घरेलू हिंसा क्या है, घरेलू हिंसा के विभिन्न रूप, घरेलू हिंसा के कारण

घरेलू हिंसा क्या है, घरेलू हिंसा के विभिन्न रूप, घरेलू हिंसा के कारण

घरेलू हिंसा क्या है (What is Domestic Violence in hindi), घरेलू हिंसा के विभिन्न रूप (Various forms of Domestic Violence in hindi), घरेलू हिंसा के कारण (Causes of Domestic Violence in hindi) और घरेलू हिंसा के समाधान व उपाय (Solutions for Domestic Violence in hindi) आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं।

घरेलू हिंसा क्या है ? (What is Domestic Violence in hindi)

घरेलू हिंसा का तात्पर्य घर के माहौल में किए जाने वाले हिंसात्मक व्यवहार से है जिसमें एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति के लिए कुछ ऐसे बुरे कार्य किए जाते है जिससे उस व्यक्ति को शारीरिक व मानसिक रूप से आघात पहुँचता हो। ऐसा कार्य जो किसी महिला, पुरुष, बच्चे या बुजुर्गों के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन पर संकट, आर्थिक क्षति और ऐसी कोई क्षति जो असहनीय हो जिससे उनको को दुःख एवं अपमान सहन करना पड़े घरेलू हिंसा कहलाता है।

Table of Contents

घरेलू हिंसा के विभिन्न रूप (Various forms of Domestic Violence in hindi) –

महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा.

किसी भी महिला को शारीरिक व मानसिक रूप से दुख पहुंचाना महिला के विरुद्ध घरेलू हिंसा कहलाता है। इसमें महिलाओं का शोषण करना, उसके साथ मारपीट करना, यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए उसके साथ दुर्व्यवहार करना, महिला को अश्लील साहित्य व अश्लील तस्वीरों को देखने के लिए विवश करना, बलात्कार करना, महिला को अपमानित करना, उसकी पारिवारिक व सामाजिक स्थिति को आघात पहुँचाना, महिला को आत्महत्या की धमकी देना, मौखिक दुर्व्यवहार करना आदि महिला घरेलू हिंसा के कारण है। यूनाइटेड नेशन पॉपुलेशन फंड रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग दो-तिहाई विवाहित महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार है।

पुरुषों के विरुद्ध घरेलू हिंसा

भारत में महिलाओं के अलावा पुरुष भी घरेलू हिंसा के शिकार बनते है और यह स्थिति धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। इसका प्रमुख उदाहरण- चंडीगढ़ एवं शिमला में सैकड़ों पुरुषों द्वारा अपनी पत्नियों और परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ घरेलू हिंसा होने के कारण सरकार से गुहार लगाई थी।

बच्चों के विरुद्ध घरेलू हिंसा

भारतीय समाज में बच्चों एवं किशोर भी घरेलू हिंसा का शिकार बने हुए है। बच्चों के साथ घरेलू हिंसा को महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा के बाद दूसरे स्थान पर रखा गया है। बच्चों में घरेलू हिंसा को ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में देखा जाता है। इसके अलावा उच्च एवं निम्न वर्ग के परिवारों में इसके स्वरूप में भिन्नता पाई जाती है।

बुजुर्गों के विरुद्ध घरेलू हिंसा

इस प्रकार की घरेलू हिंसा में घर के बुजुर्गों के साथ परिवार के सदस्यों द्वारा किया गया दुर्व्यवहार शामिल होता है अर्थात इस घरेलू हिंसा में हिंसा का शिकार घर की बुजुर्ग महिला या पुरुष होते है। भारत में इस प्रकार की घरेलू हिंसा अत्यंत संवेदनशील है जिसमें बुजुर्गों के साथ मार-पीट करना, उनसे अधिक घरेलू कार्यों को कराना, उनकी आवश्यकताओं को पूरा न करना आदि कार्य शामिल है।

घरेलू हिंसा के कारण (Causes of Domestic Violence in hindi) –

  • घरेलू हिंसा होने का प्रमुख कारण यह है की कुछ लोगों की यह मानसिकता होती है की महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा शारीरिक व भावनात्मक रूप से कमजोर होती है जिससे वे महिलाओं के साथ हिंसात्मक भरे कार्यों को करने लगते है अतः बुरी मानसिकता होना घरेलू हिंसा होने का कारण है।
  • घरेलू हिंसा होने का कारण महिलाओं द्वारा यौन संबंध बनाने से इंकार करना, स्वादिष्ट खाना न बना पाना, पति-पत्नी के बीच बहस, दहेज़ विवाद, साथी को बिना बताए घर से बाहर जाना, बच्चों की वजह से मतभेद आदि घरेलू हिंसा होने का कारण है।
  • पुरुषों के प्रति होने वाली घरेलू हिंसा का कारण पत्नियों के निर्देशों का पालन न करना, विवाह से संबंधित बातें, आय का कम होना, घरेलू कार्यों में स्त्रियों का साथ न देना, शराब का सेवन, पुरुषों का बांझपन व पति-पत्नी द्वारा एक दूसरे के परिवार के लिए कटु वचनों का प्रयोग करना आदि।
  • बच्चों के साथ घरेलू हिंसा होने का कारण बाल श्रम, शारीरिक शोषण, पारिवारिक परंपराओं का पालन न करना, शिक्षा से वंचित रख कर उन्हें घर पर रहने के मजबूर करना आदि है।
  • वृद्ध व्यक्तियों के साथ घरेलू हिंसा होने का कारण माता-पिता पर पैसा खर्च करना, अपने माता-पिता को भावनात्मक रूप से पीड़ित करना व उनसे दूर होने के लिए उन्हें उत्पीड़ित करना और उनके साथ मार-पिटाई करना।
  • इसके अलावा महिलाओं में घरेलू हिंसा का कारण उनके द्वारा ससुराल के सदस्यों की देखभाल न करना, महिलाओं में बांझपन व वैवाहिक संबंधों में लिप्त रहना सभी घरेलू हिंसा के कारण है।

घरेलू हिंसा के समाधान व उपाय (Solutions for Domestic Violence in hindi) –

  • महिलाओं एवं बच्चों के लिए हो रही घरेलू हिंसा को समाप्त करने के लिए पुरुषों को इस समस्या को समाप्त करने के उपायों के लिए उन्हें इसमें शामिल करना होगा और उनकी मानसिकता में सुधार लाने का प्रयास करना होगा।
  • घरेलू हिंसा से पीड़ित व्यक्ति को एक बेहतर वातावरण देना चाहिए जिससे वे घरेलू हिंसा के मानसिक विकार से बाहर आ सके।
  • सरकार द्वारा महिलाओं एवं बच्चों को घरेलू हिंसा से संरक्षण प्रदान करने के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 को संसद में पारित कराया गया है। इसके तहत यदि कोई महिला या बच्चा घरेलू हिंसा से पीड़ित है तो वे इस अधिनियम का लाभ उठाकर स्थिति में सुधार कर सकते है।
  • सरकार ने वन-स्टॉप सेंटर जैसी योजनाएं प्रारंभ की है जिसका उद्देश्य हिंसा की शिकार हुई महिलाओं की सहायता करने के लिए उन्हें चिकित्सीय, क़ानूनी और मनोवैज्ञानिक सेवाएं उपलब्ध कराना है।
  • महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा को दूर करने के लिए निजी स्तर पर ‘लड़के रुलाते नहीं’ अभियान और वैश्विक मानवाधिकार संगठन ‘ब्रेकथ्रू’ द्वारा ‘बेल बजाओ’ अभियान चलाया गया है।

पढ़ें महिला उत्पीड़न के कारण एवं महिला उत्पीड़न के प्रकार ।

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Essay on Domestic Violence in Hindi – घरेलू हिंसा पर निबंध

February 12, 2018 by essaykiduniya

Get information about Domestic Violence in Hindi. Here you will get Paragraph and Short Essay on Domestic Violence in Hindi Language for Students and Kids of all Classes in 100, 250 and 600 words. यहां आपको सभी कक्षाओं के छात्रों के लिए हिंदी भाषा में घरेलू हिंसा पर निबंध मिलेगा।

Essay on Domestic Violence in Hindi – घरेलू हिंसा पर निबंध

Essay on Domestic Violence in Hindi

Essay on Domestic Violence in Hindi – घरेलू हिंसा पर निबंध ( 100 words )

भारत में आज भी महिलाओं की स्थिति बहुत ही दयनीय है। उनके साथ घरों में हिँसा की जाती है। उन्हें उनके परिवारजनों के द्वारा प्रताड़ित किया जाता है और दहेज के नाम पर उनका शारीरिक और मानसिक शोषण किया जाता है। एक तरफ जहाँ उन्हें देवी के रूप में पूजा जाता है वहीं दुसरी और उनके साथ घरेलू हिंसा की जाती है। शिक्षित और अशिक्षित दोनों ही घरेलू हिंसा को बढ़ावा देते हैं। महिलाओं को उनके साथ हो रही हिंसाओं के विरूद्ध आवाज उठानी चाहिए और सरकार ने भी घरेलू हिंसा के अपराधी लोगों के लिए सख्त सजा का प्रावधान रखा है।

Short Essay on Domestic Violence in Hindi Language – घरेलू हिंसा पर निबंध   (250 Words)  

महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा एक सामाजिक समस्या है जो दुनिया के लगभग हर कोने में होती है| हाल ही में, कुछ राज्यों ने यह स्वीकार करना शुरू कर दिया है कि परिवार के सदस्यों और सूचनाओं से महिलाओं को दुरुपयोग से संरक्षित किया जाना चाहिए। जबकि महिलाओं की रक्षा के लिए डिज़ाइन की गई नीतियां और प्रथाएं कई देशों में उभरी हैं, लेकिन इस मुद्दे पर बहुत पीछे है। यह पत्र महिलाओं के संरक्षण में परिवर्तन के पीछे कारण कारकों की जांच करेगा। महिलाओं और राजनीति पर साहित्य से पता चलता है कि महिला का प्रतिनिधित्व घरेलू हिंसा से सुरक्षा के स्तर को बढ़ा सकता है| क्योंकि महिला विधायकों को एजेंडे पर महिलाओं के मुद्दों को जारी रखने और नीतिगत विकल्प बनाने की संभावना है जो उनके सेक्स का लाभ लेती हैं। वैकल्पिक रूप से, एक राज्य की संस्कृति यह निर्धारित कर सकती है कि समाज घरेलू हिंसा से सुरक्षा सहित महिलाओं के लिए अधिकारों का समर्थन करता है या नहीं।

विश्लेषण के लिए महिलाओं के प्रतिनिधित्व और संस्कृति का एक आंकड़ा इकट्ठा किया गया। द्विपक्षीय सहसंबंध और कई प्रतिगमन का उपयोग करते हुए, सिद्धांतों की सुरक्षा के स्तर में भिन्नता के कारण को निर्धारित करने के प्रयास में एक-दूसरे के खिलाफ परीक्षण किया गया था। निष्कर्ष बताते हैं कि दोनों महिलाओं का प्रतिनिधित्व और संस्कृति काफी सुरक्षा के स्तर से संबंधित हैं। चूंकि निर्वाचित कार्यालय में महिलाओं की संख्या संस्कृति की तुलना में अधिक से अधिक हद तक सुरक्षा को प्रभावित करती है, इसलिए घरेलू हिंसा की समस्या से लड़ने में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में सुधार एक महत्वपूर्ण कारक प्रतीत होता है।

Long Essay on Domestic Violence in Hindi Language – घरेलू हिंसा पर निबंध (600 Words)

घरेलू हिंसा दो भागीदारों के बीच एक रिश्ता है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे पर शक्ति और नियंत्रण का दावा करने का प्रयास करता है। इसमें शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, आर्थिक और यौन शोषण के साथ-साथ पीड़ितों को उसके बच्चों के उपयोग के माध्यम से छेड़ने के प्रयास शामिल हैं। दुर्व्यवहार भी पीड़ित को अन्य लोगों से अलग करने की कोशिश कर सकता है जो सहायता प्रदान कर सकते हैं। कई अध्ययनों ने उन व्यक्तियों की पहचान करने पर ध्यान दिया है जो घरेलू हिंसा के लिए सबसे अधिक जोखिम वाले हैं। सबसे आम विशेषता शक्ति और नियंत्रण का असंतुलन है।

हालांकि, न तो जो लोग घरेलू हिंसा का अनुभव करते हैं और न ही उन पार्टियों का दुरुपयोग करते हैं वे अलग-अलग श्रेणियों में आते हैं। वे किसी भी उम्र, जातीयता, आय स्तर या शिक्षा के स्तर के हो सकते हैं। घरेलू हिंसा के कारण दुर्व्यवहार वापस जमीन पर निर्भर होंगे जैसे: एक बच्चे के रूप में दुर्व्यवहार का साक्षात्कार, एक बच्चे के रूप में दुर्व्यवहार का शिकार था, और पूर्व साथी के साथ दुर्व्यवहार किया गया था, और बेरोजगार या अपरमेजी, गरीबी या खराब रहने की स्थितियों के कारण हो सकता है। इसके अलावा, घरेलू हिंसा का प्रभाव उस प्रकार पर निर्भर करता है जो शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, यौन और आर्थिक हो सकता है।

घरेलू हिंसा एक गलत चीज है। इसमें किसी को घायल करना शामिल है; आम तौर पर एक पति या पत्नी या साथी लेकिन यह भी एक बच्चा या परिवार के अन्य सदस्य हो सकता है दुर्व्यवहार डर नहीं खेलता है। अभियोजक डर, अपराध, शर्म की बात करता है और वह शिकार को अपने अंगूठे के नीचे रखना चाहता है। दुर्व्यवहार इस शक्ति पर जोर देने के लिए कई अलग-अलग प्रकार के दुरुपयोग का इस्तेमाल कर सकता है, और जो समग्र रूपरेखा में दुरुपयोग होता है, वह हिंसा के चक्र के नाम पर एक पैटर्न का अनुसरण कर सकता है। हिंसा का चक्र: हिंसक घटनाएं कई प्रकार के पैटर्न में हो सकती हैं- शिकार के चल रहे, नॉनस्टॉप दुर्व्यवहार का अनुभव हो सकता है, या दुरुपयोग रोक और शुरू हो सकता है एक हिंसक रिश्ते में अक्सर शोषण का एक पैटर्न तनाव-निर्माण चरण से शुरू होता है, वास्तविक अपमानजनक कार्य के बाद, और फिर शांत, मेक-अप चरण को अक्सर हनीमून चरण कहा जाता है।

तनाव-निर्माण के चरण में दुर्व्यवहारियों के लिए हिंसा से बचने के लिए व्यक्ति द्वारा किए गए प्रयासों के साथ दुश्मन के हिस्से में क्रोध बढ़ाना शामिल है। दूसरी ओर, शिकार भी हिंसा को लाने के लिए कोशिश कर सकता है ताकि इसे ऊपर से निकाला जा सके। गंभीर दुरुपयोग के प्रकरण में कई तरह के दुरुपयोग शामिल हो सकते हैं और अनिश्चित काल के लिए हो सकता है। दुर्व्यवहार का अनुसरण करने वाले हनीमून चरण में अक्सर दुर्व्यवहार प्रकरण के लिए बहस और घायल पार्टी के लिए प्रेम की अभिव्यक्ति शामिल होती है। दुर्व्यवहार हिंसा से इनकार कर सकता है या अपने स्वयं के नशे की पीड़ा पर व्यवहार या नशे की लत पर अपने या अपने कार्यों को दोष दे सकता है।

निष्कर्ष

निष्कर्ष निकालने के लिए, घरेलू हिंसा एक या दो साझेदारों द्वारा एक घनिष्ठ संबंध जैसे विवाह, डेटिंग, परिवार, दोस्तों या सहवास में अपमानजनक व्यवहार का एक रूप है। घरेलू हिंसा में कई प्रकार के शारीरिक आक्रमण शामिल हैं (मारना, लात मारना, काटने, और रोकना, थप्पड़ मारना, वस्तुओं को फेंकना); यह यौन या भावनात्मक भी हो सकता है| घरेलू हिंसा का मुख्य कारण दुर्व्यवहार वापस जमीन पर निर्भर करता है जैसे: एक बच्चे के रूप में दुर्व्यवहार का साक्षात्कार, एक बच्चे के रूप में दुर्व्यवहार का शिकार था, पूर्व सहयोगियों के साथ दुर्व्यवहार किया गया था, और बेरोजगार या अपरमेजी, गरीबी या खराब रहने की स्थितियों के कारण हो सकता है।

हम आशा करते हैं कि आप इस निबंध (  Essay on Domestic Violence in Hindi – घरेलू हिंसा पर निबंध ) को पसंद करेंगे।

# Mahila Utpidan Essay in Hindi

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महिलाओं के विरुद्ध हिंसा: कब होगा इसका अंत.

  • 05 Dec, 2022 | शालिनी बाजपेयी

domestic violence essay in hindi

"झूठ नहीं बोलेंगी हवाएँ झूठ नहीं बोलेगी पर्वत-शिखरों पर बची हुई थोड़ी-सी बर्फ झूठ नहीं बोलेंगे चिनारों के शर्मिंदा पत्ते उनसे ही पूछो सुमित्रा के मुँह में चीथड़े ठूँसकर उसे कहाँ तक घसीटती ले गई उनकी जीप अपने पीछे बाँधकर’’

स्त्रियों के साथ होने वाले जघन्य अपराधों को इंगित करती ये पंक्तियाँ रूह को कंपा देने वाली हैं। हालाँकि महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की समस्या कोई नई नहीं है। भारतीय समाज में महिलाएँ एक लंबे समय से अवमानना, यातना और शोषण का शिकार रही हैं। हमारी विचारधाराओं, संस्थागत रिवाज़ों और समाज में प्रचलित प्रतिमानों ने उनके उत्पीड़न में काफी योगदान दिया है। इनमें से कुछ व्यावहारिक रिवाज़ आज भी व्याप्त हैं।

आज महिलाएँ एक तरफ सफलता के नए-नए आयाम गढ़ रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ कई महिलाएँ जघन्य हिंसा और अपराध का शिकार हो रही हैं। उनको पीटा जाता है; उनका अपहरण किया जाता है; उनके साथ बलात्कार किया जाता है; उनको जला दिया जाता है या उनकी हत्या कर दी जाती है। लेकिन क्या हम कभी ये सोचते हैं कि आखिर वे कौन-सी महिलाएँ हैं जिनके साथ हिंसा होती है या उनके साथ हिंसा करने वाले लोग कौन है? हिंसा का मूल कारण क्या है और इसे खत्म कैसे किया जाए?

जाह़िर सी बात है, हम में से अधिकांश लोग कभी भी इन प्रश्नों पर विचार नहीं करते हैं। इसके विपरीत हम जब भी किसी महिला के साथ हिंसा की खबर देखते या सुनते हैं तो उस हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाने की बजाय अपने घर की महिलाओं, बहनों और बेटियों पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगा देते हैं, जो स्वयं एक प्रकार की हिंसा ही है। इन्हीं सब कारणों के चलते संयुक्त राष्ट्र द्वारा हर साल 25 नवंबर को अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस (International Day for the Elimination of Violence against Women) मनाया जाता है। इस दिवस का उद्देश्य दुनिया भर में महिलाओं के साथ हो रही हिंसा के प्रति लोगों को जागरुक करना है।

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की प्रकृति

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा का वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है-

  • आपराधिक हिंसा जैसे- बलात्कार, अपहरण, हत्या…
  • घरेलू हिंसा जैसे- दहेज संबंधी हिंसा, पत्नी को पीटना, लैंगिक दुर्व्यवहार, विधवा और वृद्ध महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार….
  • सामाजिक हिंसा जैसे पत्नी/पुत्रवधू को मादा भ्रूण की हत्या (female foeticide) के लिये बाध्य करना, महिलाओं से छेड़-छाड़, संपत्ति में महिलाओं को हिस्सा देने से इंकार करना, अल्पवयस्क विधवा को सती होने के लिये बाध्य करना, पुत्र-वधू को और अधिक दहेज के लिये सताना, साइबर उत्पीड़न आदि।

आइए, घरेलू दायरे और साथ ही साथ समाज में महिलाओं के साथ होने वाले कुछ अपराधों पर नज़र डालें-

घरेलू हिंसा

घरेलू हिंसा सभ्य समाज का एक कड़वा सच है। भारत में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत साल 2021 में केवल 507 मामले दर्ज किये गए, जो महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल मामलों का 0.1 फीसदी है। जबकि वास्तविकता में यह संख्या कई गुना अधिक है। इसमें महिलाओं को लैंगिक, शारीरिक और मानसिक यातनाएँ दी जाती हैं।

अधिकांश मामलों में घरेलू हिंसा पति द्वारा पत्नी या ससुराल वालों के द्वारा बहू को शारीरिक व मानसिक उत्पीड़न के रूप में नज़र आती है और महिलाएँ इसे अपना भाग्य समझकर सहती रहती हैं। इस हिंसा को सहने का एक कारण यह भी है कि हमारे भारतीय समाज में शादी के पहले से ही लड़की के दिमाग में यह बात बैठा दी जाती है कि एक बार पिता के घर से डोली उठने के बाद पति के घर से ही अर्थी उठनी चाहिये यानी शादी के बाद लड़की अपने पिता के घर वापस आकर नहीं रह सकती, भले ही ससुराल वाले उसका कितना ही उत्पीड़न करें। जिसके चलते अधिकाँश महिलाएँ बिना किसी से शिकायत किये शांति से हिंसा को सहती रहती हैं।

वहीं, कई महिलाएँ एवं बेटियाँ ऐसी भी हैं, जो अपने ही घर में हिंसा की शिकार हो जाती हैं। हमारे पितृसत्तात्मक समाज में घर की बेटियों व महिलाओं के सभी महत्त्वपूर्ण निर्णय घर के पुरुष मुखिया ही करते हैं। जिसके चलते कई बार वह अपने घर की लड़कियों को पढ़ाई के उचित अवसर नहीं देते, अगर पढ़ा भी दिया तो नौकरी करने के लिये घर की चारदीवारी से बाहर नहीं भेजते, उन पर जबरन शादी का दबाव बनाते हैं, जो कि एक प्रकार की मानसिक हिंसा है। साथ ही, अगर कोई लड़की अपना जीवनसाथी स्वयं चुन ले तो उसके परिवार वाले अपनी झूठी शान के लिये बेटी की हत्या करने में भी नहीं कतराते हैं। हैरान करने वाली बात तो यह है कि इनमें से अधिकांश मामलों की रिपोर्ट तक दर्ज नहीं होती और अपराधियों का मनोबल बढ़ता जाता है।

अगर कुछ महिलाएँ आवाज़़ उठाती भी हैं तो कई बार पुलिस ऐसे मामलों को पंजीकृत करने में टालमटोल करती है क्योंकि पुलिस को भी लगता है कि पति द्वारा कभी गुस्से में पत्नी की पिटाई कर देना या पिता और भाई द्वारा घर की महिलाओं को नियंत्रित करना एक सामान्य सी बात है। इसलिये अब समय आ गया है कि महिलाएँ अपनी आवाज़ आवाज़ बुलंद करें और कहें कि ‘’केवल एक थप्पड़, लेकिन नहीं मार सकता”।

बलात्कार समाज में होने वाला सबसे घिनौना अपराध है। ऐसे अपराधों में भी आमतौर पर अपरिचितों की बजाय परिचित ही शामिल होते हैं। यह अपराध अचानक नहीं होता बल्कि इसे पुरुषों द्वारा विचारित कर्म माना जाता है। अपराधी अधिकतर ऐसी संवेदनशील महिलाओं या बच्चियों को अपना शिकार बनाते हैं जो न तो इनके खिलाफ आवाज़ उठा सकती हैं और न ही उनका सामना कर सकती हैं। कई बार एक समूह के पुरुष, किसी दूसरी जाति के पुरुषों को नीचा दिखाने या अपनी दुश्मनी का बदला लेने के लिये उनके परिवार की महिलाओं को अपना शिकार बना लेते हैं; उनका बलात्कार करते हैं और परिवार के सदस्यों द्वारा इज्जत के डर से बलात्कार के अधिकांश मामलों की रिपोर्ट नहीं दर्ज कराई जाती है।

यौन उत्पीड़न

इसके अंतर्गत महिलाओं की आयु, वर्ग या वेशभूषा पर ध्यान दिये बिना सड़कों पर, बसों एवं रेलगाड़ियों में सफर के दौरान या फिर कार्यस्थल पर, उन पर मौखिक व्यंग्यात्मक टिप्पणियाँ करना या जानबूझकर उनसे टकराना या अश्लील भाषा का प्रयोग करना आदि शामिल हैं। ये शायद ऐसे गिने-चुने अपराध हैं जो दिनदहाड़े किये जाते हैं और ये ऐसे अपराध भी हैं जिन्हें पुलिस और आम जनता अनदेखा कर देती है। महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और एक आम रुख कि ‘’लड़के आखिर लड़के हैं’’, यौन उत्पीड़न को निरपराध और छिछोरी गतिविधि बनाते हैं। लेकिन ऐसे विकृत सुख का आखिर अर्थ क्या है और महिलाओं पर इसका क्या असर है, इस पर कोई विचार नहीं करता।

यौन उत्पीड़न की घटनाएँ जिस परिस्थिति में घटित हैं, वे शायद अलग-अलग हो सकती हैं लेकिन महिलाओं पर इनका प्रभाव एक जैसा ही होता है। यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाएँ कामगार और मनुष्य के रूप में खुद को शंका की दृष्टि से देखना शुरू कर देती हैं और उनमें घोर निराशा आ जाती है; वे स्वयं को शक्तिहीन मानने लगती हैं। इसी कारण यौन उत्पीड़न को अक्सर ‘मनोवैज्ञानिक बलात्कार’ भी कहा जाता है।

भारत में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा से संबंधित कुछ आँकड़े

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2015 में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के 3.29 लाख मामले, साल 2016 में 3.38 लाख मामले, साल 2017 में 3.60 लाख मामले और साल 2020 में 3,71,503 मामले दर्ज किये गए। वहीं, साल 2021 में ये आँकड़ा बढ़कर 4,28,278 हो गया, जिनमें से अधिकतर यानी 31.8 फीसदी पति या रिश्तेदार द्वारा की गई हिंसा के, 7.40 फीसदी बलात्कार के, 17.66 फीसदी अपहरण के, 20.8 फीसदी महिलाओं को अपमानित करने के इरादे से की गई हिंसा के मामले शामिल हैं।

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के प्रमुख कारण

  • पितृसत्तात्मक मानसिकता।
  • पुरुष और महिलाओं के बीच शक्ति एवं संसाधनों का असमान वितरण।
  • लैंगिक जागरूकता का अभाव।
  • पुरुषों की तुलना में महिलाओं का सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से कम सशक्तीकरण।
  • समाज द्वारा लैंगिक हिंसा को मौन सहमति।
  • पुरुषों पर अत्यधिक निर्भरता के कारण महिलाओं का लैंगिक हिंसा के प्रति अधिक सुभेद्य (Vulnerable) होना।
  • कानूनों का कुशल कार्यान्वयन न होना।
  • घरेलू हिंसा को संस्कृति का हिस्सा बना देना।
  • लिंग भूमिकाओं से संबंधित रूढ़ियाँ।
  • महिलाओं की भूमिका विवाह और मातृत्व तक सीमित कर देना।

अक्सर ऐसी महिलाएँ होती हैं हिंसा की शिकार

यदि हम महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के सभी मामलों का अवलोकन करें तो हम पाएँगे कि सामान्यतया हिंसा की शिकार वे महिलाएँ होती हैं-

  • जो असहाय और अवसादग्रस्त होती हैं; जिनकी आत्मछवि खराब होती है; जो आत्म अवमूल्यन से ग्रसित होती हैं या वे जो अपराधकर्ताओं द्वारा की गई हिंसा के कारण भावात्मक रूप से निर्बल हो गई हैं।
  • जो दबावपूर्ण पारिवारिक स्थितियों में रहती हैं।
  • जिनमें सामाजिक परिपक्वता की या सामाजिक अन्तर-वैयक्तिक प्रवीणताओं की कमी है, जिसके कारण उन्हें व्यवहार संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • जिनके पति या ससुराल वालों का व्यक्तित्व विकृत है और जिनके पति प्राय: शराब पीते हैं।

हिंसा करने वाले कौन?

हिंसा करने वालों में प्राय: वे लोग शामिल होते हैं-

  • जो अवसादग्रस्त होते हैं; जिनमें हीन भावना होती है और जिनका आत्मसम्मान कम होता है।
  • जो मनोरोगी होते हैं।
  • जिनके पास संसाधनों, प्रवीणताओं (Skills) और प्रतिभाओं (talents) का अभाव होता है और जिनका व्यक्तित्व विकृत होता है।
  • जिनकी प्रकृति में मालिकानापन (Possessive), शक्कीपन और प्रबलता (dominance) होती है।
  • जो पारिवारिक जीवन में तनावपूर्ण स्थितियों का सामना करते हैं।
  • जो बचपन में हिंसा के शिकार हुए थे और जो मदिरापान करते हैं।

महिलाओं की सुरक्षा हेतु कुछ महत्त्वपूर्ण कानून -

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के अंतर्गत बलात्कार को अत्यंत जघन्य अपराध माना गया है।
  • दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961और 1986
  • आईपीसी की धारा 494 के तहत पति या पत्नी के जीवित होते हुए विवाह करना दंडनीय अपराध।
  • हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अंतर्गत दूसरे विवाह को प्रतिबंधित किया गया है।
  • घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005
  • महिला आरोपी की दंड प्रक्रिया संहिता 1973
  • भ्रूण लिंग चयन निषेध अधिनियम 1994
  • अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम 1956
  • कार्यस्थल पर महिलाओं के सम्मान की सुरक्षा के लिये वर्कप्लेस बिल (POSH Act, 2013)
  • पॉक्सो (POCSO) अधिनियम

अपराधों को रोकने संबंधी चुनौतियाँ

तमाम कानूनों और तरीकों को अपनाने के बाद भी हम महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों को रोकने में असफल हो रहे हैं, इसलिये यह आवश्यक है कि समस्या का समाधान करने से पहले हम उसमें आने वाली चुनौतियों को समझें-

  • न्यायालय में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों का लंबे समय तक लंबित पड़े रहना।
  • सजा दिये जाने की दर में कमी।
  • जाँच करने वाले अधिकारियों का महिलाओं के साथ अच्छा व्यवहार न किया जाना अर्थात महिलाओं को उत्पीड़ित नहीं बल्कि अपराधी की नज़र से देखना।
  • सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों में ‘रोकथाम’ के स्थान पर ‘सज़ा’ पर अधिक ज़ोर दिया जाना।

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को रोकने के उपाय

निम्नलिखित तरीकों को अपनाकर महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है-

  • महिलाओं की सुरक्षा के लिये बनाए गए कानूनों को मज़बूत करने के साथ-साथ उन्हें सख्ती से लागू किया जाए।
  • सरकार द्वारा सभी स्तरों पर महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा दिया जाए।
  • फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना की जाए।
  • महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के खिलाफ आवाज़ उठाने वाली संस्थाओं को मजबूत बनाया जाए।
  • महिला थानों की संख्या के साथ-साथ महिला पुलिस अधिकारियों की संख्या को बढ़ाया जाए और हेल्पलाइन नंबर, फोरेंसिक लैब की स्थापना, सार्वजनिक परिवहन में सीसीटीवी और पैनिक बटन लगाने जैसी व्यवस्थाएँ की जानी चाहिये।
  • समाज की मानसिकता में बदलाव लाने की ज़रूरत ।
  • सभी महिलाओं को शिक्षित किया जाए जिससे वे अपने अधिकारों के प्रति जागरुक हों और आत्मनिर्भर बन सकें।

तो हमने देखा कि महिलाओं की मानवीय प्रतिष्ठा के वास्तविक सम्मान के लिये जो लड़ाई लड़नी है, उसके लिये अभी मीलों का सफर तय करना है और हम इस सफर को तभी तय कर पाएँगे जब महिलाएँ अपने साथ होने वाले अपराधों को सहना छोड़कर उनके खिलाफ आवाज़ उठाएँगी क्योंकि हमारे भारतीय समाज में महिलाओं को सिर्फ सहना सिखाया जाता है, कहना नहीं सिखाया जाता। इसलिये ज़रूरी है कि महिलाएँ सबसे पहले अपनी आवाज़ खुद उठाएँ, अपनी मशाल का दीपक खुद जलाएँ तथा अपनी गरिमा के साथ कोई समझौता न करें। इसी संदर्भ में महिला अधिकार कार्यकर्ता कमला भसीन का कहना है कि-

इरादे कर बुलंद अब रहना शुरू करती तो अच्छा था तू सहना छोड़ कर कहना शुरू करती तो अच्छा था सदा औरों को खुश रखना बहुत ही खूब है लेकिन खुशी थोड़ी तू अपने को भी दे पाती तो अच्छा था दुखों को मानकर किस्मत हारकर जीने से क्या होगा तू आँसू पोंछकर अब मुस्कुरा लेती तो अच्छा था ये पीला रंग, लब सूखे सदा चेहरे पे मायूसी तू अपनी एक नयी सूरत बना लेती तो अच्छा था तेरी आँखों में आँसू हैं तेरे सीने में हैं शोले तू इन शोलों में अपने गम जला लेती तो अच्छा था है सर पर बोझ जुल्मों का तेरी आँखे सदा नीची कभी तो आँखे उठा तेवर दिखा देती तो अच्छा था तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही खूब है लेकिन तू इस आँचल का इक परचम बना लेती तो अच्छा था।

शालिनी बाजपेयी यूपी के रायबरेली जिले से हैं। इन्होंने IIMC, नई दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा करने के बाद जनसंचार एवं पत्रकारिता में एम.ए. किया। वर्तमान में ये हिंदी साहित्य की पढ़ाई के साथ साथ लेखन का कार्य कर रही हैं।

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घरेलू हिंसा पर निबंध- Essay on Domestic Violence in Hindi

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घरेलू हिंसा पर निबंध- Essay on Domestic Violence in Hindi

घरेलू हिंसा हमारे समाज में प्राचीन काल से ही विद्यमान है। प्रतिदिन देश निरंतर प्रगति कर रहा है लेकिन महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा में कोई कमी नहीं आई है। आज भी महिलाओं की स्थिति बहुत ही दयनीय है। बचपन से ही महिलाओं के उपर उनके परिवारजन और रिश्तेदारों द्वारा अत्याचार शुरू कर दिए जाते हैं। जब वह पैदा होती है तो उन्हें ताने दिए जाते हैं और प्रताड़ित किया जाता है।

घरेलू हिंसा के अंतर्गत महिला से मार पीट, उससे जबरदस्ती और किसी भी प्रकार का दबाव बनाना आता है जो कि परिवार के किसी सदस्य या फिर रिश्तेदार के द्वारा किया जाता है। घरेलू हिंसा में महिला का शारीरिक और मानसिक रूप से शोषण किया जाता है। बहुत से लोग महिलाओं के साथ अत्याचार दहेज के लालच में करते हैं और इस अपराध को करने में पढ़े लिखे लोग भी पीछे नहीं रहते हैं। घरेलू हिंसा को बढ़ावा देने में स्वयं महिलाएँ भी जिम्मेवार है क्योंकि वह इसके खिलाफ कुछ नहीं करती है बल्कि खुद को ऐसे ही माहोल्ल में ढालने की को कोशिश करती है जिसके परिणामस्वरूप वह एक दिन अपनी जिंदगी गँवा बैठती है।

महिलाओं को चाहिए कि वह गलत के खिलाफ आवाज उठाए और उनके साथ गलत होने से रोकें। लोगों को भी अपनी सोच को बदलना होगा कि अपनी बहुओं को प्रताड़ित न करें क्योंकि यदि उनकी बेटी किसी के घर की बहु बनेगी तो उस पर भी ऐसे ही अत्याचार किया जाऐगा। सरकार ने भी घरेलू हिंसा रोकने के लिए कानून बनाया है और अन्य उचित कदम भी उठाए गए हैं। हम सबको भी घरेलू हिंसा को रोकने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। यदि कहीं किसी महिला पर अत्याचार हो रहा है तो उसकी सूचना पुलिस को दी जानी चाहिए ताकि पुलिस जल्दी से जल्दी मामले का पता लगाकर घरेलू हिंसा को रोक सकें।

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यह लेख भारत के एमिटी विश्वविद्यालय कोलकाता की छात्रा Abanti Bose द्वारा लिखा गया है। यह लेख घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम (प्रोटेक्शन ऑफ वूमेन फ्रॉम डॉमेस्टिक वायलेंस एक्ट), 2005 की विस्तृत समझ प्रदान करता है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

Table of Contents

महिलाओं का सबसे बड़ा समूह घरेलू हिंसा का शिकार प्रचीन समय से है और महिलाओं के खिलाफ हिंसा 21वीं सदी में भी जारी है। हर सामाजिक पृष्ठभूमि (बैकग्राउंड) की महिलाएं चाहे उनकी उम्र, धर्म, जाति या वर्ग कुछ भी हो, घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं। हालांकि घरेलू हिंसा केवल महिलाओं तक ही सीमित नहीं है; पुरुष, बच्चे और बुजुर्ग भी इसका शिकार हो सकते हैं। घरेलू हिंसा समाज के सभी स्तरों पर और सभी जनसंख्या समूहों में होती है।

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भारत में, 30% महिलाओं ने 15 वर्ष की आयु से कम से कम एक बार घरेलू हिंसा का अनुभव किया है, और लगभग 4% गर्भवती महिलाओं ने गर्भावस्था के दौरान पति की हिंसा का भी अनुभव किया है।

घरेलू हिंसा: एक सामाजिक बुराई

घरेलू हिंसा का अपराध पीड़ित के घरेलू दायरे में किसी के भी द्वारा किया जाता है। इसमें परिवार के सदस्य, रिश्तेदार आदि शामिल हैं। घरेलू हिंसा शब्द का प्रयोग अक्सर तब किया जाता है जब अपराधी और पीड़ित के बीच घनिष्ठ संबंध होता है। घरेलू हिंसा के विभिन्न रूपों में वरिष्ठ शोषण (सीनियर एब्यूज), बाल शोषण, सम्मान-आधारित शोषण जैसे ऑनर किलिंग, महिला जननांग विकृति (जेनिटल म्यूटिलेशन), और एक अंतरंग साथी द्वारा सभी प्रकार के शोषण शामिल हैं।

21वीं सदी में घरेलू हिंसा के सामाजिक मुद्दे के समाधान के लिए विभिन्न कदम उठाए गए हैं। दुनिया भर की सरकारों ने घरेलू हिंसा को खत्म करने के लिए सक्रिय कदम उठाए हैं। इसके अलावा, मीडिया, राजनेताओं और प्रचार समूहों ने लोगों को घरेलू हिंसा को एक सामाजिक बुराई के रूप में स्वीकार करने में सहायता की है।

भारत में घरेलू हिंसा, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 द्वारा शासित है और इसे धारा 3 के तहत परिभाषित किया गया है, जिसमें कहा गया है कि किसी व्यक्ति का कोई भी कार्य, कमीशन, चूक या आचरण किसी अन्य व्यक्ति के स्वास्थ्य या संरक्षण को नुकसान पहुंचाता है या व्यक्ति को घायल करता है या खतरे में डालता है, चाहे मानसिक रूप से या शारीरिक रूप से, तो यह घरेलू हिंसा की श्रेणी में आता है। इसमें आगे किसी भी गैरकानूनी मांग को पूरा करने के लिए किसी व्यक्ति या उस व्यक्ति से संबंधित किसी भी व्यक्ति को नुकसान, उत्पीड़न या चोट शामिल है और यह भी घरेलू हिंसा के बराबर होगा।

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के उद्देश्य

घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 का उद्देश्य निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति करना है:

  • यह पहचानने और निर्धारित करने के लिए कि घरेलू हिंसा का प्रत्येक कार्य कानून द्वारा गैरकानूनी और दंडनीय है।
  • ऐसे मामलों में घरेलू हिंसा के शिकार हुए लोगों को संरक्षण प्रदान करना।
  • पीड़ित व्यक्ति को समय पर, लागत प्रभावी और सुविधाजनक तरीके से न्याय प्रदान करना।
  • घरेलू हिंसा को रोकना और ऐसी हिंसा होने पर पर्याप्त कदम उठाना।
  • घरेलू हिंसा के पीड़ितों के लिए पर्याप्त कार्यक्रम और एजेंडा लागू करना और ऐसे पीड़ितों की वसूली की गारंटी देना।
  • घरेलू हिंसा के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करना।
  • कठोर दंड को लागू करने के लिए और हिंसा के ऐसे जघन्य (हिनियस) कार्यों के लिए दोषियों को जवाबदेह ठहराना।
  • घरेलू हिंसा की रोकथाम के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों (स्टैंडर्ड) के अनुसार कानून बनाना और उसका संचालन करना।

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के आवश्यक प्रावधान

संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति.

संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है। राज्य के आकार और आवश्यकता के आधार पर संरक्षण अधिकारियों की संख्या एक जिले से दूसरे जिले में भिन्न हो सकती है। संरक्षण अधिकारियों द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्तियों और कर्तव्यों को अधिनियम की पुष्टि में निर्धारित किया गया है। जहां तक ​​संभव हो संरक्षण अधिकारी महिलाएं होनी चाहिए और उनके पास अपेक्षित योग्यता और अनुभव होना चाहिए जैसा कि अधिनियम के तहत निर्धारित किया गया है।

संरक्षण अधिकारियों की शक्तियां और कार्य

संरक्षण अधिकारियों की शक्तियों और कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • अधिनियम के अनुसार अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए मजिस्ट्रेट की सहायता करना।
  • घरेलू हिंसा की ऐसी कोई घटना की जानकारी प्राप्त होने के बाद मजिस्ट्रेट को घरेलू हिंसा की घटना की रिपोर्ट करना और इसकी प्रतियां (कॉपी) घटना पर अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिसडिक्शन) वाले पुलिस थाने के प्रभारी (इन चार्ज) पुलिस अधिकारी को भी अग्रेषित (फॉरवर्ड) करना चाहिए।
  • यदि पीड़ित व्यक्ति संरक्षणत्मक आदेश जारी करने के लिए राहत का दावा करता है तो मजिस्ट्रेट को निर्धारित आदेश में आवेदन करना।
  • यह सुनिश्चित करने के लिए कि पीड़ित व्यक्ति को कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान की जाती है।
  • मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र के भीतर एक स्थानीय क्षेत्र में कानूनी सहायता या परामर्श, आश्रय गृह और चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करने वाले सभी सेवा प्रदाताओं (सर्विस प्रोवाइडर) की विस्तृत सूची बनाए रखना।
  • पीड़िता का चिकित्सकीय परीक्षण करने के लिए, यदि उसे कोई शारीरिक चोट लगी है और ऐसी रिपोर्ट निर्धारित तरीके से मजिस्ट्रेट और अधिकार क्षेत्र वाले पुलिस स्टेशन को अग्रेषित करना।
  • पीड़िता के लिए, यदि आवश्यक हो, तो एक सुरक्षित उपलब्ध आश्रय गृह खोजन और उसके आवास का विवरण निर्धारित तरीके से मजिस्ट्रेट और अधिकार क्षेत्र वाले पुलिस स्टेशन को भेजना।
  • यह सुनिश्चित करना कि इस अधिनियम के तहत पीड़ितों को मौद्रिक राहत के आदेश का अनुपालन किया जाता है।

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सेवा प्रदाताओं की शक्तियां और कार्य

अधिनियम की धारा 10 सेवा प्रदाताओं के कार्यों और कर्तव्यों को निर्धारित करती है। सेवा प्रदाताओं को अधिनियम में सोसायटी पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत किसी भी स्वैच्छिक संघ या कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत पंजीकृत कंपनी के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसका उद्देश्य कानूनी सहायता, चिकित्सक सहायता, वित्तीय सहायता या अन्य सहायता प्रदान करके महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना है। सेवा प्रदाताओं की शक्तियों और कर्तव्यों का उल्लेख नीचे किया गया है।

  • एक सेवा प्रदाता के पास घरेलू हिंसा की किसी भी घटना को रिकॉर्ड करने और उस मजिस्ट्रेट या संरक्षण अधिकारी को अग्रेषित करने का अधिकार होता है जिसके अधिकार क्षेत्र में घरेलू हिंसा की घटना हुई थी।
  • सेवा प्रदाता को पीड़ित व्यक्ति की चिकित्सकीय जांच करवानी चाहिए और ऐसी रिपोर्ट संरक्षण अधिकारी, मजिस्ट्रेट और स्थानीय सीमा के भीतर पुलिस स्टेशन, जहां घरेलू हिंसा हुई थी, को अग्रेषित करना चाहिए।
  • सेवा प्रदाताओं की यह भी जिम्मेदारी है कि वे पीड़ित को आश्रय गृह प्रदान करें यदि उन्हें एक आश्रय गृह की आवश्यकता है और पीड़ित के दर्ज होने की रिपोर्ट अधिकार क्षेत्र वाले पुलिस स्टेशन को अग्रेषित करें।

पुलिस अधिकारियों और मजिस्ट्रेट के कर्तव्य और कार्य

घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 5 पुलिस अधिकारियों और मजिस्ट्रेट के कर्तव्यों और कार्यों को निर्धारित करती है। इसमें कहा गया है कि जब किसी पुलिस अधिकारी, सेवा प्रदाता या मजिस्ट्रेट को घरेलू हिंसा की शिकायत प्राप्त होती है, तो उसे घरेलू हिंसा की घटना की सूचना दी जाती है या वह घरेलू हिंसा की घटना स्थल पर मौजूद होता है तो उन्हें निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:

  • उन्हें संरक्षण के आदेश, आर्थिक राहत के आदेश, हिरासत के आदेश, निवास के आदेश, मुआवजे के आदेश आदि के माध्यम से राहत प्राप्त करने के लिए आवेदन करने के अपने अधिकारों के बारे में पीड़िता को सूचित करना आवश्यक है।
  • उन्हें पीड़ित को सेवा प्रदाताओं की सेवाओं की पहुंच के बारे में सूचित करना चाहिए।
  • पीड़ित को संरक्षण अधिकारियों की सेवाओं और कर्तव्यों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए।
  • उन्हें पीड़िता को कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत मुफ्त कानूनी सेवाओं के अधिकार और भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498A के तहत शिकायत दर्ज करने के उसके अधिकार के बारे में भी सूचित करना चाहिए।

आश्रय गृहों और चिकित्सा सुविधाओं के कर्तव्य

यदि घरेलू हिंसा के किसी पीड़ित को आश्रय गृह की आवश्यकता है तो अधिनियम की धारा 6 के तहत आश्रय गृह का प्रभारी व्यक्ति आश्रय गृह में घरेलू हिंसा के पीड़ितों को उपयुक्त आश्रय प्रदान करेगा।

इसके अलावा अधिनियम की धारा 7 में कहा गया है कि यदि किसी पीड़ित व्यक्ति को चिकित्सा सहायता की आवश्यकता होती है तो चिकित्सा सुविधा का प्रभारी व्यक्ति पीड़ित व्यक्ति को ऐसी सहायता प्रदान करेगा।

सरकार के कर्तव्य

यह अधिनियम आगे सरकार के कर्तव्यों और कार्यों को बताते हुए कुछ प्रावधानों को निर्धारित करता है। ऐसे कर्तव्यों में शामिल हैं;

  • इस अधिनियम के प्रावधानों का सार्वजनिक मीडिया के माध्यम से व्यापक प्रचार किया जाना चाहिए ताकि हमारे देश के नागरिक ऐसे प्रावधानों से अच्छी तरह अवगत हों।
  • केंद्र और राज्य सरकार दोनों के अधिकारियों को जैसे पुलिस अधिकारियों और न्यायिक सेवाओं के सदस्यों को अधिनियम के प्रावधानों के बारे में समय-समय पर संवेदीकरण (सेंसटाइजेशन) और जागरूकता प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) दिया जाना चाहिए।
  • केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि इस अधिनियम के तहत महिलाओं को सेवाएं प्रदान करने से संबंधित विभिन्न मंत्रालयों के प्रोटोकॉल का पूरी लगन से पालन किया जाए।

मजिस्ट्रेट को आवेदन

पीड़ित व्यक्ति, उस इलाके के संरक्षण अधिकारी या पीड़ित व्यक्ति की ओर से कोई अन्य व्यक्ति मजिस्ट्रेट को आवेदन कर घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत एक या एक से अधिक राहत का दावा कर सकता है। आवेदन में अधिनियम द्वारा निर्धारित आवश्यक सभी विवरण शामिल होने चाहिए।

मजिस्ट्रेट सुनवाई की तारीख तय करेगा जो आवेदन प्राप्त होने की तारीख से 3 दिन से अधिक नहीं होगी। इसके अलावा, मजिस्ट्रेट को अधिनियम की धारा 12 के तहत किए गए सभी आवेदनों को उसकी पहली सुनवाई की तारीख से 60 दिनों की अवधि के भीतर निपटाने का भी लक्ष्य रखना चाहिए। इसके अलावा घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 मजिस्ट्रेट को निम्नलिखित आदेश और राहत देने के लिए अधिकृत (ऑथराइज) करता है।

मौद्रिक राहत

आवेदन का निपटारा करते समय मजिस्ट्रेट प्रतिवादी को घरेलू हिंसा के परिणामस्वरूप पीड़ित व्यक्ति और पीड़ित व्यक्ति के किसी भी बच्चे को हुए खर्च और नुकसान को पूरा करने के लिए मौद्रिक राहत का भुगतान करने के लिए कह सकता है और इस तरह की राहत में पीड़ित की कमाई का नुकसान, चिकित्सा खर्च, किसी संपत्ति के नुकसान के कारण होने वाली हानि, पीड़ित व्यक्ति और उसके बच्चों का भरण-पोषण, जैसा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत आवश्यक है, शामिल हो सकता है।

  • दी गई आर्थिक राहत उचित और पर्याप्त होनी चाहिए और पीड़ित व्यक्ति के जीवन स्तर के अनुसार होनी चाहिए।
  • अधिनियम, मजिस्ट्रेट को पीड़ित व्यक्ति द्वारा अपेक्षित उचित एकमुश्त (लम सम) भुगतान या भरण-पोषण का मासिक भुगतान करने के लिए अधिकृत करता है।
  • मजिस्ट्रेट आर्थिक राहत के आदेश की प्रति, अधिकार क्षेत्र वाले पुलिस थाने के प्रभारी को भेजेगा।

प्रतिवादी को पीड़ित को मौद्रिक मुआवजे का भुगतान निर्धारित समय के भीतर करना होगा और यदि वे ऐसा करने में विफल रहता है तो मजिस्ट्रेट प्रतिवादी के नियोक्ता (एंप्लॉयर) या देनदार को सीधे पीड़ित को भुगतान करने का या प्रतिवादी की मजदूरी, वेतन, या ऋण का एक हिस्सा अदालत में जमा करने का निर्देश दे सकते है और उस राशि को मौद्रिक राहत के पूरा होने के अंत में समायोजित (एडजस्ट) किया जा सकता है।

अधिनियम की धारा 22 यह भी निर्धारित करती है कि प्रतिवादी मजिस्ट्रेट द्वारा निर्देशित मानसिक यातना (टॉर्चर) और भावनात्मक संकट सहित किसी भी क्षति या चोट के लिए पीड़ित को मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा।

हिरासत के आदेश

घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 21 के तहत, जब मजिस्ट्रेट को घरेलू हिंसा से संबंधित एक आवेदन प्राप्त होता है, तो उसके पास किसी भी बच्चे या बच्चों की हिरासत को पीड़ित या पीड़ित की ओर से आवेदन करने वाले व्यक्ति को निर्देशित करने का अधिकार है। 

संरक्षण का आदेश

यदि मजिस्ट्रेट संतुष्ट है कि घरेलू हिंसा हुई है तो वे प्रतिवादी को घरेलू हिंसा या घरेलू हिंसा के किसी भी कार्य को करने से रोकने के लिए पीड़ित व्यक्ति के पक्ष में एक संरक्षण आदेश पारित कर सकते हैं। मजिस्ट्रेट प्रतिवादी को पीड़ित व्यक्ति से संपर्क करने, पीड़ित व्यक्ति के रोजगार के स्थान पर प्रवेश करने या पीड़ित व्यक्ति के आश्रितों या रिश्तेदारों को हिंसा करने से भी रोक सकते है।

निवास का आदेश

अधिनियम की धारा 19 के तहत यदि मजिस्ट्रेट संतुष्ट है कि घरेलू हिंसा हुई है तो मजिस्ट्रेट प्रतिवादी को, साझा घर में पीड़ित व्यक्ति के कब्जे को परेशान करने से रोकने के लिए या प्रतिवादी या उसके किसी रिश्तेदार को साझा घर में प्रवेश करने से रोकने के लिए और प्रतिवादी को साझा घर में अपने अधिकारों को अस्वीकार करने से रोकने के लिए, साझा घर से उसको निकलने के लिए आदेश पारित कर सकता है।

अधिकार क्षेत्र और प्रक्रिया

प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट या क्षेत्र के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत को इस अधिनियम के तहत मामलों की सुनवाई करने का अधिकार है। हालांकि, अधिनियम की धारा 27 निम्नलिखित कारकों के बारे में बताती है;

  • पीड़ित व्यक्ति उस क्षेत्र में स्थायी रूप से या अस्थायी रूप से रहता है या व्यवसाय करता है।
  • प्रतिवादी क्षेत्र की स्थानीय सीमा के भीतर निवास करता है, व्यवसाय करता है या कार्यरत (एंप्लॉयड) है।
  • सक्षम न्यायालय संरक्षण आदेश या कोई अन्य आदेश, जैसा भी मामला हो, देने के लिए उत्तरदायी होगा।

अधिनियम की धारा 28 में कहा गया है कि इस अधिनियम के तहत उत्पन्न होने वाली सभी कार्यवाही आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 के प्रावधानों द्वारा शासित होगी।

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 का विधायी आशय

घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 को अधिनियमित करने के विधायी इरादे पर इंद्र शर्मा बनाम वी.के.वी.सरमा के मामले में सावधानीपूर्वक चर्चा की गई है। यह कहा गया था कि इस तरह के अधिनियम को अधिनियमित करने का कारण उन महिलाओं के अधिकारों को संरक्षण प्रदान करना है जो परिवार में होने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा की शिकार होती हैं। यह अधिनियम महिलाओं को उनके घर की चार दीवारी के भीतर हिंसा का सामना करने से बचाता है।

मद्रास उच्च न्यायालय ने वंदना बनाम टी. श्रीकांत के मामले में आगे कहा कि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 संविधान के तहत उन महिलाओं के गारंटीकृत अधिकारों को अधिक प्रभावी संरक्षण प्रदान करने के लिए एक अधिनियम है, जो परिवार में होने वाली किसी भी प्राकर की हिंसा का शिकार हैं।

यह अधिनियम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के साथ-साथ भारतीय कानूनी व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, ताकि वे अपने घर में सुरक्षित महसूस कर सकें। यह कानून का एक संपूर्ण भाग है क्योंकि यह विभिन्न अधिकारियों की शक्तियों और कर्तव्यों, पीड़ितों को उपलब्ध राहत, घरेलू हिंसा के संबंध में शिकायत दर्ज करने के लिए कदम, घरेलू हिंसा के पीड़ितों को प्रदान की जाने वाली सहायता, भारतीय न्यायपालिका की शक्ति और सीमा और केंद्र सरकार की नियम बनाने की शक्ति को निर्धारित करता है। यह अधिनियम घरेलू हिंसा के पीड़ितों को सिविल उपचार प्रदान करता है और अधिनियम के अधिनियमित होने से पहले, घरेलू हिंसा के पीड़ितों ने सिविल अदालतों का सहारा लेकर तलाक, बच्चों की हिरासत, किसी भी रूप में निषेधाज्ञा (इनजंक्शन) या भरण-पोषण जैसे सिविल  उपचार की मांग की थी। इसलिए, अधिनियम ने भारतीय विधायिका में आवश्यक परिवर्तन लाए है।

हालांकि अधिनियम में घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण के लिए आवश्यक कदम शामिल हैं, लेकिन यह परिवार के पुरुष सदस्यों के लिए कोई उपाय प्रदान करने में विफल रहता है और एलजीबीटीक्यू समुदाय के सदस्यों के बीच सहवास (कोहेबिट) और वैवाहिक संबंधों को पहचानने में भी विफल रहता है। इसलिए, इन्हें भारतीय समाज से घरेलू हिंसा को एक आवश्यक बुराई के रूप में पूरी तरह से समाप्त करने के लिए इस अधिनियम में शामिल किया जाना चाहिए।

  • https://www.scconline.com/blog/post/2020/07/27/law-on-domestic-violence-protection-of-women-from-domestic-violence-act-2005/  
  • https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/15436/1/protection_of_women_from_domestic_violence_act%2C_2005.pdf  
  • https://sunderlandsocialsciences.wordpress.com/2018/09/21/how-is-domestic-violence-a-social-problem/  

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"घरेलू हिंसा" पर निबंध

“घरेलू हिंसा” पर निबंध

( Essay in Hindi on domestic violence )

प्रस्तवना :-

घरेलू हिंसा से तात्पर्य उस हिंसा और दुर्व्यवहार से है जो घरेलू हिंसा जैसे विवाह के बाद में होती है। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि घरेलू हिंसा केवल शारीरिक नहीं है, बल्कि किसी भी प्रकार का व्यवहार है जो पीड़ित पर सत्ता और नियंत्रण हासिल करने की कोशिश करता है।

यह जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों को प्रभावित कर सकता है और यह मूल रूप से एक साथी, पति या पत्नी या परिवार के अंतरंग सदस्य के अधीन है। घरेलू हिंसा पर हम आगे इसके कारणों और प्रभावों के बारे में जानेंगे।

घरेलू हिंसा के कारण :-

अक्सर महिलाएं और बच्चे घरेलू हिंसा का आसान निशाना होती हैं। घरेलू हिंसा एक भीषण अपराध है जो कई मौतों का कारण भी बनता है। घरेलू हिंसा के कुछ सबसे सामान्य कारण निरक्षरता और पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता हैं।

पुरुष प्रधान समाज इस समस्या में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा दहेज भी उन प्रमुख कारणों में से एक है जो नवविवाहित दुल्हनों के खिलाफ हिंसा का परिणाम है।

दुनिया के कई हिस्सों में महिलाओं पर शारीरिक हमला करना और भद्दे कमेंट करना आम बात है। यह भी घरेलू हिंसा का ही रूप है।

इतना ही नही इसमे बच्चे भी इस अमानवीय व्यवहार का अधिक से अधिक शिकार हो जाते हैं। समाज के दोहरे मापदंड और पाखंड को पहचानना बहुत ही जरूरी है।

बहुत बार दुर्व्यवहार करने वाला या तो मानसिक विक्षिप्त होता है या उसे मनोवैज्ञानिक परामर्श की आवश्यकता होती है।

हालांकि एक अधिक सामान्य शब्द में घरेलू हिंसा संचयी गैर-जिम्मेदार व्यवहार का परिणाम है जिसे समाज का एक वर्ग प्रदर्शित करता है।

यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इसमे केवल दुर्व्यवहार करने वाला ही जिम्मेदार नहीं है, बल्कि वे भी जिम्मेदार हैं जो ऐसा होने देते हैं और केवल मूकदर्शक के रूप में कार्य करते हैं।

घरेलू हिंसा के प्रकार :-

घरेलू हिंसा के कई दुष्परिणाम होते हैं जो घरेलू हिंसा के प्रकार पर निर्भर करते हैं। यह शारीरिक रूप से भावनात्मक रूप और यौन शोषण के रूप से, यहाँ तक कि आर्थिक रूप में भी होता है।

एक शारीरिक शोषणकर्ता शारीरिक बल का प्रयोग करता है जो पीड़ित को घायल करता है या उनके जीवन को खतरे में डालता है।

इसमें मारना घूंसा मारना, गला घोंटना, थप्पड़ मारना और अन्य प्रकार की हिंसा शामिल है। इसके अलावा दुर्व्यवहार करने वाला पीड़ित को चिकित्सा देखभाल से भी इनकार करता है।

इसके अलावा भावनात्मक शोषण होता है जिसमें व्यक्ति पीड़ित को धमकाता है और डराता है। इसमें उनके आत्म-मूल्य को कम करना भी शामिल है।

इसमें उन्हें नुकसान पहुंचाने या सार्वजनिक अपमान की धमकी देना शामिल है।

इसी तरह लगातार नाम-पुकार और आलोचना भी भावनात्मक शोषण के रूप में गिना जाता है। उसके बाद यौन शोषण होता है जिसमें अपराधी अवांछित यौन गतिविधि के लिए बल प्रयोग करता है।

यदि साथी इसके लिए सहमत नहीं है, तो उसे मजबूर किया जाता है जो उसे यौन शोषण का कारण बनता है। अक्सर आर्थिक शोषण होता है जहां दुर्व्यवहार पीड़ित के पैसे और उनके आर्थिक संसाधनों को नियंत्रित करता है।

वे ऐसा उन पर नियंत्रण करने और उन्हें पूरी तरह से उन पर निर्भर बनाने के लिए करते हैं। अगर एक जीवन साथी को आपसे पैसे की भीख मांगनी पड़े, तो यह आर्थिक शोषण के रूप में गिना जाता है। इससे पीड़िता के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है।

निष्कर्ष :-

घरेलू हिंसा के कई रूप हैं जिनमें शारीरिक आक्रामकता शामिल है जैसे लात मारना और काटना और यह यौन शोषण या भावनात्मक शोषण के रूप में भी हो सकता है।

घरेलू हिंसा के संकेतों को पहचानना और दुर्व्यवहार करने वाले की रिपोर्ट करना आवश्यक है यदि यह आपके या आपके आसपास हो रहा है तो इसके खिलाफ आवाज उठाये।

लेखिका :  अर्चना  यादव

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घरेलू हिंसा पर निबंध (Essay on Domestic violence in hindi)

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Essay on Domestic Violence in India in Hindi

भारत एक ऐसा देश है जहां पर कई प्रकार के नियम और नीष्ठान जैसी चीजों का विवरण मिलता है । भारत जितना ज्यादा विकसित और प्रचलित है उतना ही ज्यादा अपराध करने के लिए भी जाना जाता है।वैसे तो भारत में हर वर्ष होने वाले अपराध की गणना बढ़ते जाती है परंतु कुछ ऐसे भी अपराध है जिनको बताना और लिखना आसान नहीं है। इन्हीं अपराधों की गिनती में आजकल ऐसे अपराध भी जुड़ने लग गए हैं जो समाज और समाज सुधारक द्वारा किया जाता है। समाज में होने वाली ऐसी बहुत सारी अवहेलना है और दुर्घटनाएं हैं जो हिंसक तरीके से देखा जाता है। यहां पर तो वैसे ही अपराधों की गणना में बहुत सारे अपराध और अपराधियों की गिनती हो जाती है परंतु उन अपराधियों को कभी नहीं पकड़ा जा सकता जो मानसिक क्षति और शारीरिक क्षति देती हो।

कुछ ऐसे ही दूर अवहेलना अभी देखी जा रही है समाज में परंतु ना कोई इसके खिलाफ बोलता है और ना कोई आवाज उठाता है। बेशक यह सब डर के कारण से हो सकता है परंतु यहां पर हर किसी को अपने से मतलब है। यही कारण है कि उन्नति पूर्व क्षेत्रों में समाज को खली और डरपोक होती जा रही है जबकि छोटे-छोटे कस्बों में समाज एक दूसरे से मिल कर आगे बढ़ रही है। ऐसे नहीं आजकल हर घर में घरेलू हिंसा बढ़ती जा रही।

Table of Contents

घरेलू हिंसा क्या है :-

घरेलू हिंसा का तात्पर्य है घर के अंदर होने वाली शारीरिक या मानसिक तनाव या फिर कोई ऐसी क्षति जो आपके शरीर पर गंभीरता से पड़ी हो यह सभी घरेलू हिंसा कहलाते हैं।2005 के डॉमेस्टिक वायलेंस एक्ट के तहत देखा जाए तो अपराधियों को इसमें आईपीसी 498 ए के तहत अपराधी को कठिन सजा दी जाएगी। घरेलू हिंसा का शिकार होने वाले लोगों की गणना में सबसे पहले आती है घर की महिलाएं। घर की महिलाओं पर किए जाने वाला शोषण और देने जाने वाला तकलीफ सब ही घरेलू हिंसा का एक उदाहरण है। वैसे तो घरेलू हिंसा सहना अपराध है परंतु आज के समय में जहां औरतें आदमियों से कदम से कदम मिलाकर चल रही है वहां घरेलू हिंसा जैसा अपराध होना भी गंभीर बात है।

अधिकांश महिलाएं घरेलू हिंसा के कारण आत्महत्या जैसी घिनौनी चीजों के बारे में सोचते हैं परंतु वह इसका कोई निवारण नहीं करना चाहती। यदि वह इसके खिलाफ आवाज उठाते हैं तो उनके आवाज को दबाने की पूरी कोशिश की जाती है। पहले के समय में जहां औरतों को सिर्फ काम करने की मशीन और घर में रखी जाने वाली अनपढ़ नारी समझा लगा था वही आज वह नारी घर के बाहर की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर लेकर चल रही है। इन सब का खिलाफ करना ही घरेलू हिंसा है। किसी भी कारण से बदसलूकी या बदतमीजी करना घरेलू हिंसा में आता है।  

घरेलू हिंसा का कारण और होने वाले शिकार :-

घरेलू हिंसा के जैसे लाखों कारण है परंतु यदि दूसरे नजरिए से देखा जाए तो घरेलू हिंसा के बहुत सारे कारण है जैसे कि औरतों का घर से बाहर जाना, पुरुषों के साथ बहस करना , दहेज के कारण, लड़कियों को जन्म देने के कारण, परिवार के हित में बोलने के कारण,आदि जैसी समस्याओं पर महिलाओं के साथ घरेलू शोषण किया जाता है परंतु या शोषण पुरुषों के साथ भी होता है जैसे की बेरोजगारी के कारण, सही ढंग से काम ना करने के कारण, बात ना करने के कारण, आदि जैसे चीजों पर पुरुषों के साथ भी शोषण होता है। इस भैया व शोषण का शिकार बालिकाएं भी होती है जोकि किसी का पीछा करने के कारण, छेड़छाड़ करने के कारण, जल्दी विवाह कर देने के कारण, आगे की शिक्षा प्राप्त करने के कारण, आदि जैसी चीजों पर छोटी छोटी लड़कियों के साथ भी शोषण होता है।

शोषण का अधिकतम शिकार महिलाएं और बेरोजगार पुरुष तथा छोटी छोटी बालिका ने भी होती है जो कि अन्य सामाजिक करतूतों के कारण शोषित होती हैं। यही सब कारण बाद में हिंसा के रूप में बदल जाता है।

घरेलू हिंसा से होने वाले नुकसान:-

घरेलू हिंसा से वैसे तो देश और परिवार को बहुत ज्यादा क्षति पहुंचती है परंतु इससे सबसे ज्यादा नुकसान उन लोगों को होता है जो इसके शिकार होते हैं जैसे कि महिलाएं और छोटी लड़कियां। इससे वैसे तो परेशान होने के बाद लोग आत्महत्या तक का चुनाव करते हैं परंतु यदि किसी को मानसिक क्षति पहुंचती है तो वह पागल तक हो जाता है। बाद में वह खाना-पीना छोड़ कर डरा सहमा रहने लगता है और लोगों से दूर रहना पसंद करने लगता है।धीरे-धीरे वह अपनी हालत को बद से बदतर करके अपने प्राण को त्याग देता है जिस कारण उसके अपराधी को किसी भी प्रकार का कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता। ज्यादातर पीड़ित को मार दिया जाता है परंतु उसे इस प्रकार साबित कर देते हैं कि वह खुद से मरा है।अधिकतर मारपीट के मामले दहेज और महिलाओं के साथ ही होते हैं जबकि छोटी छोटी बालिकाओं के साथ बलात्कार जैसे दुष्कर्म सामने आते हैं। अधिकांश लोगों के अंदर इस चीज की कोई भी जानकारी ना होने के कारण किसी भी प्रकार की मदद करने में सक्षम नहीं रहते।

घरेलू हिंसा से बचाव:-

घरेलू हिंसा वैसे तो एक अपराध है परंतु इसका बचाव करना हमारी जिम्मेदारी है।कहां जाता है किसी भी अपराध को सहना अपराध ही होता है इस कारण घरेलू हिंसा से बचाव करना उसी की जिम्मेदारी है जो उसे सह रहा है।यदि किसी पर घरेलू हिंसा हो रहा है तो उसके बचने की कई सारे तरीके हैं।हर क्षेत्र में घरेलू हिंसा के कारण ऐसे लाखों केस दर्ज कराए जाते हैं जो  पेटियो में और फाइलो में बंद होकर रह जाती है।घरेलू हिंसा से यदि कोई बचना चाहता तो सबसे पहले उसे इतना मजबूत होना चाहिए जितना आज की महिलाएं हो गई है। पहले के समय में तो महिलाओं को किसी भी चीज का अधिकार नहीं था परंतु आजकल सरकार द्वारा दिए गए अधिकारों का महिलाओं को जोर-शोर से फायदा उठाना चाहिए।हर क्षेत्र में उन्नति कर रही महिलाएं किसी भी तरह कमजोर नहीं है यह साबित करने का सबसे अच्छा मौका आज है। यदि किसी के साथ किसी प्रकार का शोषण या हिंसा हो रहा है तो उसे पुलिस को 999 नंबर डायल करके अपनी कंप्लेंट लिखवाने की पूरी आजादी है। और पकड़े जाने पर कठिन से कठिन सजा देना पुलिस की जिम्मेदारी है। समाज को भी इसके लिए लोगों की मदद करनी चाहिए मिलजुलकर उन्हें उनकी परेशानियों से निकालना चाहिए।

यदि हिंसा से बाहर आना है तो लोगों की बातों को मानना छोड़ दो क्योंकि जितना हम उनसे डरेंगे और उनकी बातों को मानेंगे लोग उतना ही हमारे ऊपर दबाव डालते जाएंगे। आज की जनता चाहती है कि अपने अंदर हर किसी को दबाकर रखें परंतु उभरकर निकलना हमारी जिम्मेदारी है। यदि कोई हम पर शोषण करता है तो हमें उसी खिलाफ आवाज उठाने की पूरी छूट है। चाहे फिर वह कोई बड़ा से बड़ा अधिकारी या फिर अपना खुद का परिवार ही क्यों ना हो। यदि किसी को आप से दिक्कत है तो उसकी दिक्कत को हटाओ ना कि खुद को। घरेलू हिंसा का साथ देना उतना ही बड़ा अपराधी जितना घरेलू हिंसा करना। इसे सहना भी एक अपराध है इसलिए सहना बंद करो और अपने हक के लिए लड़ो। बता दो सबको कि हम किसी से कम नहीं है और चाहे तो कुछ भी कर सकते हैं।

1. घरेलू हिंसा का सीधा मतलब क्या है?

उत्तर:  घरेलू हिंसा का मतलब है किसी को भी मानसिक या शारीरिक क्षति देना। कुछ इस प्रकार का तनाव जिस कारण उसे ज्यादा परेशानी हो।

2. घरेलू हिंसा के सबसे शिकार बनने वाले व्यक्ति कौन है?

उत्तर: घरेलू हिंसा महिलाओं को सबसे ज्यादा शिकार बनाया जाता है क्योंकि वह तो ना पढ़ी लिखी होती है और ना ही अपना बचाव करने में सक्षम।

3. बालिकाओं पर किस प्रकार से शोषण होता?    

उत्तर: बालिकाओं पर सबसे ज्यादा प्रताड़ना जैसे गलत काम किए जाते हैं और इसी कारण उनके ऊपर भाषण दबाव डाला जाता है जो कि एक शोषण का ही हिस्सा है।

4. घरेलू हिंसा का कारण क्या है?

उत्तर:यदि देखा जाए तो घरेलू हिंसा के बहुत सारे कारण हैं जिनमें से सबसे आगे दहेज है।

5. क्या पुरुषों पर भी घरेलू हिंसा जैसा दूर बर्ताव होता है?

उत्तर: पुरुषों पर भी बेरोजगार होने पर घरेलू हिंसा जैसे कि मानसिक तनाव दिया जाता है।          

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भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा

domestic violence essay in hindi

By विकास सिंह

violence against women in india in hindi

हमने स्कूली छात्रों के लिए भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर कई तरह के निबंध और अनुच्छेद उपलब्ध कराए हैं। छात्रों को आम तौर पर परीक्षा के समय या स्कूल के भीतर या स्कूल के बाहर निबंध लेखन प्रतियोगिता के दौरान पूर्ण निबंध या केवल पैराग्राफ लिखने के लिए इस विषय को सौंपा जाता है। छात्रों की जरूरतों को पूरा करने के लिए सभी निबंध बहुत ही सरल और आसान शब्दों का उपयोग करके लिखे गए हैं।

भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा, violence against women in india in hindi (100 शब्द)

देश में आधुनिक दुनिया में तकनीकी सुधार के लिए भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा बढ़ रही है। महिलाओं के लिए हिंसा विभिन्न प्रकार की होती है और यह घर, सार्वजनिक स्थान या कार्यालय जैसी किसी भी जगह पर हो सकती है।

यह महिलाओं से जुड़ा बड़ा मुद्दा है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि यह देश की लगभग आधी विकास दर में बाधक है।

भारतीय समाज में महिलाओं को हमेशा से ही प्राचीन समय से भोग की वस्तु माना जाता रहा है। वे सामाजिक संगठन और पारिवारिक जीवन के समय से पुरुषों द्वारा अपमान, शोषण और यातना के शिकार हुए हैं।

भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर लेख, violence against women in india in hindi (150 शब्द)

देश में सामाजिक जीवन की उत्पत्ति से लेकर कई शताब्दियां चलीं और गईं, समय ने लोगों के दिमाग और पर्यावरण को बहुत बदल दिया है, हालांकि महिलाओं के खिलाफ हिंसा में थोड़ा बदलाव नहीं हुआ है। समय असहाय महिलाओं द्वारा सहन किए गए सभी कष्टों (जैसे यौन भेदभाव, शोषण, उत्पीड़न, आक्रामकता, ह्रास, अपमान आदि) का वास्तविक प्रत्यक्षदर्शी है।

भारतीय समाज में महिलाएं इतनी असहाय हैं जहां कई महिला देवी की पूजा की जाती है। वेदों में, महिलाओं का महिमा मंडन किया जाता है क्योंकि माँ का अर्थ है जो जीवन का निर्माण और पोषण कर सकती है। दूसरी ओर, उन्होंने पितृसत्तात्मक समाज में पुरुषों द्वारा खुद को दबाया और वशीभूत पाया।

महिलाओं के खिलाफ हिंसा घरेलू होने के साथ-साथ सार्वजनिक, शारीरिक, भावनात्मक या मानसिक हो सकती है। महिलाओं के मन में हिंसा का डर है जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में भागीदारी की कमी का कारण बनता है। महिलाओं के मन में हिंसा का डर इतना गहरा है जो समाज में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को पूरी तरह से हटाने के बाद भी आसानी से बाहर नहीं हो सकता है।

भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर निबंध, 200 शब्द:

भारत एक पारंपरिक पुरुष-प्रधान देश है जहाँ महिलाओं को प्राचीन काल से समाज में विभिन्न हिंसा का सामना करना पड़ता है। जैसा कि दुनिया तकनीकी सुधार में आगे बढ़ रही है, भौतिक समृद्धि की उन्नति, आदि; महिलाओं के साथ अप्राकृतिक सेक्स और हिंसा की दर भी जारी है।

बलात्कार और नृशंस हत्याएं अब आम हो चुकी हैं। अन्य हिंसाएं उत्पीड़न, हमला और चेन-स्नैचिंग आदि की तरह हैं, जो आधुनिक भारतीय समाज में दैनिक दिनचर्या में शामिल हैं। मुक्त भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा काफी हद तक बढ़ गई है। दहेज हत्या, हत्या, दुल्हन जलना आदि समाज में अन्य हिंसा को जन्म दे रहे हैं। महिलाओं के खिलाफ हिंसा में वृद्धि के साथ देश में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रगति में बाधा है।

समाज में दहेज प्रथा की निरंतर प्रथा यह साबित करती है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा कभी खत्म नहीं हो सकती। यह हिंसा के कई आयामों को कवर करने वाली एक जटिल घटना है। यह समाज में युवा लड़कियों की स्थिति को कम करता है और साथ ही उनकी गरिमा को कम करता है।

शादी के समय, यदि कोई दुल्हन अपने साथ पर्याप्त दहेज नहीं लाती है, तो वह वास्तव में शादी के बाद होने वाले दुर्व्यवहार के उच्च जोखिम में होगी। हजारों लड़कियां रोजाना इस सामाजिक समस्या का शिकार बनती हैं।

भारत में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा, domestic violence against women in india in hindi (250 शब्द)

यहाँ पुरुष प्रधान समाज के कारण भारत में महिलाओं के खिलाफ कई हिंसाएँ होती हैं। आमतौर पर महिलाओं को दहेज हत्या, यौन उत्पीड़न, धोखा, हत्या, बालिका शोषण, डकैती, आदि जैसे विभिन्न प्रकार के अपराधों का सामना करना पड़ता है, भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध के रूप में गिना जाने वाली महिलाओं के खिलाफ हिंसा बलात्कार, अपहरण और अपहरण, शारीरिक और मानसिक रूप से अत्याचार है। दहेज हत्या, पत्नी की पिटाई, यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़, लड़कियों का आयात आदि। महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं और व्यापक होते जा रहे हैं।

हिंसा शब्द का अर्थ किसी को शारीरिक रूप से चोट पहुंचाना है। इसमें वास्तविक चोट के बिना मौखिक दुर्व्यवहार या मनोवैज्ञानिक तनाव शामिल हो सकता है जो मन को चोट पहुंचाता है और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाता है। बलात्कार, हत्या, अपहरण, अपहरण के मामले महिलाओं के खिलाफ आपराधिक हिंसा हैं, लेकिन दहेज हत्या, यौन शोषण, पत्नी की पिटाई, घर या कार्यालयों में दुर्व्यवहार महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामले हैं।

महिलाओं के विरूद्ध सामाजिक हिंसा के कुछ मामले हैं, जो कन्या भ्रूण हत्या के लिए पत्नी या पुत्रवधू को मजबूर करते हैं, विधवा को सती करने के लिए मजबूर करते हैं, आदि महिलाओं के खिलाफ सभी हिंसा समाज के बड़े हिस्से को प्रभावित कर रहे हैं।

देश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा खतरनाक रूप से हो रही है। यह सामाजिक कार्यकर्ताओं के कंधों पर दबाव और भारी जिम्मेदारी पैदा कर रहा है। हालांकि, सभी अधिकारों को समझने और लाभ लेने के लिए महिलाओं को खुद को सशक्त और जिम्मेदार बनाने की तत्काल आवश्यकता है।

भारत में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा, 300 शब्द:

भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा बहुत पुराना सामाजिक मुद्दा है जिसने इसकी जड़ को सामाजिक मानदंडों और आर्थिक निर्भरता के लिए गहराई से लिया है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा का यह मुद्दा क्रूर सामूहिक-बलात्कार, कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न, एसिड अटैक आदि के रूप में समय-समय पर सामने आता है, महिलाओं के खिलाफ हिंसा की एक बड़ी घटना 2012 में 16 दिसंबर को दिल्ली में हुई थी।

भारत में 23 साल की महिला के साथ क्रूर सामूहिक बलात्कार हुआ था। परिवर्तन की दुहाई देने से गुस्साए लोगों की भारी भीड़ सड़क पर आ गयी थी। समाज में नियमित रूप से इस तरह के मामले होने के बाद भी, यह महिलाओं के खिलाफ सामाजिक मानदंडों को बदलने वाला नहीं है।

यह लोगों के शिक्षा स्तर को बढ़ाने के बाद भी भारतीय समाज में बहुत ही जटिल और गहरी जड़ें जमा रहा है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा अक्षम कानूनी न्याय प्रणाली, कानून के कमजोर नियमों और पुरुष वर्चस्व वाली सामाजिक और राजनीतिक संरचनाओं के कारण होती है।

शोध के अनुसार यह पाया गया है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा कम उम्र में शुरू होती है, खासकर ग्रामीण इलाकों में परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों और दोस्तों द्वारा अक्सर यह की जाती है।

लोगों की जगह, संस्कृति और परंपरा के अनुसार पूरे देश में महिलाओं की स्थिति बदलती है। उत्तर-पूर्वी प्रांतों और दक्षिण की महिलाओं में अन्य क्षेत्रों की तुलना में बेहतर स्थिति है। कन्या भ्रूण हत्या की प्रथा के कारण, पुरुष बालकों की तुलना में बालिकाओं की संख्या बहुत कम हो गई है (2011 की जनगणना के अनुसार 1000 पुरुषों में लगभग 940 महिलाएं)। महिला बच्चे के प्रतिशत में इतनी बड़ी कमी सेक्स-चयनात्मक गर्भपात और बचपन के दौरान युवा लड़कियों की लापरवाही के कारण है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, भारत में महिलाएं अपने वैवाहिक घर में बहुत असुरक्षित हैं। समाज में महिलाओं के खिलाफ अन्य सामान्य हिंसा घरेलू हिंसा, एसिड हमले, बलात्कार, ऑनर किलिंग, दहेज हत्या, अपहरण और पति और ससुराल वालों द्वारा क्रूर व्यवहार है।

भारत में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा, violence against women in india in hindi (400 शब्द)

भारत में महिलाएं लगभग सभी समाजों, क्षेत्रों, संस्कृतियों और धार्मिक समुदायों में कई वर्षों से हिंसा का शिकार रही हैं। भारतीय समाज में महिलाओं को घरेलू, सार्वजनिक, शारीरिक, सामाजिक, भावनात्मक और मानसिक हिंसा का सामना करना पड़ता है। इतिहास में महिलाओं के खिलाफ हिंसा काफी हद तक स्पष्ट रूप से देखी जा रही है जो अभी भी बिना किसी सकारात्मक बदलाव के अभ्यास में है।

वैदिक काल के दौरान भारत में महिलाएं काफी आरामदायक स्थिति का आनंद ले रही थीं, हालांकि, देश भर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के अभ्यास के कारण यह स्थिति धीरे-धीरे कम हो गई। दूसरी ओर, महिलाओं के खिलाफ हिंसा के बढ़ते स्तर के साथ उन्होंने समाज में अपने शैक्षिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अवसरों को खोना शुरू कर दिया।

वे अपनी सामान्य जीवन शैली जीने के लिए सीमित हो गए जैसे कि स्वस्थ आहार, इच्छाधारी पोशाक, विवाह, आदि। यह महिलाओं को सीमित और आज्ञाकारी बनाने के लिए पुरुष प्रधान देश का बहुत बड़ा प्रयास था। उन्हें गुलाम और वेश्या बनाया जाने लगा।

भारत में महिलाओं को दैनिक दिनचर्या के विभिन्न कार्यों को करने के लिए पुरुषों के लिए वस्तुओं के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा। समाज में महिलाओं को पति को भगवान समझने, उनकी सलामती के लिए व्रत रखने और पतियों पर निर्भर रहने की संस्कृति है।

विधवाओं को फिर से शादी करने के लिए प्रतिबंधित किया गया और सती प्रथा का पालन करने के लिए मजबूर किया गया। पुरुषों ने महिलाओं को रस्सी या बांस की छड़ी से पीटना उनके अधिकारों को समझा। जब मंदिर में युवा लड़कियों को देवदासी के रूप में सेवा करने के लिए मजबूर किया गया, तो महिला के खिलाफ हिंसा ने बहुत तेज़ गति पकड़ ली।

इसने धार्मिक जीवन के एक हिस्से के रूप में वेश्यावृत्ति प्रणाली को जन्म दिया। मध्यकाल में दो प्रमुख संस्कृतियों (इस्लाम और हिंदू धर्म) की लड़ाई ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा को काफी हद तक बढ़ा दिया है। युवा लड़कियों को बहुत कम उम्र में शादी करने और समाज में पर्दा प्रणाली का पालन करने के लिए मजबूर किया गया था।

इसने उन्हें उनके पति और परिवार को छोड़कर लगभग पूरी दुनिया से अलग-थलग कर दिया। समाज में मजबूत जड़ों के साथ बहुविवाह भी शुरू किया गया था और महिलाएं अपने पति के प्यार को पाने के अपने अधिकार को खो देती हैं। कन्या भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा और वध-हत्या अन्य बड़ी हिंसा है।

महिलाओं को पौष्टिक भोजन की कमी, दवा के प्रति लापरवाही और उचित जांच, शैक्षिक अवसरों की कमी, बालिकाओं के यौन शोषण, बलात्कार, जबरन और अवांछित विवाह, सार्वजनिक, घर या कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न, छोटे अंतराल पर अवांछित उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है।

भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों और अपराधों की संख्या को कम करने के लिए, एक और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) कानून, 2015 भारत सरकार द्वारा बनाया गया है। ऐसा 2000 के पहले के भारतीय किशोर अपराधी कानून की जगह लेने के लिए किया गया है, खासकर निर्भया मामले के दौरान, जिसके दौरान एक आरोपी किशोर को रिहा किया गया था। इस अधिनियम में, जघन्य अपराधों के मामलों में किशोर आयु को दो वर्ष से घटाकर 18 वर्ष से 16 वर्ष कर दिया गया है।

भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा, 800 शब्द:

प्रस्तावना:.

भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा का तात्पर्य भारतीय महिलाओं पर होने वाली शारीरिक या यौन हिंसा से है। ज्यादातर ऐसे हिंसक कृत्य पुरुषों द्वारा किए जाते हैं, या दुर्लभ स्थिति में एक महिला भी शामिल हो सकती है। भारतीय महिलाओं के खिलाफ हिंसा के अधिकांश सामान्य रूप घरेलू हिंसा और यौन हमले हैं।

एक अधिनियम के लिए “महिलाओं के खिलाफ हिंसा” के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए, यह केवल इसलिए प्रतिबद्ध होना चाहिए क्योंकि पीड़ित महिला है। भारत में “महिलाओं के खिलाफ हिंसा” व्यापक रूप से प्रचलित है, जिसका मुख्य कारण सदियों से मौजूद लिंग असमानता है।

भारतीय सांख्यिकी:

भारत के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) पर महिलाओं के खिलाफ हिंसा सहित अपराध के आंकड़ों को प्रकाशित करने की जिम्मेदारी है। एनसीआरबी द्वारा अगस्त 2018 में जारी अंतिम वार्षिक रिपोर्ट में भारतीय महिलाओं के खिलाफ हिंसा की बढ़ती दर की ओर संकेत किया गया है।

भारत में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों में पिछले वर्षों की तुलना में 10% की वृद्धि हुई है और महिलाओं के खिलाफ होने वाले सभी अपराधों में 12% बलात्कार का मामला है। दिल्ली में 30% बलात्कार के मामले सबसे ज्यादा हैं, इसके बाद सिक्किम में 22% है।

हालांकि, यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि ये आंकड़े वास्तविक नहीं हैं क्योंकि बलात्कार और घरेलू हिंसा के कई मामले असंवैधानिक हैं।

महिलाओं के खिलाफ हिंसा के प्रकार:

महिलाओं के खिलाफ कई तरह के अपराध हिंसा की श्रेणी में आते हैं। भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कुछ सबसे सामान्य रूप नीचे सूचीबद्ध हैं-

1) यौन उत्पीड़न

एक महिला पर यौन हमला उस स्थिति को संदर्भित करता है जहां कोई व्यक्ति जानबूझकर उसकी सहमति के बिना किसी महिला के साथ अनुचित शारीरिक संपर्क बनाता है या उसे यौन कार्य में मजबूर करता है। यह एक यौन हिंसा है और इसमें अपराध जैसे – बलात्कार, ड्रग्स प्रेरित यौन हमले, बाल यौन शोषण और छेड़छाड़ शामिल हैं।

2) घरेलू हिंसा

महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा को घरेलू माहौल में अंजाम दिया जाता है। भारत के पितृसत्तात्मक समाज में घरेलू हिंसा के कई मामले अप्रमाणित हैं। इसमें एक महिला का शारीरिक शोषण शामिल है, उसके ससुराल वाले, पति या रिश्तेदार। दहेज प्रथा, लैंगिक असमानता जैसी सामाजिक बुराइयां मुख्य रूप से महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के लिए जिम्मेदार हैं।

3) ऑनर किलिंग

ऑनर किलिंग का तात्पर्य ऐसे परिवार के सदस्यों की हत्या से है, जो दूसरी जाति के किसी साथी को चुनकर या व्यभिचार करके कुछ मामलों में परिवार की मर्जी के खिलाफ जाकर परिवार की मर्जी के खिलाफ जाकर शर्मिंदा होते हैं।

4) जबरन वेश्यावृत्ति

पूरे भारत में कम उम्र की लड़कियों के लापता होने के मामले लगातार सामने आते हैं। इन लड़कियों को नौकरी हासिल करने या पैसा कमाने और दूसरे राज्यों में भेजने और बाद में वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर करने के बहाने लालच दिया जाता है।

भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कारण:

1) पितृसत्तात्मक समाज

भारतीय समाज पुरुष प्रधान समाज है जहाँ महिलाओं को परिवार से संबंधित बड़े निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। इसके अलावा, शोधों से पता चला कि भारत में लगभग 60% पुरुष सोचते हैं कि परिवार की महिलाओं को समय-समय पर पीटा जाना चाहिए। यह सामाजिक सेटअप महिलाओं को हमेशा कमजोर स्थिति में रखता है।

2) पारिवारिक कारक

एक महिला पर होने वाली घरेलू हिंसा अगली पीढ़ी तक ले जाने की प्रवृत्ति है। एक बच्चा जो अपने पिता को अपनी माँ को शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार करते हुए देखता है, जब वह बड़ा होता है तो अपनी पत्नी के साथ भी ऐसा ही करता है। परमाणु परिवारों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं अधिक हैं क्योंकि इस मामले में हस्तक्षेप करने और निपटाने के लिए कोई बड़ा व्यक्ति नहीं है।

3) शराब का सेवन

पति द्वारा शराब का नियमित सेवन एक परिवार में महिलाओं के खिलाफ हिंसा का प्रमुख कारण है। शराब न केवल महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के लिए जिम्मेदार है, बल्कि घरों के बाहर महिलाओं के खिलाफ अपराध भी है। शराब अपराधी या पीड़ितों को संज्ञानात्मक कौशल को उत्तेजित करता है, हिंसा को बढ़ावा देता है।

समाधान और निवारक उपाय:

महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने के कुछ प्रमुख समाधान नीचे सूचीबद्ध हैं-

1) पुलिस की चौकसी बढ़ाई

सभी क्षेत्रों में, विशेषकर रात के समय एकांत क्षेत्रों में पुलिस चौकसी बढ़ाई जानी चाहिए। पुलिस की उपस्थिति से सड़क पर किसी महिला के साथ मारपीट या उत्पीड़न होने की संभावना काफी कम हो जाती है। पुलिस अधिकारियों को बाजारों जैसे भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर तैनात किया जाना चाहिए, क्योंकि इन स्थानों पर महिलाएँ पूर्व संध्या या छेड़छाड़ जैसे अपराधों के लिए अतिसंवेदनशील होती हैं।

2) सामुदायिक पहल

महिलाओं द्वारा हिंसा पर अंकुश लगाने की दिशा में समुदाय द्वारा खुद की गई पहल, घरेलू हिंसा और साथ ही महिलाओं के साथ होने वाले अन्य अपराधों का मुकाबला करने का सबसे अच्छा तरीका है। शिक्षा विभाग द्वारा उत्तर प्रदेश में शुरू किए गए नारी अदालत कार्यक्रम ने महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

3) सुरक्षित परिवहन

महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के कई कार्य ट्रेन या बसों में मुख्य रूप से देर से घंटों के दौरान किए जाते हैं। अपराधी एकांत वाहन और पुलिस कर्मियों की अनुपस्थिति का फायदा उठाते हैं। देर रात के समय बसों या रेल डिब्बों में कम से कम एक महिला पुलिस कांस्टेबल को तैनात करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

भारतीय महिलाओं के खिलाफ हिंसा राष्ट्र और समाज पर एक धब्बा है। जब तक भारतीय महिलाओं को हिंसा का शिकार होना पड़ता है, तब तक भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी नुकसान उठाना पड़ता है। साथ ही, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और महिलाओं पर इसी तरह के अन्य अपराधों की घटनाएं भारतीय समाज को लगातार नुकसान पहुंचाती हैं और राष्ट्रीय प्रगति में बाधा डालती हैं। इसलिए, भारतीय महिलाओं के खिलाफ किसी भी प्रकार की हिंसा को कम करने के लिए कड़े जवाबी कदम उठाना अनिवार्य है।

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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घरेलू हिंसा पर निबंध Essay on domestic violence in hindi

Essay on domestic violence in hindi.

Essay on domestic violence is a social problem in hindi-हेलो दोस्तों कैसे हैं आप सभी,दोस्तों आज का हमारा यह आर्टिकल gharelu hinsa essay in hindi हमको समाज के उस हिस्से की जानकारी देता है जहां महिलाओं पर अत्याचार हो रहा है,हमारे समाज में आज महिलाओं की स्थिति दयनीय है आज भले ही हमारा देश लगातार प्रगति कर रहा है लेकिन इस प्रगति के साथ महिलाओं के साथ हिंसा होती जा रही है या महिलाओं की दुर्दशा होती जा रही है.

Essay on domestic violence in hindi

प्राचीन काल से ही महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा की जाती है महिलाओं को हमारे समाज में कोई विशेष अधिकार नहीं दिए जाते, महिलाएं हमारे समाज में सिकुलकर रह गई है सबसे पहले तो हमारे समाज में जब एक लड़की जन्म लेती तो उसको बोझ समझा जाता है उसके साथ हिंसा की जाती है उसको तरह तरह से प्रताड़ना दी जाती है.

जब उसकी शादी होती है तो उसके ससुराल वाले उस को तरह तरह से प्रताड़ित करते हैं,हमारे समाज में घरेलू हिंसा लगातार बढ़ रही है घरेलू हिंसा कई तरह से हो सकती है जैसे कि किसी स्त्री को परिवारजनों के द्वारा गाली गलोज करना या फिर उसकी पिटाई करना है या उस पर किसी भी तरह का दबाव डालना या दहेज प्रथा की मांग कर उसकी मानसिक स्थिति खराब करना,उससे कोई काम जबरदस्ती करवाना।

दोस्तों इस तरह घरेलू हिंसा हमारे समाज में पनप रही है हमारे समाज के पढ़े-लिखे लोग भी इस तरह के काम करने से नहीं चूकत,एक और हमारे समाज में नारी को देवी अवतार समझा जाता है एक और जहां नारी मां के समान होती है वहीं दूसरी ओर नारी के साथ हिंसा की जाती है इस तरह की हिंसा उसके परिवारजन ही करते हैं,हमारे समाज में महिलाओं की हिंसा प्राचीन काल से ही हो रही है

पहले के जमाने में बालविवाह जैसी कुप्रथाओं के वजह से हमारे समाज की महिलाओं के साथ गलत होता रहा था,महिलाओं के साथ नौकरों जैसा बर्ताव किया जा रहा है और दहेज प्रथा जैसी कुप्रथाएं हमारे समाज में प्राचीन काल से ही अभी तक विद्यमान है,लोग महिलाओं के साथ गुलामों की तरह बर्ताव करते थे और आजकल के जमाने में भी लोग यह सब करने से नहीं चूकता।

आजकल के जमाने में महिलाओं को सरकार द्वारा बहुत सारी मदद दी गई है और घरेलू हिंसा के खिलाफ बहुत सारे नियम पारितr किए हैं लेकिन फिर भी आज हमारे समाज में घरेलू हिंसा हो रही है हमारे समाज में आजकल के जमाने में बहुत सारी नारिया ऐसी हैं जो कुछ करना चाहती हैं जो समाज में अपना नाम कमाना चाहती हैं लेकिन समाज के कुछ लोग नारी को आगे बढ़ने के लिए कुछ नहीं करने देते क्योंकि वह अपने आप से नारी को आगे बढ़ते हुए नहीं देख सकते।

इसके अलावा बहुत सारे लोग लालच मैं आकर नारी को प्रताड़ित करते हैं इस तरह की घरेलू हिंसा हमें लगातार देखने को मिलती है हमारे समाज में कुछ लोगों द्वारा महिलाओं को जिंदा जला दिया जाता है लेकिन अगर इससे पहले वह इस घरेलू हिंसा की ओर कदम उठाएं तो वह इस दुर्दशा से बच सकतीहैं लेकिन महिलाएं अपने आपको उस माहौल में डालने की कोशिश करती हैं और नतीजा यह होता है कि एक दिन वह देश की नारी हम सबको छोड़कर चली जाती है।

हमारे देश में घरेलू हिंसा लगातार बढ़ती जा रही है इसको खत्म करने की जरूरत है हमें हमारे समाज में एक पहल करने की जरूरत है घरेलू हिंसा खत्म करने के लिए हर पुरुष को चाहिए कि वह महिलाओं का सम्मान करें उसको अपने हिसाब से कुछ करने की आजादी दे और किसी भी तरह से उस पर दबाव डाले और महिला के परिवार वालों को चाहिए की वह अपनी बहू को बेटी के सामान मानकर अच्छे से रखें, उससे दहेज की मांग ना करें। सभी को सोचने की जरूरत है कि अगर आप किसी को दहेज के लिए इस तरह से प्रताड़ित करोगे तो आपकी भी बेटी है कोई उसको भी प्रताड़ित कर सकता है।

  • दहेज़ प्रथा पर निबंध Dahej pratha ek abhishap essay in hindi

दोस्तों हमें इस घरेलू हिंसा जैसे अभिशाप को हमारे समाज से निकाल देने की जरूरत है क्योंकि हमारे देश का लगभग आधा हिस्सा महिलाएं हैं,अगर महिलाएं चाहे तो मिलकर हमारे देश का विकास कर सकती हैं,हमें महिलाओं को अपने अधिकार देने की जरूरत है आजकल महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सरकार ने बहुत उचित कदम उठाएं हैं जिसके चलते अगर किसी महिला पर घरेलू हिंसा की जाती है तो उस पर जल्द से जल्द कार्रवाई की जाती है हमें घरेलू हिंसा को रोकने की जरूरत है।

दोस्तों अगर आपको हमारा आर्टिकल  gharelu hinsa essay in hindi पसंद आए तो इसे शेयर जरूर करें और हमारा Facebook पेजलाइक करना ना भूलें और हमें कमेंट्स के जरिए यह बताएं कि आपको हमारी यह पोस्ट Essay on domestic violence in hindi कैसी लगी, अगर आप चाहें तो हमारी पोस्ट को सीधे अपने ईमेल पर पाने के लिए हमें सबस्क्राइब करें।

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kamlesh kushwah

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Nice essay than you

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Excellent sir but write a brief note about today’s Nari (violence)

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महिलाओं से साथ हिंसात्मक व्यवहार Essay on Violence against Women in Hindi

महिलाओं से साथ हिंसात्मक व्यवहार Essay on Violence against Women in Hindi

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आज जमाना कितना आगे निकल चुका है, इंसान चाँद पर जा चुका है, कम्प्यूटर युग आ चुका है पर पुरुष की मानसिकता में कोई बदलाव नही हुआ है। देश की राजधानी दिल्ली बलात्कार की राजधानी बन चुकी है। महिलाये वहां बिलकुल सुरक्षित नही है। एक आकडे के अनुसार दिल्ली में हर 18 मिनट में 1 बलात्कार हो जाता है।

निर्भया, कठुआ, बुलंदशहर जैसा काण्ड आज हमारे समाज पर कलंक बन चुका है। अपराधी वयस्क महिलाओं को तो शिकार बनाते ही है, छोटी बच्चियों को भी नही छोड़ते हैं। ऐसा क्यों हो रहा है।  क्या अब देश में पुरुष की मानसिकता ही दूषित और विकृत हो गयी है। 2017 में समूचे भारत देश में कुल 28947 बलात्कार की घटनाये हुई। सबसे अधिक घटनाये मध्य प्रदेश में हुई।

आजकल महानगरों में लिव-इन-रिलेशनशिप Live-in relationship का चलन बहुत बढ़ गया है। इसमें लड़का लड़की बिना किसी शादी के बंधन के साथ में रहते है। कई बार इस तरह से भी महिला का शोषण हो जाता है।

महिलाओं के साथ किस प्रकार के अपराध होते है TYPES OF CRIME HAPPEN AGAINST WOMEN

महिलाओं के साथ अपराध के कारण reasons of crime againt women.

इसकी सबसे बड़ी वजह है की आज भी पुरुषो की सोच में कोई अंतर नही आया है। आज का पुरुष मीडिया, टीवी और अखबार में तो बड़ी बड़ी बाते करता है। महिलाओं की आजादी और उनके हक की बात करता है पर घर के अंदर वो स्त्री को अपनी दासी ही समझता है। शादी के बाद पति अपनी पत्नी को पैर की जूती समझने लगता है। वो चाहता है कि पत्नी कमाकर भी लाये और घर के सारे काम भी करे। इ

21वीं सदी में होने के बाद भी आज हमारे देश में रोज हजारो लड़कियों को जलाकर मार दिया जाता है क्यूंकि उनके माँ बाप दहेज नही दे पाये। ससुराली जन आये दिन कोई न कोई फरमाइश करते रहते हैं।

उनको तरह तरह से परेशान किया जाता है। पुरुष सोचता है कि आखिर एक अबला औरत उसका क्या कर लेगी। पुरुष अपनी पत्नियों को छोटी छोटी बात पर पीट देते हैं। हमारे समाज में एक महिला का उत्पीड़न सिर्फ पुरुष ही नही करता है बल्कि दूसरी महिला भी करती है।

देश में महिलाओं को अपनी सुरक्षा के लिए क्या अधिकार प्राप्त है WHAT RIGHTS WOMEN HAVE IN INDIA FOR HER SAFETY?

समाज अपना नजरिया कैसे बदल सकता है how can society change the mindset on women.

सरकार को चाहिये कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए कठोर कानून बनाये जायें। बलात्कार के कानून को सख्ती से लागू करना चाहिये। आरोपियों को जमानत नही देनी चाहिये। कड़े कानून बनाने चाहिये। हमे महिलाओं की साक्षरता को बढ़ाना होगा।

निष्कर्ष Conclusion

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महिलाओं के विरुद्ध हिंसा पर निबंध (Violence against Women in India Essay in Hindi)

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा

21वीं सदी के भारत में तकनीकी प्रगति और महिलाओं के विरुद्ध हिंसा दोनों ही साथ-साथ चल रहे है। महिलाओं के विरुद्ध होती यह हिंसा अलग-अलग तरह की होती है तथा महिलाएं इस हिंसा का शिकार किसी भी जगह जैसे घर, सार्वजनिक स्थान या दफ्तर में हो सकती हैं। महिलाओं के प्रति होती यह हिंसा अब एक बड़ा मुद्दा बन चुकी है और इसे अब और ज्यादा अनदेखा नहीं किया जा सकता क्योंकि महिलाएं हमारे देश की आधी जनसँख्या का प्रतिनिधित्व करती हैं।

भारत में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा पर छोटे तथा बड़े निबंध  (Short and Long Essay on Violence against Women in India in Hindi, Bharat me Mahilaon ke Viruddh Hinsa par Nibandh Hindi mein)

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा पर निबंध – 1 (250 – 300 शब्द).

भारतीय समाज के पुरुष-प्रधान होने की वजह से महिलाओं को बहुत अत्याचारों का सामना करना पड़ा है। आमतौर पर महिलाओं को जिन समस्याओं से लड़ना पड़ता है उनमे प्रमुख है दहेज़-हत्या, यौन उत्पीड़न, महिलाओं से लूटपाट, नाबालिग लड़कियों से राह चलते छेड़-छाड़ इत्यादि।

भारतीय दंड संहिता के अनुसार बलात्कार, अपहरण अथवा बहला फुसला के भगा ले जाना, शारीरिक या मानसिक शोषण, दहेज़ के लिए मार डालना, पत्नी से मारपीट, यौन उत्पीड़न आदि को गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया है। महिला हिंसा से जुड़े केसों में लगातार वृद्धि हो रही है और अब तो ये बहुत तेज़ी से बढ़ते जा रहे हैं।

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा

हिंसा से तात्पर्य है किसी को शारीरिक रूप से चोट या क्षति पहुँचाना। किसी को मौखिक रूप से अपशब्द कह कर मानसिक परेशानी देना भी हिंसा का ही रूप है। इससे शारीरिक चोट तो नहीं लगती परन्तु दिलों-दिमाग पर गहरा आघात जरुर पहुँचता है। बलात्कार, हत्या, अपहरण आदि को आपराधिक हिंसा की श्रेणी में गिना जाता है तथा दफ़्तर या घर में दहेज़ के लिए मारना, यौन शोषण, पत्नी से मारपीट, बदसलूकी जैसी घटनाएँ घरेलू हिंसा का उदाहरण है। लड़कियों से छेड़-छाड़, पत्नी को भ्रूण-हत्या के लिए मज़बूर करना, विधवा महिला को सती-प्रथा के पालन करने के लिए दबाव डालना आदि सामाजिक हिंसा के अंतर्गत आते है। ये सभी घटनाएँ महिलाओं तथा समाज के बड़े हिस्से को प्रभावित कर रहीं हैं।

महिलाओं के प्रति होती हिंसा में लगातार इज़ाफा हो रहा है और अब तो ये चिंताजनक विषय बन चुका है। महिला हिंसा से निपटना समाज सेवकों के लिए सिरदर्द के साथ-साथ उनके लिए एक बड़ी जिम्मेदारी भी है। हालाँकि महिलाओं को जरुरत है की वे खुद दूसरों पर निर्भर न रह कर अपनी जिम्मेदारी खुद ले तथा अपने अधिकारों, सुविधाओं के प्रति जागरूक हो।

निबंध 2 (300 शब्द)

भारत में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा बहुत पुराना सामाजिक मुद्दा है जिसकी जड़ें अब सामजिक नियमों तथा आर्थिक निर्भरता के रूप में जम चुकी है। बर्बर सामूहिक बलात्कार, दफतर में यौन उत्पीड़न, तेजाब फेकनें जैसी घटनाओं के रूप में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा उजागर होती रही है। इसका ताज़ा उदाहरण है राजधानी दिल्ली में 16 दिसम्बर 2012 निर्भया गैंग-रेप केस।

23 साल की लड़की से किये गए सामूहिक बलात्कार ने देश को झकझोर कर रख दिया था। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में भीड़ बदलाव की मांग करती हुई सड़कों पर उतर आई। ऐसी घटनाओं के रोज़ होने के कारण इससे महिलाओं के लिए सामाजिक मापदंड बदलना नामुमकिन सा लगता है। लोगों की शिक्षा स्तर बढ़ने के बावजूद भारतीय समाज के लिए ये समस्या गंभीर तथा जटिल बन गई है। महिलाओं के विरुद्ध होती हिंसा के पीछे मुख्य कारण है पुरुष प्रधान सोच, कमज़ोर कानून, राजनीतिक ढाँचे में पुरुषों का हावी होना तथा नाकाबिल न्यायिक व्यवस्था।

एक रिसर्च के अनुसार महिलाएं सबसे पहले हिंसा का शिकार अपनी प्रारंभिक अवस्था में अपने घर पर होती हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को उनके परिवारजन, पुरुष रिश्तेदारों, पड़ोसियों द्वारा प्रताड़ित किया जाता है।

भारत में महिलाओं की स्थिति संस्कृति, रीती-रिवाज़, लोगों की परम्पराओं के कारण हर जगह भिन्न है। उत्तर-पूर्वी राज्यों तथा दक्षिण भारत के राज्यों में महिलाओं की अवस्था बाकि राज्यों के काफी अच्छी है। भ्रूण हत्या जैसी कुरीतियों के कारण भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार 1000 लड़कों पर केवल 940 लड़कियां ही थी। इतनी कम लड़कियों की संख्या के पीछे भ्रूण-हत्या, बाल-अवस्था में लड़कियों की अनदेखी तथा जन्म से पहले लिंग-परीक्षण जैसे कारण हैं।

राष्ट्रीय अपराधिक रिकार्ड्स ब्यूरो के अनुसार महिलाएं अपने ससुराल में बिलकुल भी सुरक्षित नहीं हैं। महिलाओं के प्रति होती क्रूरता में एसिड फेंकना, बलात्कार, हॉनर किलिंग, अपरहण, दहेज़ के लिए क़त्ल करना, पति अथवा ससुराल वालों द्वारा पीटा जाना आदि शामिल है।

Essay on Violence Against Women in India in Hindi

निबंध 3 (400 शब्द)

भारत में महिलाएं हर तरह के सामाजिक, धार्मिक, प्रान्तिक परिवेश में हिंसा का शिकार हुई हैं। महिलाओं को भारतीय समाज के द्वारा दी गई हर तरह की क्रूरता को सहन करना पड़ता है चाहे वो घरेलू हो या फिर शारीरिक, सामाजिक, मानसिक, आर्थिक हो। भारत में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को बड़े स्तर पर इतिहास के पन्नों में साफ़ देखा जा सकता है। वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति आज के मुकाबले बहुत सुखद थी पर उसके बाद, समय के बदलने के साथ-साथ महिलाओं के हालातों में भी काफी बदलाव आता चला गया। परिणामस्वरुप हिंसा में होते इज़ाफे के कारण महिलाओं ने अपने शिक्षा के साथ सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक समारोह में भागीदारी के अवसर भी खो दिए।

महिलाओं पर बढ़ते अत्याचारों के कारण उन्हें भरपेट भोजन नहीं दिया जाता था, उन्हें अपने मनपसंद कपड़े पहनने की अनुमति नहीं थी, जबरदस्ती उनका विवाह करवा दिया जाता था, उन्हें गुलाम बना के रखा जाने लगा, वैश्यावृति में धकेला गया। महिलाओं को सीमित तथा आज्ञाकारी बनाने के पीछे पुरुषों की ही सोच थी। पुरुष महिलाओं को एक वस्तु के रूप में देखते थे जिससे वे अपनी पसंद का काम करवा सके। भारतीय समाज में अक्सर ऐसा माना जाता है की हर महिला का पति उसके लिए भगवान समान है।

उन्हें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रखना चाहिए तथा हर चीज़ के लिए उन्हें अपने पति पर निर्भर रहना चाहिए। पुराने समय में विधवा महिलाओं के दोबारा विवाह पर पाबंदी थी तथा उन्हें सती प्रथा को मानने का दबाव डाला जाता था। महिलाओं को पीटना पुरुष अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते थे। महिलाओं के प्रति हिंसा में तेज़ी तब आई जब नाबालिग लड़कियों को मंदिर में दासी बना कर रखा जाने लगा। इसने धार्मिक जीवन की आड़ में वैश्यावृति को जन्म दिया।

मध्यकालीन युग में इस्लाम और हिन्दू धर्म के टकराव ने महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को बढ़ावा दिया। नाबालिग लड़कियों का बहुत कम उम्र में विवाह कर दिया जाता था और उन्हें हर समय पर्दे में रहने की सख्त हिदायत दी जाती थी। इस कारण महिलाओं के लिए अपने पति तथा परिवार के अलावा बाहरी दुनिया से किसी भी तरह का संपर्क स्थापित करना नामुमकिन था। इसके साथ ही समाज में बहुविवाह प्रथा ने जन्म लिया जिससे महिलाओं को अपने पति का प्यार दूसरी महिलाओं से बांटना पड़ता था।

नववधू की हत्या, कन्या भ्रूण हत्या और दहेज़ प्रथा महिलाओं पर होती बड़ी हिंसा का उदाहरण है। इसके अलावा महिलाओं को भरपेट खाना न मिलना, सही स्वास्थ्य सुविधा की कमी, शिक्षा के प्रयाप्त अवसर न होना, नाबालिग लड़कियों का यौन उत्पीड़न, दुल्हन को जिन्दा जला देना, पत्नी से मारपीट, परिवार में वृद्ध महिला की अनदेखी आदि समस्याएँ भी महिलाओं को सहनी पड़ती थी।

भारत में महिला हिंसा से जुड़े केसों में होती वृद्धि को कम करने के लिए 2015 में भारत सरकार जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन) बिल लाई। इसका उद्देश्य साल 2000 के इंडियन जुवेनाइल लॉ को बदलने का था क्योंकि इसी कानून के चलते निर्भया केस के जुवेनाइल आरोपी को सख्त सजा नहीं हो पाई। इस कानून के आने के बाद 16 से 18 साल के किशोर, जो गंभीर अपराधों में संलिप्त है, के लिए भारतीय कानून के अंतर्गत सख्त सज़ा का प्रावधान है।

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सीधे आपके मेल बॉक्स में अपना ई मेल एड्रेस सब्मिट करें, घरेलू हिंसा अधिनियम (protection of women from domestic violence act, 2005) के बारे मेंं खास बातेंं, livelaw news network.

7 Nov 2020 4:15 AM GMT

घरेलू हिंसा अधिनियम (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) के बारे मेंं खास बातेंं

भारत में कई घरेलू हिंसा कानून हैं। सबसे शुरुआती कानून दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 था जिसने दहेज देने और प्राप्त करने का कार्य अपराध बना दिया। 1961 के कानून को मजबूत करने के प्रयास में, 1983 और 1986 में दो नई धाराओं, धारा 498A और धारा 304B को भारतीय दंड संहिता में जोड़ा गया। सबसे हालिया कानून घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम (पीडब्ल्यूडीवीए) 2005 है।

घरेलू हिंसा को वयस्क द्वारा एक रिश्ते में दुरुपयोग की गई शक्ति दूसरे (महिला) को नियंत्रित करने को वर्णित किया जा सकता है। यह हिंसा और दुर्व्यवहार के अन्य रूपों के माध्यम से एक रिश्ते में नियंत्रण और भय की स्थापना करता है। यह हिंसा शारीरिक हमला, मनोवैज्ञानिक शोषण, सामाजिक शोषण, वित्तीय शोषण या यौन हमला का रूप ले सकती है, हालांकि घरेलू हिंसा की परिभाषा अधिनियम की धारा 3 में दिया गया है।

हाल में ही एनसीआरबी द्वारा जारी आकडे को देखे तो 2019 के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,05,861 मामले दर्ज किए गए, जिसमें 2018 से 7.3% की वृद्धि हुई (3,78,236 मामले)। आईपीसी के तहत महिलाओं के खिलाफ अपराध के अधिकांश मामलों को पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता के तहत दर्ज किया गया (30.9%), और अभी कोरोना वायरस महामारी के दौरान घरेलु हिंसा के मामले में काफी बढोतरी दर्ज की गई है।

महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा सदियों पुरानी घटना है। महिलाओं को हमेशा कमजोर, और शोषित होने की स्थिति में माना जाता था । हिंसा लंबे समय से महिलाओं के साथ होता है और पहले इसको स्वीकार किया जाता था। 2005 में स्थापित, घरेलू हिंसा अधिनियम (पीडब्ल्यूडीवीए) से महिलाओं की सुरक्षा, घरेलू रिश्तों में महिलाओं को हिंसा से बचाने के उद्देश्य से सांसद द्वारा बनाया गया एक कानून है।

PWDVA के तहत सबसे महत्वपूर्ण परिभाषाएँ क्या हैं?

घरेलू हिंसा की परिभाषा अच्छी तरह से लिखित और व्यापक और समग्र है। यह मानसिक, साथ ही शारीरिक शोषण को कवर करता है। उत्पीड़न, ज़बरदस्ती, स्वास्थ्य को नुकसान, सुरक्षा । इसके अतिरिक्त, निम्नलिखित के लिए विशिष्ट परिभाषाएँ हैं:

शारीरिक शोषण: अधिनियम या आचरण के रूप में परिभाषित किया गया है जो इस तरह की प्रकृति है कि शारीरिक दर्द, नुकसान, या जीवन के लिए खतरा, अंग या स्वास्थ्य या पीड़ित व्यक्ति के स्वास्थ्य या विकास को बिगाड़ने के लिए '। शारीरिक शोषण में मारपीट, आपराधिक धमकी और आपराधिक बल भी शामिल हैं।

कानून इसे "यौन प्रकृति" के आचरण के रूप में परिभाषित करता है, जो किसी महिला की गरिमा को अपमानित, अपमानित, अपमानित करता है या अन्यथा उल्लंघन करता है। '

मौखिक और भावनात्मक दुरुपयोग:

किसी भी रूप का अपमान / उपहास, जिसमें एक पुरुष बच्चे की अक्षमता के संबंध में, साथ ही बार-बार धमकी भी शामिल है।

आर्थिक दुर्व्यवहार:

पीड़ित और उसके बच्चों के जीवित रहने के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों से वंचित, किसी भी संपत्ति के निपटान के लिए, जिसमें पीड़ित के पास ब्याज / हिस्सेदारी और वित्तीय संसाधनों के निषेध / प्रतिबंध / प्रतिबंध शामिल हैं।

उत्तेजित व्यक्ति" की परिभाषा में कोई भी महिला शामिल है जो प्रतिवादी के साथ घरेलू संबंध में है या जो उनके द्वारा घरेलू हिंसा का शिकार होने का आरोप लगाती है। (पीडब्ल्यूडीवीए की धारा 2 (ए) देखें)

"प्रतिवादी" की परिभाषा में किसी भी वयस्क पुरुष को शामिल किया गया है जो कि पीड़ित महिला के साथ घरेलू संबंध में है या है, और जिसके खिलाफ महिला ने विवाहित महिला के पति या पुरुष साथी से राहत या किसी पुरुष या महिला रिश्तेदार की मांग की है या विवाह की प्रकृति के संबंध में एक महिला बंधी है |

भारतीय दंड संहिता, 1860 महिलाओं के खिलाफ क्रूरता के संबंध में इसमें कुछ संशोधन लागू करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण आपराधिक कानून है। धारा 498 ए क्रूरता के संदर्भ में कुछ चीजों से संबंधित है जो पढ़ा जाता है :-

· कोई भी जानबूझकर आचरण जो महिला को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करने या महिला के जीवन, अंग या स्वास्थ्य के लिए गंभीर चोट या खतरे का कारण बनने की संभावना है; या

· किसी भी संपत्ति या किसी मूल्यवान सुरक्षा के लिए किसी भी गैरकानूनी मांग को पूरा करने के लिए उसे या उससे संबंधित किसी भी व्यक्ति को मजबूर करने की दृष्टि से महिलाओं का उत्पीड़न या किसी भी मांग को पूरा करने के लिए उसके या उससे संबंधित किसी भी व्यक्ति द्वारा उसकी विफलता के कारण है।

"घरेलू संबंध" की परिभाषा किसी भी रिश्ते से है 2 व्यक्ति एक साझा घर में एक साथ रहते हैं और ये लोग हैं:

· आम सहमति से संबंधित (रक्त संबंध)

· शादी से संबंधित।

· विवाह की प्रकृति में एक संबंध (जिसमें लिव-इन संबंध शामिल होंगे)

"बच्चे" की परिभाषा अठारह वर्ष से कम आयु का कोई भी व्यक्ति है, और इसमें पालक, दत्तक या सौतेला बच्चा भी शामिल है।

PWDVA की अन्य प्रासंगिक विशेषताएं क्या हैं?

उपरोक्त परिभाषाओं के अलावा, निम्नलिखित कुछ अन्य महत्वपूर्ण पहलू हैं जिन्हें अधिनियम कवर करता है।

पीड़ित संसाधन

अधिनियम के तहत, पीड़ितों को पर्याप्त चिकित्सा सुविधा, परामर्श और आश्रय गृह के साथ-साथ आवश्यक होने पर कानूनी सहायता प्रदान की जानी चाहिए।

परामर्श: धारा 14

परामर्श, जैसा कि मजिस्ट्रेट द्वारा निर्देशित है, इसमें शामिल दोनों पक्षों को प्रदान किया जाना चाहिए, या जो भी पार्टी को आदेश दिया गया है, उसकी आवश्यकता होगी।

संरक्षण अधिकारी: धारा 9

अधिनियम के तहत, सरकार द्वारा हर जिले में संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए, जो अधिमानतः महिलाएं होनी चाहिए और योग्य होनी चाहिए। संरक्षण अधिकारी के कर्तव्यों में एक घरेलू घटना की रिपोर्ट दर्ज करना, आश्रय गृह, पीड़ितों के लिए चिकित्सा सुविधा और कानूनी सहायता प्रदान करना, और यह सुनिश्चित करना कि उत्तरदाताओं के खिलाफ जारी किए गए संरक्षण आदेश जारी किए जाते हैं।

संरक्षण के आदेश: धारा 18

पीड़ित की सुरक्षा के लिए सुरक्षा आदेश प्रतिवादी के खिलाफ मुद्दे हो सकते हैं, और इसमें शामिल हैं जब वह हिंसा करता है, सहायता करता है या उसे रोक देता है, किसी भी जगह में प्रवेश करता है, जहां पीड़ित व्यक्ति उसके साथ संवाद करने का प्रयास करता है या पीड़ितों की संपत्ति के किसी भी रूप को प्रतिबंधित करता है। पीड़ित के हित के लोगों के लिए हिंसा।

निवास: धारा 19

मजिस्ट्रेट दोनों पक्षों के निवास स्थान से प्रतिवादी को प्रतिबंधित करने का विकल्प चुन सकता है यदि उन्हें लगता है कि यह पीड़ित की सुरक्षा के लिए है। इसके अतिरिक्त, प्रतिवादी पीड़ित को निवास स्थान से बेदखल नहीं कर सकता है।

मौद्रिक राहत: धारा 20

प्रतिवादी को नुकसान की भरपाई के लिए पीड़ित को राहत प्रदान करना है, जिसमें आय, चिकित्सा व्यय, विनाश, क्षति या हटाने, और पीड़ित और उसके बच्चों के रखरखाव से संपत्ति के नुकसान के कारण होने वाले किसी भी खर्च शामिल हैं।

बच्चों की हिरासत: धारा 21

यदि आवश्यक हो तो प्रतिवादी के अधिकारों का दौरा करने के साथ, बच्चों के हिरासत को आवश्यकतानुसार पीड़ित को प्रदान किया जाना चाहिए।

PWDVA के क्या लाभ हैं?

यह कानून CEDAW (महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर कन्वेंशन) के बाद एक कानून बनाया गया था

'घरेलू संबंध' की परिभाषा सभी प्रकार की घरेलू व्यवस्था को कवर करने के लिए पर्याप्त है; उदाहरण के लिए, लिव-इन रिलेशनशिप(जब युगल शादी नहीं करते हैं)। इसमें शामिल किए जाने के साथ-साथ ऐसे रिश्ते जो कपटपूर्ण या द्वेषपूर्ण की श्रेणी में आते हैं, एक अग्रणी कदम था। लिव-इन रिलेशनशिप के संबंध में, भरत मठ और ऑर्म्स बनाम विजया रेंगाथन और ओआरएस के मामले में पारित एक विशिष्ट निर्णय में, यह निर्णय लिया गया था कि लिव-इन रिलेशनशिप से बाहर पैदा हुआ बच्चा संपत्ति (संपत्ति) का हकदार है। माता-पिता के स्वामित्व वाली संपत्ति, लेकिन पैतृक संपत्ति नहीं)। इसका मतलब है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला और उसके बच्चे को आर्थिक शोषण का खतरा नहीं हो सकता है। बेशक, हालांकि यह संपत्ति के स्वामित्व और हिंदू विवाह अधिनियम की अधिक प्रासंगिकता है, लेकिन यह जानकर खुशी हो रही है कि जिन बच्चों के विवाह के संबंध नहीं हैं, वे संपत्ति के अधिकार भी प्राप्त कर सकते हैं।

इसके अलावा, अधिनियम में पति या पुरुष पार्टनर के पुरुष और महिला रिश्तेदारों (जो उन स्थितियों में मदद करते हैं, जहां परिवार के सदस्य पत्नी को परेशान करते हैं) द्वारा किए गए घरेलू हिंसा से राहत मिलती है। इसके अतिरिक्त, "बच्चे" की परिभाषा भी पालक, दत्तक और सौतेले बच्चों की समावेशी है।

प्रतिवादी का कर्तव्य है कि वह पीड़ित को मुआवजा दे और वित्तीय संसाधनों को न काटे, और यह पीड़ित को न केवल हिंसा से बचाता है, बल्कि उसके हितों की भी रक्षा करता है। "साझा घर" की परिभाषा यह निर्दिष्ट करती है कि चाहे पीड़ित के पास कानूनी अधिकार / इक्विटी हो या नहीं; यदि उसने प्रतिवादी के साथ घर में निवास किया है, और वह उसके साथ हिंसक रहा है, तो प्रतिवादी अधिनियम के तहत उत्तरदायी है। इसका मतलब यह है कि भले ही उसके पास घर में कानूनी या वित्तीय हिस्सेदारी न हो, प्रतिवादी उसे बेदखल नहीं कर सकता।

संरक्षण के आदेश अधिकांश उदाहरणों में शामिल हैं, जहां प्रतिवादी संभवतः पीड़ित का लाभ उठा सकता था, और फिर से केवल उस परिभाषा तक सीमित नहीं है। अंत में, कानून द्वारा जारी किए गए आदेश पीड़ित को सबूत के रूप में मुफ्त दिए जाने चाहिए।

क्या सुधारा जा सकता है?

अधिनियम के सबसे महत्वपूर्ण बिंदुओं में से एक "स्पष्ट रूप से पीड़ित व्यक्ति" और "प्रतिवादी" की परिभाषाएं हैं; और घरेलू हिंसा के खिलाफ केवल महिलाओं के अधिकार अधिनियम में कैसे शामिल हैं। यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि यह अधिनियम महिलाओं को दिए गए अर्ध-आपराधिक या नागरिक उपचार प्रदान करता है, जिनकी आवश्यकता है एक विशेष सामाजिक संदर्भ है जिसमें भारत में घरेलू हिंसा होती है। न केवल महिलाएं घरेलू हिंसा पीड़ितों का एक उच्च अनुपात बनाती हैं, बल्कि कम राजनीतिक-सामाजिक और आर्थिक निर्णय लेने की शक्ति के साथ मिलकर उन्हें अपमानजनक घरेलू संबंधों से बाहर निकलने के लिए कठिन है।

एक मुद्दा जिसे पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है, वह है कतार के रिश्ते। हालांकि एस। खुशबू बनाम के फैसले में अधिनियम में उसी का कोई विशिष्ट विवरण नहीं है। कन्नीमाला और अन्र।, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप केवल विषमलैंगिक संबंधों में प्रमुख उम्र के अविवाहित व्यक्तियों में ही स्वीकार्य है।

जिन कार्यान्वयन में बाधाएं आ रहीं हैं

1) नियमों के वास्तविक कार्यान्वयन के साथ समस्याएं प्रतीत होती हैं। कई जिलों में, संरक्षण अधिकारियों को नियुक्त करने के बजाय, मौजूदा सरकारी अधिकारियों को यह जिम्मेदारी दी जाती है; और उसी (नीचे लिंक देखें) से निपटने के लिए सुसज्जित नहीं हैं। इसलिए वे अधिनियम में निर्दिष्ट अधिकांश कर्तव्यों को पूरा नहीं करते हैं, और इस वजह से पीड़ित अपने लाभ के लिए कानून का पूर्ण उपयोग करने में सक्षम नहीं हैं। इसी तरह, आश्रय घरों के संबंध में, अधिनियम ने निर्दिष्ट किया कि पर्याप्त रूप से समझा जाना चाहिए। हालांकि, वास्तविक कार्यान्वयन में शोध से पता चला है कि कई जिलों में एक भी आश्रय गृह नहीं है।

2) हालांकि अधिनियम में कुछ दोष हैं, और कार्यान्वयन वांछित होने के लिए बहुत कुछ छोड़ देता है; नीति अपने आप में काफी व्यावहारिक प्रतीत होती है। हां, यह समझना महत्वपूर्ण है कि पुरुषों को भी हिंसा का सामना करना पड़ता है। हां, अधिनियम को बेहतर ढंग से लागू करना और सरकार को इस बात के लिए जवाबदेह रखना जरूरी है कि उन्होंने उसी के संबंध में बेहतर सुधार के उपाय क्यों नहीं किए हैं। हालांकि, यह पहचानना भी महत्वपूर्ण है कि अधिनियम के समय (और अब भी), महिलाओं को न्याय तक पहुंच में आसानी प्रदान करने वाले कानून की शुरुआत करना अत्यंत महत्वपूर्ण था। इसकी वजह यह है कि दहेज के कारण होने वाली मौतों में महिलाओं के खिलाफ उच्च और घरेलू और यौन हिंसा होती है। इस अधिनियम का उद्देश्य उन महिलाओं को एक सरलीकृत प्रक्रिया प्रदान करना है जो घरेलू हिंसा का सामना करने के लिए नागरिक और अर्ध आपराधिक उपचार तक पहुँच प्राप्त करती हैं, और यह काफी हद तक ऐसा करने में सफल रही है।

भारत जैसे देश में, जिसमें पितृसत्तात्मक समाज है तब ये कानून घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम फलस्वरूप एक सराहनीय कानून है। यह महिलाओं के प्रति हिंसा की व्यापक किस्मों पर विचार और स्वीकार करता है। इस अधिनियम से पहले परिवार के अंदर घरेलू हिंसा की सभी विभिन्न स्थितियों को उन अपराधों के तहत निपटाया जाना था जो पीड़ित के लिंग के संबंध के अलावा आईपीसी में गठित हिंसा के संबंधित कृत्यों के तहत होते थे।

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Domestic Violence Act: घरेलू हिंसा अधिनियम को आसान भाषा में समझें, क्या लिव-इन में भी घरेलू हिंसा की हो सकती है FIR दर्ज?

SUNIL MAURYA

क्या है घरेलू हिंसा अधिनियम (domestic violence act) क्या लिव-इन में भी होता है घरेलू हिंसा, जानें, Read more crime news India crime story, photo gallery and वायरल वीडियो on Crime Tak.

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Domestic Violence Act 2005 : हाल में आई NCRB की रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना के दौरान घरेलू हिंसा के मामलों में इजाफा हुआ. इसके अलावा भी घर में होने वाले उत्पीड़न के मामले अक्सर जानकारी के बिना पुलिस तक नहीं पहुंच पाते हैं. ऐसे में ये जानना जरूरी होता है कि आखिर घरेलू हिंसा क्या है ?

इसका कानून क्या है? और क्या कोई घरेलू हिंसा हेल्पलाइन नंबर (Domestic Violence Helpline Number) भी है? और घरेलू हिंसा के कितने प्रकार होते है?

घर में होने वाली हिंसा को ही घरेलू हिंसा कहा जाता है. किसी भी महिला का शारीरिक, मानसिक यहां तक उसकी भावनाओं के साथ भी खिलवाड़ करना या फिर उसके खिलाफ गंदे तरीके के शब्दों का इस्तेमाल करना घरेलू हिंसा के दायरे में आता है.

इसके अलावा किसी भी तरह से किसी महिला का मनोवैज्ञानिक हो या फिर मौखिक या किसी भी तरह का यौन शोषण भी घरेलू हिंसा के तहत ही आता है. घरेलू हिंसा के बारे में महिला संरक्षण की धारा 2005 में बताया गया है. दरअसल, ये कानून साल 2005 में आया था. इसलिए इसमें 2005 जोड़ा गया है.

domestic violence essay in hindi

सवाल : क्या सिर्फ मारपीट करना ही इस एक्ट (Domestic Violence Act in Hindi) में शामिल है या फिर मानसिक प्रताड़ना भी?

जवाब : घरेलू हिंसा में महिला के साथ किसी भी तरह की हिंसा या प्रताड़ना करना इसमें शामिल है। महिला के साथ मारपीट की गई हो या फिर मानसिक तौर पर उसे प्रताड़ित किया गया हो, दोनों ही घरेलू हिंसा के तहत अपराध है। मानसिक हिंसा के तहत महिला को गाली-गलौज देना, उसे ताने मारते रहना, बच्चे या खाना बनाने को लेकर भावनात्मक रूप से ठेस पहुंचाना भी इसमें शामिल है। पैसे मांगने पर नहीं देना या पैसे छीन लेना भी इसी के तहत आता है।

सवाल : कई बार घरेलू हिंसा (Domestic Violence Act-2005) की शिकायत सबसे पहले पत्नी को घर से निकाल देता है ऐसे में इस डर से शिकायत नहीं कर पाते, तो क्या करें?

जवाब : यह बात सही है कि घरेलू हिंसा के अधिकतर मामले में शिकायत करने या ऐसा महसूस होने पर ही पति या उसके घर वाले विवाहिता को घर से निकाल देते हैं। ऐसे में समाज में बदनामी के डर से महिलाएं शिकायत करने में कतराती हैं। लेकिन कानून बनाते समय पहले ही यह सोच लिया गया था कि ऐसा होगा। इसलिए कानून में यह प्रावधान रखा गया है कि विवाद के दौरान भी पत्नी को उसी घर में रहने का पूरा अधिकार है। किसी भी तरह से पति या अन्य कोई विवाहिता को घर से नहीं निकाल सकता है। अगर कोई ऐसा करता है तो उसके खिलाफ पुलिस तुरंत एक्शन लेगी।

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सवाल : मान लिया कि नियम के तहत घरेलू हिंसा (Domestic violence Act-2005) की शिकायत करने के बाद भी उसी घर में तो क्या फिर जान का खतरा नहीं बढ़ जाएगा?

जवाब : बिल्कुल। जान को खतरा हो सकता है। इसीलिए इसे भी ध्यान में रखते हुए कानून में यह है कि अगर विवाहिता उस घर में नहीं रहना चाहती और कोर्ट से सुरक्षित स्थान की मांग करती है, तो कोर्ट पति को महिला के लिए अलग जगह पर रहनेे का आदेश दे सकती है। इस तरह आप सुरक्षित रहेंगी।

सवाल : क्या घरेलू हिंसा (Domestic violence Act-2005) के तहत लिव-इन पार्टनरशिप में रहने वाली लड़की भी शिकायत कर सकती है?

जवाब : हां, शिकायत कर सकती हैं। इस कानून के तहत न सिर्फ शादीशुदा महिलाएं बल्कि लिव-इन -पार्टनर में रहने वाली अविवाहित लड़की भी शिकायत दर्ज करा सकती है। वह अपने पार्टनर के खिलाफ मारपीट करने, भावनाओं को ठेस पहुंचाने की भी शिकायत कर सकती है।

सवाल : मैं नौकरी करना चाहती हूं लेकिन परिवार व पति मना कर रहे हैं तो क्या इसकी शिकायत Domestic violence Act-2005 में कर सकती हूं?

जवाब : हां, बिल्कुल। दरअसल, घरेलू हिंसा (Domestic violence Act-2005) में केवल शारीरिक या मानसिक शोषण ही नहीं आता बल्कि किसी को नौकरी करने से रोकना भी शामिल है। यही नहीं, अगर आप नौकरी नहीं करना चाहती हैं और दबाव डालकर आपसे नौकरी या कोई काम कराया जा रहा है तो यह भी घरेलू हिंसा के तहत ही आता है। इसके लिए आप घरेलू हिंसा कानून के तहत शिकायत दर्ज करा सकती हैं।

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सवाल : शिकायत करने पर क्या कोर्ट की तरह इसकी प्रक्रिया भी लंबी होती है? इसमें दोषी को कितनी सजा का प्रावधान है।

जवाब : नहीं, इसमेें कानूनी प्रक्रिया ज्यादा लंबी नहीं है। घरेलू हिंसा (Domestic violence Act-2005) के मामलों में 60 दिनों के भीतर ही फैसला देने का प्रावधान है, जिससे जल्द से जल्द न्याय मिल सके। इस कानून के तहत दोषी पाए जाने पर 1 साल की सजा और 20 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है।

सवाल : घरेलू हिंसा की शिकायत के लिए कोई हेल्पलाइन नंबर (domestic violence helpline number) है? किन नंबरों पर कर सकते हैं घरेलू हिंसा की शिकायतें?

जवाब : हां, बिल्कुल. घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic violence Act-2005) की शिकायत दर्ज कराने के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग ( NCW Domestic violence Helpline number ने भी एक हेल्पलाइन नंबर जारी किया है. वो नंबर है 7827170170 . इस नंबर पर आप शिकायत कर सकती हैं. इसके अलावा 1091 और 1291 नंबर पर भी महिलाएं अपनी शिकायत दे सकती हैं.

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Domestic Violence – Hindi

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घरेलू हिंसा

डिस्क्लेमर : ये गाइड किसी भी तरह की प्रोफेशनल मदद, सहयोग, सलाह, दि शा निर् देश और नि वारण की जगह नहीं इस्तेमाल की जानी चाहि ए.

ट्रिगर की चेतावनी : ट्रिगर शब्द का मतलब है ऐसी कोई बात या घटना, जो कि सी चीज़ का नकारात्मक कारण बन सकती है. इस टूलकि ट में कुछ शब्द ऐसे हैं जो यौन हिंसा पीड ़ितों के लिए दुखद हो सकते हैं यानी उनके लिए ट्रिगर का काम कर सकते हैं. इसका मतलब है उन शब्दों या वा क्यों को पढ़ने से पीड़ित या तो असहज महसूस कर सकते हैं या फि र चिं ति त हो सकते हैं. ये ट्रिगर उन्हें खराब लगने वा ली स्मृति यों में वा पस ले जा सकते हैं. इस टूलकि ट को पढ़ते समय अगर कि सी को यह अनुभव होता है, तो एक ग्राउंडिंग एक्सरसाइज़ के ज़रिए वो तुरंत बेहतर महसूस कर सकते हैं.

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अपनी आँखें बंद करें और अपनी सांस पर ध्यान केंद्रित करें. अपने आप को बताएं कि आप सुरक्षित हैं और आप ठीक हैं. अपनी सांस का इस्तेमाल, मौजूदा समय के बारे में सोचने और इस समय में खुद पर ध्यान केंद्रित करने के लिए करें. ऐसा आप जितनी बार करना चाहें कर सकते हैं, या नियमित अंतराल पर करें. यह ज़रूरी नहीं आप इस टूलकि ट या गाइड को खुद पढ़ें. आप ऐसे कि सी व्यक्ति के साथ बैठकर इसमें लिखी जानकारी को समझ सकते हैं जो आपके करीब हो और आपके लिए विश्वसनीय हो.

घरेलू हिंसा क्या है ? घरेलू हिंसा वो दुर्व्यवहार, अपमान या हिंसा है जो किसी महिला के साथ घर की चार-दीवारी के भीतर हो. हिंसा परिवार द्वारा की जा सकती है और यह शारीरिक, मानसिक, मौखिक, भावनात्मक, यौन या आर्थिक रूप में हो सकती है 20 .

घरेलू हिंसा की शिकायत किसके खिलाफ दर्ज की जा सकती है? घरेलू हिंसा की शिकायत आम तौर पर "परिवार" के खिलाफ दर्ज की जाती है, यानी उस व्यक्ति के खिलाफ जिसका पीड़ित व्यक्ति से कोई घरेलू संबंध हो. पीड़िता का इस व्यक्ति से खून का संबंध (जैसे माता-पिता या भाई-बहन), विवाह का संबंध (जैसे पति, ससुराल), अपने साथी से (लिव-इन रिलेशनशिप), या दूर की रिश्तेदारी का कोई संबंध हो सकता है. हिंसा या दुर्व्यवहार करने वाला पुरुष या महिला हो सकता है.

पीड़ित व्यक्ति घरेलू हिंसा की शिकायत कैसे दर्ज कर सकता है? पीड़ित या पीड़ित की ओर से कोई व्यक्ति शिकायत दर्ज करा सकता है. घरेलू हिंसा का शिकार व्यक्ति नीचे दिए गए विकल्पों में कोई चुन सकता है.

  • पुलिस थाना- पुलिस एक एफ़आईआर या घरेलू घटना की रिपोर्ट (DIR) दर्ज करेगी या पीड़ित को क्षेत्र में मौजूद प्रोटेक्शन ऑफ़िसर के पास जाने का निर्देश देगी.
  • प्रोटेक्शन ऑफ़िसर - एक सुरक्षा अधिकारी है जो ज़िले में होने वाले घरेलू हिंसा के मामलों के लिए, संपर्क का पहला सूत्र है. प्रोटेक्शन ऑफ़िसर पीड़ित को डीआईआर दर्ज करने और अदालत में मामला दर्ज करने में मदद करेगा 21
  • राष्ट्रीय महिला आयोग- राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) को घरेलू हिंसा, दहेज उत्पीड़न या यौन उत्पीड़न से जुड़ी शिकायतों की जांच करने का अधिकार है. राष्ट्रीय महिला आयोग का काम स्थानीय पुलिस की अगुवाई में होने वाली जांच पर निगरानी रखना और उसमें तेजी लाना है. आयोग उन मामलों में पीड़ित को सलाह देने का काम भी करता है जहां पीड़ित और उसके साथ दुर्व्यवहार करने वाला अदालत जाए बिना अपने विवाद को सुलझाने का मन रखते हैं. इसके अलावा आयोग का काम जांच समिति का गठन, स्पॉट पूछताछ, गवाहों और चश्मदीदों से पूछताछ, सबूत इकट्ठा करना और अपनी जांच के आधार पर शिकायत के बारे में रिपोर्ट तैयार करना है 22 .

प्रोटेक्शन ऑफ़िसर कौन है? प्रोटेक्शन ऑफ़िसर, घरेलू हिंसा पीड़ित व्यक्ति और व्यवस्था यानी पुलिस, वकील और अदालतों के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी हैं. उनकी भूमिका शिकायत दर्ज करने, वकीलों से जुड़ने और अदालत में मामला दर्ज करने की प्रक्रिया  में पीड़ितों की मदद करना है. जरूरत पड़ने पर वे पीड़ित की  मेडिकल जांच करवाने में भी मदद करते हैं. ये अधिकारी प्रत्येक ज़िले में राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते हैं. अधिकतर, प्रोटेक्शन ऑफ़िसर महिलाएं ही होती हैं. 

घरेलू घटना रिपोर्ट क्या है? घरेलू घटना की रिपोर्ट (DIR) घरेलू हिंसा की शिकायत मिलने पर बनाई जाने वाली रिपोर्ट है. रिपोर्ट प्रोटेक्शन ऑफ़िसर या ऐसी किसी एनजीओ द्वारा बनाई जाती है जो महिलाओं की मदद करती हैं. इसमें शामिल होता है:

  • पीड़ित का नाम:
  • आरोपियों के बारे में जानकारी(s):
  • हिंसा की घटना (या घटनाओं) का ब्यौरा:  

पीड़ित के क्या अधिकार हैं? पुलिस अधिकारी, प्रोटेक्शन ऑफ़िसर, एनजीओ या मजिस्ट्रेट, जिनके पास शिकायत दर्ज करवाई गई है, प्रभावित महिला को उन सभी राहतों के बारे में सूचित करते हैं जिनका वह लाभ उठा सकती है और जो कानून के तहत उसके अधिकार हैं 23 . पीड़ित के पास प्रोटेक्शन ऑर्डर (संरक्षण आदेश), कस्टडी का आदेश, आर्थिक सहायता, सुरक्षित निवास में रहने का अधिकार और मेडिकल सुविधाओं तक पहुंच का अधिकार है. सुनवाई के शुरुआती चरण में अदालत इन चीज़ों से संबंधित आदेश दे सकती है.   

राहत पाने के लिए पीड़ित व्यक्ति कोर्ट में कैसे अपील कर सकता है ? पीड़ित के लिए वकील की सहायता से, मजिस्ट्रेट के सामने एप्लीकेशन दायर करना ज़रूरी है. इसके ज़रिए पीड़ित को अदालत को बताना होगा कि वो अदालत से किस तरह की राहत प्राप्त करना चाहते हैं, जैसे सुरक्षा या संरक्षण संबंधी आदेश, निवास से जुड़ा आदेश, आर्थिक सहायता का निर्देश, मुआवज़े या हर्जाने का आदेश और अंतरिम आदेश. पीड़ित व्यक्ति वकील की सेवाएं ले सकते हैं या अपने प्रोटेक्शन ऑफ़िसर से मदद ले सकते हैं, या किसी एनजीओ से कानूनी सहायता के लिए कह सकते हैं.

अदालत किस तरह के संरक्षण आदेश पारित कर सकती है? आमतौर पर मजिस्ट्रेट जिस तरह के संरक्षण आदेश पारित कर सकते हैं उनमें शामिल हैं:

  • घरेलू हिंसा दोहराई न जाए इसे लेकर निषेधाज्ञा का आदेश. यह आदेश शिकायतकर्ता की अपील में लिखी बातों के आधार पर पारित किया जाता है.
  • आरोपी को पीड़िता के स्कूल/कॉलेज या दफ्तर जाने से रोकने संबंधी आदेश.
  • आरोपी द्वारा पीड़िता को दफ्तर जाने से रोकने पर आरोपी के खिलाफ आदेश.
  • आरोपी को स्कूल, कॉलेज या उस जगह पर जाने से रोकने संबंधी आदेश जहां पीड़ित के बच्चे जाते हैं.  
  • आरोपी अगर पीड़ित को स्कूल या कॉलेज जाने से रोकते हैं तो उनके खिलाफ आदेश.
  • आपोरी द्वारा पीड़ित से किसी भी तरह संपर्क करने पर रोक संबंधी आदेश.
  • आरोपी अगर पीड़ित व्यक्ति की संपत्ति को अलग करने की कोशिश करते हैं तो उन्हें रोकने संबंधी आदेश.  
  • आरोपी द्वारा संयुक्त बैंक लॉकर या खातों को संचालित करने पर रोक और पीड़ित को ये अधिकार सौंपने संबंधी आदेश.
  • पीड़ित के रिश्तेदारों या उस पर आश्रित किसी व्यक्ति से हिंसा किए जाने पर रोक लगाने संबंधी आदेश.

पीड़ित व्यक्ति, आरोपी या दुर्व्यवहार कर रहे व्यक्ति से तत्काल सुरक्षा की मांग कर सकते हैं. मजिस्ट्रेट अस्थायी रूप से, लेकिन एक तय समय सीमा के लिए, सुरक्षा प्रदान करेगा जब तक वह यह महसूस नहीं करता कि परिस्थितियों में बदलाव के चलते अब इस तरह के आदेश की जरूरत नहीं 24 .

सुरक्षित निवास को लेकर पीड़ित व्यक्ति अदालत से किस तरह के आदेश पा सकता है? अदालत के आदेश आम तौर पर आरोपी को नीचे दिए गए काम करने से रोक सकते हैं: 

  • साझा घर से पीड़ित को बेदखल करना या बाहर निकालना.  
  • साझा घर के उस हिस्से में आवाजाही करना जिसमें पीड़ित रहते हैं. 
  • साझा घर को अलग करना/उसे बेचना या पीड़ित के उसमें आने-जाने पर रोक लगाना.
  • साझा घर पर उनके हक को खत्म करना
  • पीड़ित व्यक्ति को उसके व्यक्तिगत सामान तक पहुंचने का अधिकार देने संबंधी आदेश.
  • आरोपी को आदेश जारी करना कि वो या तो साझा घर से खुद को दूर कर लें या वैकल्पिक निवास उपलब्ध करवाए या फिर उसके लिए किराए का भुगतान करें.  

पीड़ित किस तरह की आर्थिक या वित्तीय राहत का दावा कर सकते हैं? आर्थित राहत का दावा वास्तविक खर्च या एकमुश्त भुगतान के रूप में किया जा सकता है. इसके अलावा, आर्थित राहत पहले हुए नुकसान की भरपाई और भविष्य के ख़र्चों को पूरा करने के लिए दी सकती है. पीड़ित को हुई मानसिक पीड़ा के लिए भी मुआवज़े के रूप में आर्थिक राहत दी जा सकती है. आर्थिक राहत को निम्न रूप में समझा जा सकता है:

  • कमाई का नुकसान
  • मेडिकल या इलाज संबंधी खर्च
  • पीड़ित व्यक्ति से संपत्ति छीनने  या उसे नष्ट करने को लेकर हुआ नुकसान 
  • कोई अन्य नुकसान या शारीरिक या मानसिक चोट 
  • भोजन, कपड़े, दवाओं और अन्य बुनियादी ज़रूरतों से जुड़े ख़र्चों के भुगतान के लिए भी निर्देश दिए जा सकते हैं, जैसे- स्कूल की फ़ीस और उससे जुड़े खर्च; घरेलू खर्च आदि. इन ख़र्चों का हिसाब महीने के आधार पर किया जाता है.  

मजिस्ट्रेट के सामने अपील दाखिल करने के समय पीड़ित को क्या खुलासे करने होंगे? पीड़ित को अपने और आरोपियों के बीच भारतीय दंड संहिता, आईपीसी, हिंदू विवाह अधिनियम,  हिंदू दत्तक भरण-पोषण अधिनियम के तहत दर्ज पहले के किसी मामले की जानकारी देनी होगी. पीड़िता को यह भी बताना होगा कि रखरखाव को लेकर क्या कोई आवेदन पहले से दायर किया गया है और क्या कोई अंतरिम रखरखाव दिया गया है.

क्या शिकायत दर्ज करने पर आरोपी या दुर्व्यवहार कर रहे व्यक्ति को तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाएगा? यह संभव नहीं है कि शिकायत दर्ज करने पर दुर्व्यवहार कर रहे व्यक्ति को तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाए. घरेलू हिंसा से जुड़े क़ानूनों के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा के मामलों में गिरफ्तारी को लेकर दिशा निर्देश जारी किए हैं. उन मामलों में तुरंत गिरफ्तारी की जा सकती है जहां पीड़ित को गंभीर चोटें आई हों.

वित्तीय या आर्थिक दुर्व्यवहार क्या है? वित्तीय या आर्थिक दुर्व्यवहार तब होता है जब आरोपी पीड़ित व्यक्ति की पैसे से जुड़ी स्वतंत्रता को सीमित करता है. यह तब हो सकता है जब 25 : 

  •   दुर्व्यवहार करने वाला व्यक्ति आपके पैसे को नियंत्रित करता है.  
  •   दुर्व्यवहार करने वाला व्यक्ति आपको पैसे नहीं देता या आपकी ज़रूरत के मुताबिक पैसा नहीं देता.
  •   दुर्व्यवहार करने वाला व्यक्ति आपको नौकरी करने से रोकता है. 
  •   दुर्व्यवहार करने वाले व्यक्ति ने आपकी शादी से पहले या उसके दौरान मिले सोने, गहनों या दूसरी महंगी चीज़ों को आपसे छीन लिया है.

क्या मुझे अपने हक में अदालत से तत्काल कोई आदेश मिल सकता है? हां,  आप अपने साथ दुर्व्यवहार कर रहे लोगों के खिलाफ तुरंत सुरक्षा की मांग कर सकती हैं. मजिस्ट्रेट से आपको अस्थायी लेकिन तय समय सीमा के लिए सुरक्षा मिल सकती है 26  यानी जब तक वो यह महसूस नहीं करते कि हालात में बदलाव के चलते अब इस तरह के आदेश की ज़रूरत नहीं है 27  स्थिति के आधार पर मजिस्ट्रेट, आपको आश्रय दिलवाने, कस्टडी और आर्थिक राहत से जुड़े आदेश भी पारित कर सकता है. वो आपकी सुरक्षा के लिए रीस्ट्रेनिंग ऑर्डर यानी निरोधक आदेश भी पारित कर सकता है.

मुझे मेरे साझा घर से बाहर निकाला जा रहा है. मैं क्या कर सकती हूँ? अगर आप अपने साथी या अपने साथ दुर्व्यवहार करने वाले लोगों के साथ एक ही घर में सुरक्षित महसूस नहीं कर रही हैं,  तो आप अदालत से रेज़िडेंस ऑर्डर यानी निवास आदेश की अपील कर सकती हैं 28 . निवास आदेश आपकी इस तरह मदद कर सकता है:

  • आरोपियों द्वारा आपको घर से निकाले जाने पर रोक लगा सकता है
  • आरोपियों को घर छोड़ने और अगले आदेश तक घर में कदम न रखने का आदेश दे सकता है.
  • आरोपियों को आदेश दे सकता है कि वो आपके लिए किसी दूसरी रहने की जगह का इंतज़ाम करें

साझे घर पर आपका या आपके साथ दुर्व्यवहार करने वालों का अधिकार न होने के बावजूद  अदालत ऊपर दिए गए मामलों में आदेश दे सकती है.

मैं अपने साथी के साथ रहती हूँ और मुझे डर है कि मैं शारीरिक और यौन शोषण का शिकार हो रही हूं. क्या मैं घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज कर सकती हूं? यदि आप एक ही छत के नीचे अपने साथी के साथ रह रही हैं, तो यह एक साझा घर है. भले ही आप और आपका साथी शादीशुदा न हों, लेकिन यह एक घरेलू रिश्ता माना जाता है. आपके पास अपने प्रेमी/साथी के खिलाफ घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज करने का कानूनी अधिकार है. हालाँकि, अदालत को इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि आपका संबंध "विवाह की प्रकृति" में है क्योंकि भारत में लिव-इन संबंध पूरी तरह से कानून के दायरे में नहीं आते. इसकी शर्तें निम्न हैं 29 :    

  • रिश्ते की अवधि;
  • सार्वजनिक जगहों पर साथ आना-जाना;
  • घरेलू इंतज़ाम;
  • उम्र और वैवाहिक स्थिति;
  • सेक्स संबंध;
  • आर्थिक रूप से और दूसरे संसाधनों के ज़रिए एक साथ जुड़ा होना;
  • पार्टियाँ आयोजित करना, और;

क्या उस क्षेत्र में शिकायत दर्ज की जा सकती है जहां पीड़ित नहीं रहती है? हां, घटना की जगह की परवाह किए बिना किसी भी इलाके में शिकायत दर्ज की जा सकती है. इसे ज़ीरो एफ़आईआर कहा जाता है. ज़ीरो एफ़आईआर का मतलब है कि मामला पुलिस थाने के अधिकार क्षेत्र में न आने के बावजूद सीरियल नंबर "शून्य यानी ज़ीरो" के साथ एक एफ़आईआर दर्ज की जा सकती है. बाद में इसे संबंधित इलाके के पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित किया जा सकता है यानी जहां घटना हुई या पीड़िता रहती है. जांच केवल अधिकार क्षेत्र की पुलिस ही करेगी. ऐसा किया गया है ताकि एफ़आईआर दर्ज करने में लगने वाले समय को कम किया जा सके.

उदाहरण के लिए: यदि आपके पति आपको जयपुर में अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर करते हैं और आप अब दिल्ली में अपने माता-पिता के साथ हैं, तो आप दिल्ली में एफ़आईआर दर्ज कर सकती हैं. हालांकि, जांच जयपुर में पुलिस द्वारा की जाएगी.

क्या घरेलू हिंसा की शिकायत ऑनलाइन दर्ज की जा सकती? राष्ट्रीय महिला आयोग के ऑनलाइन पोर्टल पर पीड़ित घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज कर सकते हैं.

वकील की सेवाएं कैसे ली सकती हैं? सरकारी वकील या निजी वकील घरेलू हिंसा के मामलों को उठा सकते हैं 30 . वो मजिस्ट्रेट के सामने अपील करने में मदद कर सकते हैं और प्रोटेक्शन ऑर्डर व आर्थिक राहत पाने में आपकी मदद कर सकते हैं.

भारत में घरेलू हिंसा पर कौन से कानून लागू होते हैं? घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 इस मामले में लागू एक कानून है, जो खासतौर पर घरेलू हिंसा को संबोधित करता है. इसके अलावा भारतीय दंण्ड संहिता, 1860 की धारा 498-ए, जो क्रूरता को संबोधित करती है, घरेलू हिंसा के मामलों से जुड़ी है.

मुझे कैसे पता चलेगा कि मैं घरेलू हिंसा का सामना कर रही हूं? अगर आपको लगता है कि आपके जीवन साथी या परिवार के वो सदस्य जिनके साथ आप एक ही घर में रहती हैं आपके साथ हिंसक, डराने वाला या अपमान जनक व्यवहार कर रहे हैं, तो ये घरेलू हिंसा के संकेत हैं.

घरेलू हिंसा की घटना पीड़ित को भला-बुरा कहने या उसकी आलोचना करने के साथ शुरू हो सकती है यानी आपको मौखिक दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ सकता है. पीड़ित के साथ शारीरिक हिंसा भी की जा सकती है जिसमें- खींचतान, हाथापाई, धक्का देने, थप्पड़ मारने जैसी हरकतें शामिल हैं. आपका जीवन साथी आपको और आपके काम को नियंत्रित करने की कोशिश कर सकता है. वो आपको धमकाने, शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाने, या आपको आर्थिक रूप से नियंत्रित कर सकते हैं. ऐसे में आप भावनात्मक रूप से बिखरा हुआ महसूस कर सकती हैं. आप आत्मविश्वास की कमी, आत्मसम्मान की कमी या खुद को दोषी महसूस कर सकती हैं.

अक्सर घटना के बाद आरोपी "गलती" के लिए माफी माँगता है और फिर उसी तरह का व्यवहार करना जारी रखता है.

यदि मुझे घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ रहा है, तो मुझे क्या करना चाहिए? घरेलू हिंसा के शिकार लोग अक्सर बोलने से डरते हैं. उन्हें डर होता कि मामले को सामने लाने से स्थिति और बिगड़ सकती है, यहां तक कि उनके बच्चों को भी नुकसान पहुंच सकता है. नीचे दिए कुछ तरीकों से आप मदद पा सकती हैं:

  • आपके इलाके में मौजूद गैर-सरकारी संगठन यानी एनजीओ, आश्रय या सलाह देने का काम कर सकते हैं. अगर आप मामले को रिपोर्ट करने का फैसला लेती हैं एनजीओ आपको सभी कानूनी विकल्पों के बारे में जानकारी देकर आपका मार्गदर्शन कर सकती हैं. 
  • घरेलू हिंसा की घटना की रिपोर्ट पुलिस स्टेशन या राष्ट्रीय महिला आयोग की वेबसाइट पर करें. यदि आप पुलिस स्टेशन नहीं जा सकतीं, तो 100 नंबर या आयोग की हेल्पलाइन डायल करें. भारत सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन के दौरान, महिला आयोग ने रिपोर्ट करने के लिए एक व्हाट्सएप नंबर भी जारी किया है. इन नंबरों की जानकारी के लिए हमारे हेल्पलाइन सेक्शन को देखें.
  • अपने क्षेत्र में प्रोटेक्शन ऑफ़िसर से संपर्क करें जो आपको कानूनी प्रक्रिया, मेडिकल सहायता और आश्रय आदि के बारे में बताएँगे.

संदर्भ-निर्देश

19. दिल्ली में बलात्कार के मुक़द्दमों की कार्यवा ही पर हुआ एक विस्तृत अध्ययन (जनवरी २०१४ - मार्च २०१५) बलात्कार मामलों में सुनवा ई को लेकर, पीड ़ितों के अनुकूल कार्रवाई और प्रक्रियाएँ 20. सेक्शन ३, प्रोटेक्शन ऑफ़ वीमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वा यलेंस एक्ट, २००५ 21 न्याय, भारतीय कानून की व्याख्या, फाइलिंग ए कंप्लेंट अगेंस्ट डोमेस्टिक वायलेंस, https://nyaaya.org/family/filing-a-complaint-against-domestic-violence/ 22. फाइलिंग ए कंप्लेंट अगेंस्ट डोमेस्टिक वायलेंस, https://nyaaya.org/family/filing-a-complaint-against-domestic-violence/ , कं प्लेंट एं ड इन्वेस्टीगेशन सेल, http://ncw.nic.in/ncw-cells/complaint-investigation-cell 23. मोबिलीज़िंग फॉर एक्शन ऑन वायलेंस अगेंस्ट वीमेन: ए हैंडबुक फॉर आशा , https://nhm.gov.in/images/pdf/communitisation/asha/ASHA_Handbook-Mobilizing_for_Action_on_Violence_against_Women_English.pdf 24. न्याय, भारतीय कानून की व्याख्या इमीडियेट प्रोटेक्शन फॉर डोमेस्टिक वा यलेंस, https://nyaaya.org/family/immediate-protection-for-domestic-violence/ , सेक्शन २५, प्रिवेंशन ऑफ़ वी मेन फ्रॉम डोमेस्टिक वा यलेंस एक्ट, २००५ 25. स्टेइंग इन द हाउस/ रेजिडेंस आर्डर फॉर डोमेस्टिक वा यलेंस, https://nyaaya.org/family/staying-in-the-house-residence-order-for-domestic-violence/ 26. सेक्शन २५, प्रिवेंशन ऑफ़ वी मेन फ्रॉम डोमेस्टिक वा यलेंस एक्ट, २००५ 27. इमीडियेट प्रोटेक्शन फॉर डोमेस्टिक वा यलेंस, https://nyaaya.org/family/immediate-protection-for-domestic-violence/ 28. स्टेइंग इन द हाउस/रेजिडेंस आर्डर फॉर डोमेस्टिक वा यलेंस, https://nyaaya.org/family/staying-in-the-house-residence-order-for-domestic-violence/ 29. इंद्रा सरमा व. व.क.व. सरमा, MANU/SC/१२३०/२०१३ 30. सेक्शन २८ ऑफ़ द प्रोटेक्शन ऑफ़ वी मेन फ्रॉम डोमेस्टिक वा यलेंस एक्ट, २००५

domestic violence essay in hindi

The Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005 Handbook (Hindi)

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महिलाओं अब तो जागो

Violence Against Woman

बात अगर गांव की करें तो लड़की सन्‍नाटे रास्‍तों पर जाने से डरती है लेकिन उस डर का क्‍या करें, जो घर के अंदर पनपता है और लड़की के साथ बड़ा होता है। उस डर का क्‍या करें जो उसके पैदा होते ही उसके दिमाग में बैठ जाता है और उम्र के आधे पड़ाव को पार करने तक रहता है। जी हां हम बात कर रहे हैं घरेलू हिंसा की, जिसकी अनगिनत वारदातें हमारे देश में होती हैं, लेकिन दर्ज महज सौ-पचास होती हैं, वो भी चरम पर पहुंचने के बाद।

घरेलू हिंसा की शुरुआत होती है तब जब बच्‍ची अपने मां-बाप से खिलौना मांगती है। हमारा समाज उनको बचपन से ही उन्‍हें कमजोर बनाता है। जब लड़का छोटा होता है, तो हम उसके हाथों में बैट-बाल या स्‍पोर्टस का सामान पकड़ाते हैं, जिससे वह शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनता है। लेकिन लड़की को खेलने के लिए गुड्डा-गुडि़या या चूल्‍हा बर्तन वाले खिलौने देते हैं, जिससे वह शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होती चली जाती है। इसके साथ ही भावनाओं में बहती जाती है।

अब लड़कियां जैसे-जैसे बड़ी होती हैं घर की पाबंदियां और समाज की यातनाएं उन पर हावी होती चली जाती हैं। लड़का अपना अंडरगार्मेंट कहीं भी फैलाए, कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन अगर लड़की अपना अंर्तवस्‍त्र कही भी फैला दे तो, इसको अश्‍लील हरकत कहा जाता है। उनके पहनने, बोलने, चलने, लड़को से बात करने पर पाबंदीयों की झड़ी लगी रहती है।

आम तौर पर लोग घरेलू हिंसा को सिर्फ घर में मार-कुटाई ही समझते हैं, बल्कि सही मायने में लड़कियों के अरमानों को दबाना, घर के अंदर परिवार के सदस्‍यों द्वारा रोज-रोज मानसिक प्रताड़ना देना, गुस्‍से में उसके द्वारा परोसा हुआ खाना फेंक देना, उसके साथ गाली-गलौज करना, उसकी मंशा के विरुद्ध जाकर उसकी पढ़ाई रोक देना, आदि भी घरेलू हिंसा के ही रूप हैं। इसके अलावा यौन उत्‍पीड़न भी एक बड़ी हिंसा है, जिसके लिए आम तौर पर दूर के रिश्‍तेदार या पड़ोस के लोग जिम्‍मेदार होते हैं। ऐसे में जब लड़की विरोध करती है, तो बदनामी का हवाला देकर उसका मुंह बंद कर दिया जाता है। इस तरह की प्रताणना घर में ही नहीं, ससुराल जाने के बाद भी मिलती हैं। हालांकि उस समय दहेज प्रताड़ना भी उसमें जुड़ जाती है।

घरेलू हिंसा की बात करते वक्‍त हरियाणा, राजस्‍थान और पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश को अलग नहीं कर सकते जहां, ऑनर किलिंग की वारदातें सबसे ज्‍यादा होती हैं। ऑनर किलिंग का बीज असल में घरेलू हिंसा ही है। क्‍योंकि कोई भी मां-बाप, भाई, चाचा कभी भी अपनी बेटी या बहन को सीधे मौत के घाट नहीं उतार देता, उससे पहले पीड़िता को मार-कुटाई, गर्म सलाखों से जलाने से लेकर मानसिक प्रताड़नाएं झेलनी पड़ती हैं।

अगर हम यह सोचें कि नोएडा की आरुषि तलवार और नागपुर की अनीता की हत्‍या या फिर ऑनर किलिंग की शिकार लड़कियों की मौत के बाद उनके हत्‍यारों को पकड़ने की मांगों को लेकर जुलूस निकालने वाले महिला संगठन इसमें कुछ करेंगे, या इस हिंसा को रोकने की जिम्‍मेदारी पुलिस की है, तो हम गलत हैं। महिला संगठन सिर्फ जागरूकता पैदा कर सकते हैं, पुलिस सिर्फ उत्‍पीड़न करने वाले को सलाखों के पीछे डाल सकती है, कोर्ट सिर्फ न्‍याय दे सकता है, इनमें से कोई भी आपके घर के अंदर नहीं आ सकता। लिहाला जरूरत है सिर्फ सोच बदलने की।

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धारा 3 घरेलू हिंसा | Section 3 Domestic violence act in Hindi

आज के इस आर्टिकल में मै आपको “घरेलू हिंसा की परिभाषा  | घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 3 क्या है | Section 3 Domestic violence act in Hindi | Section 3 of Domestic violence act | धारा 3 घरेलू हिंसा अधिनियम | Definition of domestic violence ” के विषय में बताने जा रहा हूँ आशा करता हूँ मेरा यह प्रयास आपको जरुर पसंद आएगा । तो चलिए जानते है की –

घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 3 |  Section 3 of Domestic violence act

[ domestic violence act sec. 3 in hindi ] –, घरेलू हिंसा की परिभाषा.-.

इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए प्रत्यर्थी का कोई कार्य, लोप या कुछ करना या आचरण, घरेलू हिंसा गठित करेगा यदि वह,-

(क) व्यथित व्यक्ति के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन, अंग की या चाहे उसकी मानसिक या शारीरिक भलाई की अपहानि करता है, या उसे कोई क्षति पहुँचाता है या उसे संकटापन्न करता है या उसकी ऐसा करने की प्रवृत्ति है और जिसके अंतर्गत शारीरिक दुरुपयोग, लैंगिक दुरुपयोग, मौखिक और भावनात्मक दुरुपयोग और आर्थिक दुरुपयोग कारित करना भी है; या

(ख) किसी दहेज या अन्य संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति के लिए किसी विधि विरुद्ध माँग की पूर्ति के लिए उसे या उससे संबंधित किसी अन्य व्यक्ति को प्रपीड़ित करने की दृष्टि से व्यथित व्यक्ति का उत्पीड़न करता है या उसको अपहानि करता है या उसे क्षति पहुंचाता है या संकटापन्न करता है; या

(ग) खंड (क) या खंड (ख) में वर्णित किसी आचरण द्वारा व्यथित व्यक्ति या उससे संबंधित किसी व्यक्ति पर धमकी का प्रभाव रखता है; या

(घ) व्यथित व्यक्ति को, अन्यथा क्षति पहुँचाता है या उत्पीड़न कारित करता है, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक।

स्पष्टीकरण – इस धारा के प्रयोजनों के लिए.-

(i) “शारीरिक दुरुपयोग” से ऐसा कोई कार्य या आचरण अभिप्रेत है जो ऐसी प्रकृति का है, जो व्यथित व्यक्ति को शारीरिक पीड़ा, अपहानि या उसके जीवन, अंग या स्वास्थ्य को खतरा कारित करता है या उससे उसके स्वास्थ्य या विकास का हास होता है और इसके अंतर्गत हमला, आपराधिक अभित्रास और आपराधिक बल भी

(ii) “लैंगिक दुरुपयोग” से लैंगिक प्रकृति का कोई आचरण अभिप्रेत है, जो महिला की गरिमा का दुरुपयोग, अपमान, तिरस्कार करता है या उसका अन्यथा अतिक्रमण करता है।

(iii) “मौखिक और भावनात्मक दुरुपयोग” के अन्तर्गत निम्नलिखित हैं,(क) अपमान, उपहास, तिरस्कार गाली और विशेष रूप से संतान या नर बालक के न होने के संबंध में अपमान या उपहास; और (ख) किसी ऐसे व्यक्ति को शारीरिक पीड़ा कारित करने की लगातार धमकियाँ देना, जिसमें व्यथित व्यक्ति हितबद्ध है;

(iv) “आर्थिक दुरुपयोग” के अंतर्गत निम्नलिखित हैं :

(क) ऐसे सभी या किन्हीं आर्थिक या वित्तीय संसाधनों, जिनके लिए व्यथित व्यक्ति किसी विधि या रूढ़ि के अधीन हकदार है, चाहे वे किसी न्यायालय के किसी आदेश के अधीन या अन्यथा संदेय हो या जिनकी व्यथित व्यक्ति किसी आवश्यकता के लिए, जिसके अंतर्गत व्यथित व्यक्ति और उसके बालकों, यदि कोई हों, के लिए घरेलू आवश्यकताएं भी हैं, किन्तु जो उन तक सीमित नहीं हैं, स्त्रीधन, व्यथित व्यक्ति द्वारा संयुक्त रूप से या पृथक्तः स्वामित्व वाली संपत्ति, साझी गृहस्थी और उसके रखरखाव से संबंधित भाटक के संदाय, से वंचित करना;

(ख) गृहस्थी की चीजवस्त का व्ययन, आस्तियों का चाहे वे जंगम हों या स्थावर, मूल्यवान वस्तुओं, शेयरों, प्रतिभूतियों, बंधपत्रों और इसके सदृश या अन्य संपत्ति का कोई अन्य संक्रामण, जिसमें व्यथित व्यक्ति कोई हित रखता है या घरेलू नातेदारी के आधार पर उनके प्रयोग के लिए हकदार है या जिसकी व्यथित व्यक्ति या उसकी संतानों द्वारा युक्तियुक्त रूप से अपेक्षा की जा सकती है या उसका स्त्रीधन या व्यथित व्यक्ति द्वारा संयुक्तत: या पृथक्तः धारित करने वाली कोई अन्य संपत्ति और

(ग ) ऐसे संसाधनों या सुविधाओं तक, जिनका घरेलू नातेदारी के आधार पर कोई व्यथित व्यक्ति, उपयोग या उपभोग करने के लिए हकदार है, जिसके अंतर्गत साझी गृहस्थी तक पहुँच भी है, लगातार पहुँच के लिए प्रतिषेध या निर्बन्धन।

स्पष्टीकरण 2.- यह अवधारित करने के प्रयोजन के लिए कि क्या प्रत्यर्थी का कोई कार्य, लोप या कुछ करना या आचरण इस धारा के अधीन “घरेलू हिंसा” का गठन करता है, मामले के संपूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार किया जाएगा।

धारा 3 Domestic violence act

[ Domestic violence act Sec. 3 in English ] –

“ definition of domestic violence   ”–.

For the purposes of this Act, any act, omission or commission or conduct of the respondent shall constitute domestic violence in case it – 

(a) harms or injures or endangers the health, safety, life, limb or well-being, whether mental or physical, of the aggrieved person or tends to do so and includes causing physical abuse, sexual abuse, verbal and emotional abuse and economic abuse; or 

(b) harasses, harms, injures or endangers the aggrieved person with a view to coerce her or any other person related to her to meet any unlawful demand for any dowry or other property or valuable security; or 

(c) has the effect of threatening the aggrieved person or any person related to her by any conduct mentioned in clause (a) or clause (b); or 

(d) otherwise injures or causes harm, whether physical or mental, to the aggrieved person. 

Explanation I.- For the purposes of this section,- 

(i) “physical abuse” means any act or conduct which is of such a nature as to cause bodily pain, harm, or danger to life, limb, or health or impair the health or development of the aggrieved person and includes assault, criminal intimidation and criminal force; 

(ii) “sexual abuse” includes any conduct of a sexual nature that abuses, humiliates, degrades or otherwise violates the dignity of woman; 

(iii) “verbal and emotional abuse” includes- 

(a) insults, ridicule, humiliation, name calling and insults or ridicule specially with regard to not having a child or a male child; and 

(b) repeated threats to cause physical pain to any person in whom the aggrieved person is interested. 

(iv) “economic abuse” includes- (a) deprivation of all or any economic or financial resources to which the aggrieved person is entitled under any law or custom whether payable under an order of a court or otherwise or which the aggrieved person requires out of necessity including, but not limited to, household necessities for the aggrieved person and her children, if any, stridhan, property, jointly or separately owned by the aggrieved person, payment of rental related to the shared household and maintenance; 

(b) disposal of household effects, any alienation of assets whether movable or immovable, valuables, shares, securities, bonds and the like or other property in which the aggrieved person has an interest or is entitled to use by virtue of the domestic relationship or which may be reasonably required by the aggrieved person or her children or her stridhan or any other property jointly or separately held by the aggrieved person; and 

(c) prohibition or restriction to continued access to resources or facilities which the aggrieved person is entitled to use or enjoy by virtue of the domestic relationship including access to the shared household. 

Explanation II.- For the purpose of determining whether any act, omission, commission or conduct of the respondent constitutes “domestic violence” under this section, the overall facts and circumstances of the case shall be taken into consideration. 

घरेलू हिंसा अधिनियम 

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Domestic violence act 

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Essay on Violence against Women in India for Students

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Table of Contents

Essay on Violence against Women: Violence against women is a social problem that accounts for 20-25% of all violence in India. There are different types of violence, such as domestic violence, rape, dowry-related violence, sexual harassment, and intimate partner violence.

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According to a study, every hour in India, 19 women are murdered by their partners. Most of these murders are not reported and statistics remain vague on the reason behind such violence. The condition of women in India is still quite poor and if we want any progress to be made, then we have to make it a priority issue.

We have provided variety of essays and paragraphs on violence against women in India for the school students. Students are generally assigned this topic to write full essay or only paragraph during exam time or essay writing competition within the school or outside the school. All the essays are written using very simple and easy words to fulfill the students needs.

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Violence against women in India is going side by side to the technological improvement in modern world in the country. Violence to the women is of various types and can happen at any place like home, public place or office. It is the big issue related to the women which cannot be ignored as it is hindering almost one half growth of the country. Women in the Indian society have always been considered as the things of enjoyment from the ancient time. They have been victims of the humiliation, exploitation and torture by the men from the time of social organization and family life.

Violence against Women in India Essay 2 (150 words)

From the origin of social life in the country various centuries came and gone, time has changed people’s mind and environment a lot, however violence against women is not seems to change a little bit. Time is the real eyewitness of all the sufferings (like sex discrimination, exploitation, oppression, aggression, degradation, humiliation, etc) bear by the helpless women. Women are so helpless in the Indian society where many female goddess are worshiped. In the Vedas, women are glorified as mother means one who can create and nourish a life. On the other hand, they have found themselves suppressed and subjugated by the men in the patriarchal society.

Violence against women can be domestic as well as public, Physical, emotional or mental . Women have fear of violence in their mind which causes the lack of participation in various areas of life. Fear of violence in the women mind has been so deep which cannot be out easily even after complete removal of violence against women in the society.

Violence against Women in India Essay 3 (200 words)

India is a traditional male-dominated country where women have to face various violence in the society from the ancient time. As the world is leading in the technological improvement, advancement of material prosperity, etc; the rate of unnatural sex and violence with women is also on the way. Rapes and brutal murders have been so common now-a-days. Other violence are like harassment, assault, and chain-snatching, etc have been involved in the daily routine in the modern Indian society. Violence against women has grown to a great extent in the free India. Dowry deaths, murder, bride burning, etc are giving rise to other violence in the society. Simultaneous increase in violence against women is hindering the social, economical, political, and cultural progress in the country.

The continuous practice of dowry system in the society proves that the violence against women can never be end. It is a complex phenomenon covering several dimensions of violence. It has reduces the status of young girls in the society as well as lowers their dignity. At the time of marriage, if a bride do not bring adequate dowry with her, she would really be at high risk of maltreatment after the marriage. Thousands of girls are bring victims of this social devil on daily basis.

Violence against Women in India Essay 4 (250 words)

There are many violence against women in India because of the male dominated society here. Women generally face various kinds of crime like dowry death, sexual harassment, cheating, murder, girl child abuse, robbery, etc. Violence against women which counted as crimes under the Indian Penal Code are rape, kidnapping and abduction, torture physically and mentally, dowry deaths, wife battering, sexual harassment, molestation, importation of girls, etc. The cases of violence against women is increasing day by day and becoming too broad.

The meaning of term violence is striking someone physically and causing injury. It may involve verbal abuse or psychological stress without the actual hitting which cause injury to the mind and harm the reputation. Rape, murder, abduction, kidnapping cases are criminal violence against women however dowry deaths, sexual abuse, wife battering, maltreatment at home or offices are the cases of domestic violence against women. Some of the social violence cases against women are eve-teasing, forcing wife or daughter-in-law for the female infanticide, forcing widow to commit sati, etc. All the violence against women are affecting the large section of the society.

Violence against women in the country is getting more frequent and alarmingly with huge sound. It is creating pressure and and heavy responsibility over the shoulders of social workers. However, there is urgent need for women to be empowered and responsible to themselves in order to understand all the rights and take benefits.

Violence against Women in India Essay 5 (300 words)

Violence against women in India is very old social issue which has taken its root deeply to the societal norms and economic dependence. This issue of violence against women come forth time to time in the form of brutal gang-rape, sexual harassment at work place, acid attack, etc. A big incident of violence against women was happened in Delhi on 16th of December in 2012. It was a brutal gang rape of the 23 year old woman in India. A huge crowd of anger people come out to the street by having a call for change.

Even after happening such type of cases regularly in the society, it is not going to change the societal norms against women. It is going very complex and deeply rooted in the Indian society even after increasing education level of the people. Violence against women happens because of inefficient legal justice system, weak rules of law and male dominated social and political structures.

According to the research it is found that violence against women begins at home in the early age especially in the rural areas by the family members, relatives, neighbors, and friends.

Situation of the women varies all over the country according to the place, culture and tradition of people. Women in the north-eastern provinces and south have better position than other regions. Because of the practice of female infanticide, the number of girl child has been very less in comparison to the male child (almost 940 women to 1000 men according to the 2011 census). Such a huge decrease in the percentage of female child is because of the sex-selective abortions and negligence of young girls during infancy.

According to the National Crime Records Bureau, women in India are very much unsafe in their marital home. Other common violence against women in the society are domestic violence, acid attacks, rape, honor killings, dowry deaths, abduction, and brutal behavior by husbands and in-laws.

Violence against Women in India Essay 6 (400 words)

Women in India have been victims of violence from many years in almost all the societies, regions, cultures and religious communities. Women in the Indian society have to bear variety of violence such as domestic, public, physical, social, emotional and mental. Violence against women is clearly seen in the history to a large extent which is still getting practiced without any positive change.

Women in India were enjoying a quite comfortable position all through the Vedic period however, the condition got declined gradually because of the practice of violence against women all through the country. On the other hand, with the increasing level of violence against women they started losing their educational, social, political, economic, and cultural opportunities in the society.

They became restricted to live their normal lifestyle like healthy diet, wishful dress, marriage, etc. It was huge effort of male dominated country to make women limited and obedient. They started being enslaved and prostituted. Women in India started being used as commodities for the men to perform different functions of daily routine. There is a culture in the society for women to understand husband as a God, keep fast for their wellness and be depended on husbands.

Widows were restricted to marry again and forced to follow sati pratha. Men understood their rights to beat women with rope or a bamboo stick. Violence against woman took a very fast speed when young girls were forced to serve as a Devadasi in the temple. It given rise to the prostitution system as a part of the religious life.

The fight of two major cultures (Islam and Hinduism) in the medieval period has increased the violence against women to a great extent. Young girls were forced to marry in the very early age and follow purdah system in the society. It made them isolated from almost whole world except their husband and family. Polygamy with strong roots was also started in the society and women lose their right of having unshared husband’s love.

Female infanticide, dowry system and bride-killings are other big violence. Women are also facing lack of nutritious food, negligence to medicine and proper checkup, lack of educational opportunities, sexual abuse of girl child, rapes, forced and unwanted marriages, sexual harassment at public, home or work place, unwanted pregnancies at small intervals, bride-burning, wife-battering, negligence of old women in family, etc.

In order to reduce the number of offenses and crimes against women in India, another Juvenile Justice (Care and Protection of Children) law, 2015 has been made by the Indian government. It is done so to replace the earlier Indian juvenile delinquency law of 2000 especially after the Nirbhaya case during which an accused juvenile was released. In this act, the juvenile age has been reduced by two years means 16 years from 18 years in cases of heinous offenses.

Long Essay on Violence against Women in India – Essay 7 (800 Words)

Introduction

Violence against women in India refers to physical or sexual violence committed on Indian women. Mostly such violent acts are committed by the men, or in rare case a woman might also be involved. Most common forms of violence against Indian women are domestic abuse and sexual assault.

For an act to qualify as “violence against women”, it must be committed only because the victim is a female. “Violence against women” in India is widely prevalent, mainly due to long lasting gender inequality present for centuries.

The Indian Statics

The National Crime Record Bureau (NCRB) of India has the responsibility of publishing the crime data including violence against women. The last annual report released by NCRB in August 2018, has indicated towards an increased rate of violence against Indian women.

Cases of sexual violence against women in India have jumped up by over 10% than the preceding years and rape accounts for 12% of all the crimes committed against women. Delhi stands highest for reported rape cases at 30% followed by Sikkim at 22%.

However, it must be kept in mind that these figures are not actual as many cases of rape and domestic violence go unreported.

Types of Violence against Women

There are many types of crimes that come under the category of violence against women. Some of the most common forms of violence against women committed in India are listed below-

1) Sexual Assault

Sexual Assault on a woman refers to the situation where a person intentionally makes inappropriate physical contact with a woman without her consent or forces her into a sexual act. It is a sexual violence and includes crimes like – rape, drugs induced sexual assaults, child sexual abuse and groping.

2) Domestic Violence

Domestic violence against women is carried out in a domestic environment. Many cases of domestic violence in India’s patriarchal society go unreported. It includes physical abuse of a woman, by her in laws, husband or relatives. Social evils like dowry system, gender inequality are primarily responsible for domestic violence against women.

3) Honor Killing

Honor killing refers to the murder of a family members who has supposedly brought shame to the family by going against the family’s will on issues like arranged marriage, by choosing a partner from other caste or in some cases by committing adultery.

4) Forced Prostitution

Throughout India cases of young girls going missing are continuously reported. These girls are supposedly lured on the pretext of securing a job or earning money and send to other states and subsequently forced into prostitution.

Causes of Violence against women in India

1) Patriarchal Society

Indian society is male dominated society where women don’t have the rights to make major decisions related to the family. Moreover, researches revealed that almost 60% of males in India think that women in the family must be beaten from time to time. This societal setup always keeps women at a vulnerable position.

2) Family Factors

Domestic violence committed on a woman has a tendency to be carried over to the next generation. A child who watches his father physically abusing his mother is most likely to do the same to his wife when he grows up. Nuclear families have more reported incidents of violence against women as there is no elder person to intervene and settle the matter.

3) Liquor consumption

Regular consumption of liquor by the husband is prime cause for violence against women in a family. Alcohol is not only responsible for domestic violence against women but also crimes committed against women outside the houses. Alcohol stimulates the offender’s or victims cognitive skills, fuelling the violence.

Solutions and Preventive Measures

Some of the major solutions to curb violence against women are listed below-

1) Increased Police Vigil

Police vigil must be increased in all the areas, especially in the secluded areas during night. Police presence significantly reduces the chance of a woman getting assaulted or harassed by others on the road. Police officers must be deployed at crowded places like markets, as the women at these places are more susceptible to crimes like eve teasing or groping.

2) Community Initiative

Initiatives taken by the community itself towards curbing violence against women, is the best way to counter domestic violence and as well as other crimes against women. The Nari Adalat program introduced in Uttar Pradesh by Department of Education has proved instrumental in reducing domestic violence against women.

3) Safe Transport

Many acts of sexual violence against women are committed in trains or buses mainly during late hours. Offenders take advantage of the secluded vehicle and absence of police personnel. There is a need to deploy at least one woman police constable in buses or rail coaches during late night hours.

Violence against Indian women is a blot on the nation and the society as well. As long as the Indian women are subjected to violence, the international image of India is also going to suffer. Also, incidents of domestic violence, sexual assaults and other similar crimes on women will continuously damage Indian society and obstructs national progress. Therefore, it is imperative to take stringent counter measures to diminish any kind of violence against Indian women.

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Adrian Wilson Arrested On Misdemeanor Domestic Violence Charges

JULY 10: A police report indicates Wilson, upon seeing separation papers from his wife, broke a TV, a mirror and other items after barging into his wife’s bedroom at their Arizona casita, ESPN.com’s Josh Weinfuss adds . Wilson’s wife had hired a private investigator and learned he was having an affair, prompting the separation documents.

Wilson is also accused of choking the woman, taking a gun from a safe and threatening to kill himself, according to Weinfuss. The former Cardinals executive is not believed to have pointed the gun at anyone, driving away soon after. Arrested at 6:33am, Wilson posted bail later on June 1.

JULY 9: The Panthers announced Sunday that their Adrian Wilson partnership ended after barely a year . More information has come to light as to why the NFC South team severed ties with the veteran front office staffer.

domestic violence essay in hindi

A GM candidate who finished his Cardinals tenure as interim GM following Steve Keim ‘s leave of absence late in 2022, Wilson served as VP of player personnel with the Panthers. Although Carolina changed GMs this offseason, Wilson’s exit appears to stem from this arrest rather than that offseason move.

When asked if the team knew about Wilson’s arrest, a Panthers spokesperson ( via Person ) pointed to their original statement on the matter. It would seem likely the arrest resulted in Wilson’s Carolina exit. The club had hired the former Cardinals safety-turned-exec in February 2023 . Wilson, 44, is a High Point, N.C., native.

The Cardinals employed Wilson for eight years, and the longtime starting DB climbed the ranks to serve as Arizona’s VP of pro scouting by 2021. Wilson joined Quentin Harris as co-interim GMs to finish out the 2022 season and interviewed for Arizona’s GM job , but Monti Ossenfort landed the gig last year. The Jaguars were connected to Wilson for a high-ranking front office job in 2022, but that arrangement did not come to fruition. He also interviewed for the Giants’ GM job in 2022.

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24 comments on “ Adrian Wilson Arrested On Misdemeanor Domestic Violence Charges ”

Probably gets a raise in 3 weeks.

Maybe in 2014, not 2024. He just ended his football career for good, IMO.

You’re right. DA ended Cam Suttons career. And Deshaun Watson. And numerous others….

Unlike Sutton or Wilson, Watson never got charged criminally with anything, he was sued civilly for sexual misconduct. I get your point, though.

Yeah money got him a not guilty verdict. Others weren’t so lucky.

Lol, fair point. Maybe just wishful thinking on my part.

Oh no, that was directed at MyCommentIsBetter’s reply. I get both of your points, absolutely. Some guys it matters, others the NFL takes a stand on.

The leash for execs is a lot shorter than the leash for players.

That was my first thought too; without knowing details, I’ll refrain from predicting whether Wilson will have a path back or not.

Agreed, Ak. You just never know.

After all of the conjecture, it seems that David Tepper did not release Adrian Wilson on a whim. That is, unless Tepper caused Wilson so much grief at work that it led to Wilson being violent upon arriving at home, which I seriously doubt!

Miles Bridges plays in Charlotte and got 3 years and $75 million after beating his wife. Incredible.

Not once either, but suspended for multiple incidents

Low character man.

Oh, well, I was very wrong about this. Did not expect that. I owe Tepper an apology.

Don’t try an apology if he has a drink in his hand…you might end up wet.

He takes his apologies shaken, not stirred

Knowing it’s Carolia I’m surprised Tepper didn’t promote him.

COMMENTS OPEN……. For now…..

His old lady scuffed his sneakers…then he opened up a can of whoopa$$

dude’s a loser

Ah yes the old “I’m a cheating POS, but if you try and divorce me I’ll hurt you and F your life up”. An oldy but a classic for low IQs.

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SBS Newsflash 07 July 2024: Three children including a baby die in domestic violence house fire in Sydney SBS Hindi

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