय में रामकृष्ण को जल्द यह पता चल गया और जल्द ही उनका ध्यान विवेकानंद के ऊपर हुआ जो पहले रामकृष्ण के विचारों को सही तरीके से समझ नहीं पाते थे। विवेकानंद शुरुवात में रामकृष्ण के विचारों का विश्वास भी नहीं करते थे और उनके उपदेशों को बार-बार पूछते थे और उनकी शिक्षा के प्रति बहस भी करते थे।

हलाकि बाद में श्री रामकृष्ण परमहंस जी के सकारात्मक विचारों ने विवेकानंद के हृदय को पिघला दिया और वो भी रामकृष्ण से उत्पन्न होने वाले वास्तविक आध्यात्मिकता का अनुभव करने लगे। लगभग 5वर्षों के अवधि के लिए, विवेकनद को सीधे मास्टर श्री रामकृष्ण जी से सिखने का मौका मिला। उनसे शिक्षा लेने के बाद स्वामी विवेकानंद को चेतना और समाधी के गहरे स्थिति का अनुभव हुआ।

विवेकानंद ने अपने गुरु से जीवन भर इस प्रकार के निर्वाण के परमानंद का अनुभव प्रदान करने के लिए पुछा। परन्तु श्री रामकृष्ण का उत्तर आया – मेरे लड़के, मुझे लगता है तुम्हारा जन्म कुछ बहुत बड़ा ही करने के लिए हुआ है।

रामकृष्ण के मृत्यु के बाद, अन्य शिष्यों ने विवेकानंद को उनका नेतृत्व करने के लिए कहा ताकि वे भी रामकृष्ण जी के अध्यात्मिक  विचारों से अवगत हो सकें। हलाकि विवेकानंद के लिए व्यक्तिगत मुक्ति काफी नहीं था उनका ध्यान तो गरीब, भूखे लोगों की और था। विवेकानंद जी का कहना था मात्र मानवता से ही इश्वर या भगवान् को पाया जा सकता है।

कई वर्षों के तप और ध्यान के पश्चात् स्वामी विवेकानंद ने भारत के कई पवित्र स्थानों का भ्रमण करना शुरू कर दिया। उसके बाद वे अमेरिका – विश्व धर्म संसद, सन्यासी का भेस धारण कर गेरुआ वस्त्र पहन कर गए।

विश्व धर्म संसद में विवेकानंद का भाषण Vivekananda Speech– World Parliament of Religions.

स्वामी विवेकानंद ने साल 1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद के उद्घाटन में एक बहुत ही शक्तिशाली भाषण दिया जिसमें उन्होंने विश्व के सभी धर्मों में एकता का मुद्दा उठाया।

उद्घाटन समारोह में विवेकानंद आखरी के कुछ भाषण देने वालों में से एक थे।  उनसे पहले भाषण देने वाले व्यक्ति ने अपने स्वयं के धर्म का अच्छाई और विशेष चीजों के बारे में बताया परन्तु स्वामी विवेकानंद ने सभी दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा कि उनका दृष्टिकोण मात्र  इश्वर के समक्ष सभी धर्मों की एकता है।

. ( see Speech to Parliament )

उन्होंने अपना भाषण कुछ इन शब्दों में शुरू किया –

Sisters and Brothers of America, It fills my heart with joy unspeakable to rise in response to the warm and cordial welcome which you have given us. I thank you in the name of the most ancient order of monks in the world; . . .

स्वामी विवेकानंद हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व करने के लिए चीन गए थे। लेकिन विवेकानंद ने अपने धर्म को बड़ा और अच्छा दिखाने का कोई कोशिश नहीं किया बल्कि उन्होंने वहां विश्व धर्म सद्भाव और मानवता के प्रति आध्यात्मिकता भाव को व्यक्त किया।

The New York Herald ने विवेकानंद के विषय में कहा –

He is undoubtedly the greatest figure in the Parliament of Religions. After hearing him we feel how foolish it is to send missionaries to this learned nation. निश्चित रूप से वो धर्म संसद में सबसे ज़बरदस्त व्यक्ति थे। उन्हें सुनने के बाद हम यह एहसास कर सकते हैं कि यह कितना मुर्खता है की हम अपने धर्म-प्रचारक इतने शिक्षित देश में भेजते हैं।

अमरीका में विवेकानंद ने अपने कुछ करीबी शिष्यों को ट्रेनिंग भी देना शुरू किया ताकि वे वेदांत की शिक्षाओं का प्रचार कर सकें। उन्होंने अपने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अमरीका और ब्रिटेन दोनों जगह छोटे सेंटर शुरू कर दिए। विवेकानंद को ब्रिटेन में भी कुछ ऐसे लोग मिले जो वेदांत की शिक्षा को लेने में इच्छुक हुए।

मिस मार्गरेट नोबल उन्ही में से एक ध्यान देने वाला नाम था जिसका नाम बाद में मिस निवेदिता पड़ा। वह आयरलैंड की रहनेवाली थी जो विवेकनद की एक शिष्या थी। उन्होंने आपना पूरा जीवन भारतीय लोगो के लिए समर्पण कर दिया। पश्चिमी देशों में कुछ वर्ष समय बिताने के बाद विवेकानंद भारत वापस आगए। सभी लोगों ने उनका उत्साहपूर्ण स्वागत किया।

भारत लौटने के बाद स्वामी विवेकानंद ने भारत में अपने मठों का पुनर्गठन किया और अपने वेदान्तिक सिधान्तों के सच्चाई का उपदेश देना शुरू कर दिया। उन्होंने निःस्वार्थ सेवा के फायदों के बारे में भी बताया।

मृत्यु Death

4 जुलाई , 1902, बेलूर, भारत में 39 वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद निधन हो गया। पर अपने इस जीवन के छोटे अवधि में भी वो बहुत कुछ सिखा कर गए जो आज तक पूरे विश्व को याद है। इसी कारण स्वामी विवेकानंद जी को आधुनिक भारत के संरक्षक संत का नाम दिया गया।

4 thoughts on “स्वामी विवेकानंद की जीवनी Swami Vivekananda Biography in Hindi”

He is real hero of world

Yes he Is a real hero of world

very nice, bhut hi badiya trike se btaya aapne thanks

You have written a very good article. You have given very interesting information about Swami Vivekananda. Here you have explained all the facts very beautifully.

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Swami Vivekananda biography in Hindi PDF{स्वामी विवेकानन्द की जीवनी हिंदी में PDF}

इस लेख Swami Vivekananda biography in Hindi के माध्यम से स्वामी विवेकानंद के जन्म , शिक्षा , मृत्यु , स्वामी वेवकानद जी का भ्रमण , स्वामी विवेकानन्द की श्री रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात और उनके ऐतिहासिक कार्यो को बताया गया जिससे उनके बचपन से लेकर मृत्यु तक सभी महत्वपूर्ण तथ्य के बारे में हम विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं शुरू उनके बचपन से करते हैं क्युकी उनके बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था।स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता, विश्वनाथ दत्त, कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक प्रसिद्ध वकील थे। नरेंद्र के दादा दुर्गाचरण दत्त संस्कृत और फ़ारसी के विद्वान थे। 25 वर्ष की आयु में नरेंद्र ने अपना परिवार छोड़ दिया और साधु बन गये। उनकी मां, भुवनेश्वरी देवी, दृढ़ धार्मिक विश्वास वाली एक धर्मनिष्ठ महिला थीं, जो मुख्य रूप से भगवान शिव की पूजा के प्रति समर्पित थीं। नरेंद्र के पिता और उनके परिवार की प्रगतिशील और बौद्धिक मानसिकता ने उनके विचारों और व्यक्तित्व को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

Swami Vivekananda biography in Hindi

Swami Vivekananda Biography in Hindi

स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनका पूरा नाम नरेंद्र नाथ विश्वनाथ दत्त था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। उनके 9 भाई-बहन थे और घर पर वे सभी उन्हें नरेंद्र कहकर बुलाते थे।

स्वामी विवेकानन्द के पिता कोलकाता उच्च न्यायालय के एक प्रसिद्ध और सफल वकील थे, जो अंग्रेजी और फ़ारसी दोनों भाषाओं में अपनी विशेषज्ञता के लिए जाने जाते थे। स्वामी विवेकानन्द की माँ एक धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं जिन्हें रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों की अच्छी समझ थी। वह एक प्रतिभाशाली और बुद्धिमान महिला भी थीं जिन्हें अंग्रेजी भाषा का ज्ञान था। अपने माता-पिता के पालन-पोषण और दिए गए मूल्यों की बदौलत स्वामी विवेकानन्द ने अपने जीवन में उच्च स्तर की सोच विकसित की। उनका मानना ​​था, “अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए तब तक प्रयास करते रहें जब तक आप उन्हें प्राप्त नहीं कर लेते।

  • 1871 में नरेंद्र नाथ को ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मार्गदर्शन में मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूशन में भर्ती कराया गया।
  • 1877 में कुछ कारणों से नरेंद्र नाथ के परिवार को रायपुर आना पड़ा। इस कदम से तीसरी कक्षा में उनकी पढ़ाई में बाधा उत्पन्न हुई।
  • 1879 में, अपने परिवार के कोलकाता लौटने के बाद, नरेंद्र नाथ ने प्रेसीडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में पहला स्थान हासिल किये |
  • नरेंद्र जी हमेशा पारंपरिक भारतीय संगीत में निपुण थे, शारीरिक व्यायाम, खेल और सभी प्रकार की गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल होते थे। उन्हें वेद, उपनिषद, भगवद गीता, रामायण, महाभारत और पुराण जैसे हिंदू धार्मिक ग्रंथों में गहरी रुचि थी।
  • स्वामी विवेकानन्द ने 1881 में ललित कला की परीक्षा पूरी की और 1884 में कला के क्षेत्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
  • 1884 में उन्होंने बी.ए. पास किया। की परीक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की और बाद में कानून की पढ़ाई शुरू की।
  • 1884 में, स्वामी विवेकानन्द के पिता के निधन के बाद, उनके नौ भाई-बहनों की जिम्मेदारी पूरी तरह से उनके कंधों पर आ गई। हालाँकि, वह इस चुनौती के सामने न तो डगमगाये और न ही डगमगाये। वह अपने निश्चय पर दृढ़ रहे और अपने परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को सफलतापूर्वक निभाया।
  • 1889 में नरेन्द्र जी का परिवार कोलकाता लौट आया। अपनी तीव्र बुद्धि के कारण वह एक बार फिर स्कूल में प्रवेश पाने में सफल रहे और उन्होंने तीन साल का पाठ्यक्रम केवल एक वर्ष में पूरा कर लिया।
  • स्वामी विवेकानन्द को दर्शन, धर्म, इतिहास और सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों में गहरी रुचि थी। इसी लगन के कारण उन्होंने इन विषयों का अध्ययन बड़े मनोयोग से किया। यह समर्पण ही था जिसने उन्हें न केवल पारंगत बनाया बल्कि शास्त्रों और ग्रंथों का प्रकांड विद्वान भी बनाया।
  • उन्होंने जनरल असेंबली इंस्टीट्यूशन में यूरोपीय इतिहास का अध्ययन किया।
  • स्वामी विवेकानन्द बांग्ला भाषा में पारंगत थे। वह हर्बर्ट स्पेंसर के लेखन से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने स्पेंसर की पुस्तक “एजुकेशन” का बंगाली में अनुवाद किया।
  • स्वामी विवेकानन्द को अपने गुरुओं से बहुत प्रशंसा मिली, यही कारण है कि उन्हें “श्रुतिधर” भी कहा जाता था, जिसका अर्थ है पवित्र ज्ञान रखने वाला और प्रदान करने वाला।

स्वामी विवेकानन्द की श्री रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात:

स्वामी विवेकानन्द की सहज जिज्ञासा उनके प्रारंभिक वर्षों से ही स्पष्ट थी। इसी जिज्ञासा से प्रेरित होकर, उन्होंने एक बार महर्षि देवेन्द्रनाथ से एक गहन प्रश्न पूछा, “क्या आपने कभी भगवान को देखा है?” इस पूछताछ ने महर्षि देवेन्द्रनाथ को आश्चर्यचकित कर दिया, जिससे उन्होंने सुझाव दिया कि स्वामीजी अपनी ज्ञान की प्यास को शांत करने के लिए श्री रामकृष्ण परमहंस से उत्तर मांगें।

स्वामी विवेकानन्द की श्री रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात

इस सलाह पर कार्य करते हुए, स्वामी विवेकानन्द ने श्री रामकृष्ण को अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में स्वीकार किया और उनके द्वारा प्रकाशित मार्ग पर चलने की यात्रा शुरू की। इस महत्वपूर्ण मुलाकात ने स्वामी विवेकानन्द को गहराई से प्रभावित किया, जिससे उनके मन में अपने गुरु के प्रति अटूट भक्ति और गहरा सम्मान पैदा हुआ जो समय के साथ विकसित होता रहा।

1885 में रामकृष्ण परमहंस कैंसर से बीमार पड़ गये। इसके बाद स्वामी विवेकानन्द ने स्वयं को अपने गुरु की सेवा में समर्पित कर दिया। इससे उनका रिश्ता और भी गहरा हो गया. रामकृष्ण जी के निधन के बाद नरेंद्र नाथ ने वाराणसी में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। बाद में इसका नाम बदलकर रामकृष्ण मठ कर दिया गया। रामकृष्ण मठ की स्थापना के बाद, नरेंद्र नाथ ने ब्रह्मचर्य का व्रत लिया और वह स्वामी विवेकानन्द में परिवर्तित हो गये।

25 वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानन्द ने गेरुआ वस्त्र धारण किया और उसके बाद वे पैदल ही पूरे भारत की यात्रा पर निकल पड़े। इस तीर्थयात्रा के दौरान, उन्होंने आगरा, अयोध्या, वाराणसी, वृन्दावन, अलवर और कई अन्य स्थानों का दौरा किया। रास्ते में, उन्होंने प्रचलित सामाजिक पूर्वाग्रहों और पूर्वाग्रहों का सामना किया और उन्हें मिटाने के प्रयास किये|

23 दिसंबर, 1892 को स्वामी विवेकानन्द ने कन्याकुमारी में तीन दिन गहन ध्यान में बिताए। इसके बाद, वह वापस लौटे और राजस्थान में अपने गुरु-भाइयों, स्वामी ब्रह्मानंद और स्वामी तूर्यानंद से मिले।

इस लेख Swami Vivekananda biography in Hindi के माध्यम से उनके कुछ प्रमुख योगदान के बारे में बताया गया हैं|

  • 30 वर्ष की आयु में, स्वामी विवेकानन्द ने संयुक्त राज्य अमेरिका में विश्व धर्म संसद में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया।
  • सांस्कृतिक भावनाओं के माध्यम से लोगों को जोड़ने का प्रयास किया गया।
  • जातिवाद से जुड़ी प्रथाओं को खत्म करने और निचली जातियों के महत्व पर जोर देकर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास किया गया।
  • स्वामी विवेकानन्द ने भारतीय धार्मिक रचनाओं के सार को सही ढंग से समझने में मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • स्वामी विवेकानन्द ने दुनिया को हिंदू धर्म का महत्व समझाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • स्वामी विवेकानन्द ने धार्मिक परम्पराओं का सामंजस्यपूर्ण एकीकरण स्थापित किया।

4 जुलाई 1902 को 39 वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानन्द का निधन हो गया। उनके शिष्यों के अनुसार वे महासमाधि में लीन हो गये थे। अपनी भविष्यवाणी में, उन्होंने उल्लेख किया था कि वह 40 वर्ष की आयु से अधिक जीवित नहीं रहेंगे। इस महान आत्मा का अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट पर किया गया था।

स्वामी विवेकानन्द का इतिहास:

इस लेख Swami Vivekananda biography in Hindi के माध्यम से उनके इतिहास के बारे में यह कहा जाता हैं की उन्होंने अपने गुरु के निधन के बाद, ट्रस्टियों से वित्तीय सहायता कम हो गई, और कई शिष्यों ने अधिक पारंपरिक जीवन चुनते हुए, अपनी आध्यात्मिक प्रथाओं को छोड़ दिया। हालाँकि, स्वामी विवेकानन्द इस स्थान को एक मठ में बदलने के अपने दृढ़ संकल्प पर दृढ़ रहे। वहां, वह और कुछ समर्पित अनुयायी लंबे समय तक ध्यान में लगे रहे और अपनी धार्मिक प्रथाओं को जारी रखा।

दो साल बाद, 1888 से 1893 तक, उन्होंने पूरे भारत में एक व्यापक यात्रा शुरू की, अपने साथ केवल एक बर्तन और दो किताबें – भगवद गीता और द इमिटेशन ऑफ क्राइस्ट – ले गए। उन्होंने भिक्षा मांगकर अपना भरण-पोषण किया और खुद को राजाओं सहित विभिन्न धार्मिक पृष्ठभूमि के विद्वानों और नेताओं की संगति में समर्पित कर दिया।

उन्होंने लोगों द्वारा अनुभव की गई गहन गरीबी और पीड़ा को देखा और इससे उनके भीतर अपने साथी प्राणियों के प्रति सहानुभूति की गहरी भावना जागृत हुई। इसके बाद, उन्होंने 1 मई, 1893 को पश्चिम की यात्रा शुरू की। उनकी यात्रा उन्हें जापान, चीन, कनाडा तक ले गई और अंततः 30 जुलाई, 1893 को शिकागो पहुंचे। धर्म संसद में सितंबर 1893 में हार्वर्ड के प्रोफेसर जॉन हेनरी राइट की सहायता से आयोजित इस सम्मेलन में उन्होंने हिंदू धर्म और भारतीय मठ में की जाने वाली आध्यात्मिक प्रथाओं की बहुत ही स्पष्टता से व्याख्या की। उल्लेखनीय रूप से, उन्होंने खुद को नरेंद्रनाथ के बजाय विदेश में विवेकानंद के रूप में प्रस्तुत किया, यह सुझाव खेतड़ी के अजीत सिंह ने दिया था, जिन्होंने मठ में अपने शिक्षण के दिनों के दौरान पहली बार उनसे मुलाकात की थी और उनके ज्ञान से गहराई से प्रभावित हुए थे। विवेकानन्द नाम संस्कृत के शब्द “विवेक” से लिया गया है, जिसका अर्थ है ज्ञान और “आनंद”, जिसका अर्थ है आनंद।

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स्वामी विवेकानंद का परिचय कैसे दें?

स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी, 1863 (विद्वानों के अनुसार वर्ष 1920 की मकर संक्रांति को) को कोलकाता में एक प्रतिष्ठित कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके बचपन के घर का नाम “विश्वेश्वर” था, लेकिन उनका औपचारिक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। उनके पिता, विश्वनाथ दत्त, कोलकाता उच्च न्यायालय में एक प्रसिद्ध वकील थे।

स्वामी विवेकानंद कौन से धर्म के थे?

स्वामी विवेकानन्द दिन और रात दोनों समय लगभग डेढ़ से दो घंटे ही सोते थे। हर चार घंटे में वह 15 मिनट की झपकी लेते थे।

स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म के बारे में क्या कहा?

स्वामी विवेकानन्द ने हिंदू धर्म के बारे में कहा है कि हिंदू धर्म का सच्चा संदेश लोगों को अलग-अलग धार्मिक संप्रदायों में बांटना नहीं है, बल्कि पूरी मानवता को एक सूत्र में बांधना है। इसी तरह, भगवद गीता में, भगवान कृष्ण भी संदेश देते हैं कि परम प्रकाश, अपने विभिन्न मार्गों के बावजूद, एक ही है।

इस लेख Swami Vivekananda biography in Hindi के आलावा और भी लेख लिखे गए हैं जिसको अवश्य पढ़ें:

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स्वामी विवेकानंद जीवनी फ्री PDF | Swami Vivekananda Biography in Hindi Pdf Download

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स्वामी विवेकानंद   का नाम दुनिया भर में ख्याति प्राप्त हैं. आज सम्पूर्ण भारत में स्वामी विवेकानन्द के जन्मदिन को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता हैं, और इसके पीछे वजह यही हैं की स्वामी विवेकानंद  हमेशा युवाओं को उनके लक्ष्य के लिए प्रेरित किया करते थे. और आज भी उनके विचार करोडो युवा को प्रेरित करता हैं. आज आपको इस आर्टिकल में स्वामी विवेकानंद जीवनी या स्वामी विवेकानंद की बायोग्राफी का संग्रहित PDF दिया गया हैं.

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स्वामी विवेकानंद जीवनी PDF में निम्न को दर्शाया गया हैं– 

  • स्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय 
  • स्वामी विवेकानंद का जन्म व नामकरण 
  • स्वामी विवेकानंद जी का बचपन व निष्ठां 
  • स्वामी विवेकानंद जी की पूर्ण शिक्षा 
  • स्वामी विवेकानंद जी की ज्ञान प्राप्ति 
  • स्वामी विवेकानंद जी की यात्रा और सम्मलेन 
  • स्वामी विवेकानंद जी के विचार और अनमोल वचन 

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Swami Vivekananda Biography Hindi Pdf   में स्वामी विवेकानंद जी की जीवन की सिख और घटनाओं का संग्रह हैं. svami vivekanand Biography pdf में आपको अपने जीवन की सच्चाईयो और अपने लक्ष्यों को हासिल करने में मदद करता हैं.

स्वामी विवेकानंद अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीवो मे स्वयं परमात्मा का ही अस्तित्व हैं; इसलिए मानव जाति अथेअथ जो मनुष्य दूसरे जरूरतमन्दो मदद करता है या सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद स्वामी विवेकानन्द ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और ब्रिटिश भारत में मौजूदा स्थितियों का प्रत्यक्ष ज्ञान हासिल किया।

इस Swami Vivekananda Biography Hindi Pdf में हमने स्वामी विवेकानंद जी का जन्म, नाम कारण, शिक्षा, उनके भाषण, सम्मेलन और प्रमुख कहानियो के साथ-साथ उनके विचारो को भी दर्शाया गया हैं.

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Swami Vivekananda Books PDF In Hindi: Check Here For Benefits & Importance Of These Books!

The availability of Swami Vivekananda books in PDF format in Hindi has opened up a treasure trove of spiritual wisdom and enlightenment for seekers of knowledge. Swami Vivekananda, an eminent spiritual leader, and philosopher, has left an indelible mark on humanity with his profound teachings. These books, presented in a convenient digital format, allow individuals to explore the depths of his wisdom at their own pace and convenience.

In the realm of spiritual literature, Swami Vivekananda’s books hold immense significance. They offer insights into the nature of the self, the power of the mind, and the pursuit of higher consciousness. With a focus on practical guidance and personal growth, these books act as a guiding light, illuminating the path to self-realization and inner transformation.

Swami Vivekananda Books PDF In Hindi

Table of Contents

Swami Vivekananda: An Iconic Figure

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Swami Vivekananda, born Narendranath Datta, played a crucial role in introducing Vedanta and Yoga to the Western world. His teachings emphasized the harmony of religions, the importance of self-realization, and the power of the individual to bring about positive change. Swami Vivekananda’s books serve as a guiding light for seekers of truth and wisdom.

In today’s digital age, accessing books has become easier than ever. Swami Vivekananda’s books are available in PDF format, allowing readers to download and read them conveniently on various devices. These PDF versions preserve the original content and make it accessible to a wide audience.

Swami Vivekananda’s books contain timeless wisdom that transcends time and space. They offer insights into various aspects of life, spirituality, and human psychology. Reading Swami Vivekananda’s books can ignite the spark of self-discovery, inspire personal growth, and provide practical guidance for leading a meaningful life.

Here are some of the popular Swami Vivekananda books available in Hindi PDF:

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  • “Jnana Yoga” (ज्ञानयोग): Swami Vivekananda delves into the path of knowledge and wisdom in this book. It explores the nature of the self, the pursuit of truth, and the realization of one’s divine potential.
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    Page 1. Swami Vivekananda - A Biography by Swami Nikhilananda PREFACE Swami Vivekananda's inspiring personality was well known both in India and in America during the last decade of the nineteenth century and the first decade of the twentieth. The unknown monk of India suddenly leapt into fame at the Parliament of Religions held in Chicago in ...

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    Popular Swami Vivekananda Books PDF In Hindi. Here are some of the popular Swami Vivekananda books available in Hindi PDF: "Karmayoga" (कर्मयोग): This book emphasizes the significance of selfless action and the spiritual dimensions of work. It explores the concept of Karma Yoga as a path to spiritual evolution.

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