कबीरदास का जीवन परिचय | Kabir Das Biography in Hindi, 25 Dohe arth sahit, quotes
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नमस्कार दोस्तों, आज की इस पोस्ट में हम भारत के महान लेखक और संत कबीर दास के जीवन के बारे में जानकारी विस्तार से बताएंगे. आपको बता दे की कबीर दास के कुछ महान लेखन बीजक, कबीर ग्रंथावली, अनुराग सागर, सखी ग्रंथ हैं। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने बचपन में ही अपने गुरु रामानंद से अपना सारा आध्यात्मिक प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया था.वे बहुत आध्यात्मिक व्यक्ति थे और एक महान साधु बन गए।
अपनी प्रभावशाली परंपराओं और संस्कृति के कारण उन्हें दुनिया भर में प्रसिद्धि मिली।दोस्तों ! इस लेख में हम आपको बताने वाले हैं महान संत कबीरदास के जीवन से जुड़ी ढेर सारी जानकारी तो दोस्तों शुरू करते हैं और जानते हैं विस्तार से कबीरदास का जीवन परिचय
कबीरदास का जीवन परिचय | Kabir Das Biography in Hindi
जानकारी संग्रह-:.
इस पोस्ट में जो भी संत कबीरदास के जीवन से संबन्धित अभी तक जितने भी प्रमाण मिले हैं उनकी प्रामाणिकता संदिग्ध है। स्वयं उनके द्वारा रचित काव्य और कुछ तत्कालीन कवियों द्वारा रचित काव्यों में उनके जीवन से संबन्धित तथ्य प्राप्त हुए हैं। इन तथ्यों के आधार पर इस पोस्ट में जानकारी दी है यदि इस पोस्ट में कोई भी जानकारी गलत लगती है तो हमें कांटेक्ट करके जरूर बताएं-
कबीरदास का जन्म और प्रारम्भिक जीवन ( Kabirdas Birthdate and Family Condition )
भारत के महान संत कबीर का जन्म सन 1398 ईसवी में एक जुलाहा परिवार में हुआ था उनके पिता का नाम नीरू एवं माता का नाम नीमा था। कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि कबीर किसी विधवा ब्राह्मणी के पुत्र थे ,जिसने लोक लाज के डर से जन्म देते ही कबीर को त्याग दिया था। नीरू और नीमा को कबीर पड़े हुए मिले और उन्होंने कबीर का पालन-पोषण किया। कबीर के गुरु प्रसिद्ध संत स्वामी रामानंद थे। लोक कथाओं के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि कबीर विवाहित थे। इनकी पत्नी का नाम लोई था। इनकी दो संताने थी एक पुत्र और एक पुत्री। पुत्र का नाम कमाल था और पुत्री का नाम कमाली ।
कबीर दास की शिक्षा (Kabir Das Biography in Hindi)
कबीर ने कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली और न ही उन्होंने कभी कागज़ कलम को छुआ। वे अपनी आजीविका के लिए जुलाहे का काम करते थे। कबीर अपनी आध्यात्मिक खोज को पूर्ण करने के लिए वाराणसी के प्रसिद्ध संत रामानंद के शिष्य बनना चाहते थे।
स्वामी रामानन्द जी अपने समय के सुप्रसिद्ध ज्ञानी कहे जाते थे पर रामानंद उन्हें शिष्य के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते थे। किन्तु कबीर ने उन्हें मन ही मन अपना गुरु मान लिया था। वे अपने गुरु से गुरु मंत्र लेना चाहते थे पर कबीर दास को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था।
कबीर दास जब संत रामानंद रात्रि चार बजे स्नान के लिए काशी घाट पर जाते थे तो उनके मार्ग में लेट जाते थे ताकि उनके गुरु मुख से जो भी पहला शब्द निकले उसे ही गुरु मंत्र मान लेंगे। तब एक दिन मार्ग में उनके गुरु के पैर कबीर पर पड़े तो संत रामानंद ने अपने मुंह से “राम” नाम लिया। बस कबीर ने उसे ही गुरु मंत्र मान लिया।
कुछ लोग मानते हैं कि कबीर दास जी के कोई गुरु नहीं थे। उन्हें जो ज्ञान प्राप्त हुआ वह अपनी ही बदौलत प्राप्त किया। वे पढ़े-लिखे नहीं थे यह बात उनके इस दोहा से मिलता है –
कबीर दास जी ने स्वयं कोई ग्रंथ नहीं लिखा, उन्होंने सिर्फ उसे बोले थे। उनके शिष्यों ने उनके द्वारा कही गई बातों और उपदेशों को कलमबद्ध किया था। कबीर दास के बारे में जानकर ही आश्चर्य होता है कि उन्होंने कभी कागज कलम को हाथ तक नहीं लगाया, ना ही कोई पढ़ाई की और न ही उनके कोई औपचारिक गुरु थे।
पर कैसे उन्हें इतना आत्मज्ञान प्राप्त हुआ? यह अपने आप में हैरान करने वाला है। कबीर दास के जीवन पर आज के पढ़े लिखे लोग पीएचडी कर रहे हैं।
कबीर दास की मृत्यु(Kabir Das Information in Hindi)
- 15वीं शताब्दी के सूफी कवि कबीर दास के अनुसार, ऐसी मान्यता है कि उन्होंने अपनी मृत्यु का स्थान मगहर चुना था, जो लखनऊ से लगभग 240 किमी दूर स्थित है।
- उन्होंने लोगों के मन से परियों की कहानी (मिथक) को दूर करने के लिए इस जगह को मरने के लिए चुना है। उन दिनों यह माना जाता था कि जो व्यक्ति मगहर क्षेत्र में अपनी अंतिम सांस लेते है और मर जाते है, उसे स्वर्ग में जगह नहीं मिलेगी और साथ ही अगले जन्म में गधे का जन्म भी नहीं होगा।
- लोगों के मिथकों और अंधविश्वासों को तोड़ने के कारण कबीर दास की मृत्यु काशी के बजाय मगहर में हुई। विक्रम संवत 1575 में हिंदू कैलेंडर के अनुसार, उन्होंने माघ शुक्ल एकादशी पर वर्ष 1518 में जनवरी के महीने में मगहर में दुनिया को छोड़ दिया।
- यह भी माना जाता है कि जो काशी में मर जाता है, वह सीधे स्वर्ग जाता है इसलिए हिंदू लोग अपने अंतिम समय में काशी जाते हैं और मोक्ष प्राप्त करने के लिए मृत्यु की प्रतीक्षा करते हैं।
- मिथक को ध्वस्त करने के लिए कबीर दास की मृत्यु काशी से हुई थी। इससे जुड़ी एक प्रसिद्ध कहावत है “जो कबीरा काशी मुए तो रमे कौन निहोरा” यानी काशी में मरने से ही स्वर्ग जाने का आसान रास्ता है तो भगवान की पूजा करने की क्या जरूरत है।
- मगहर में कबीर दास की मजार और समाधि है। उनकी मृत्यु के बाद उनके हिंदू और मुस्लिम धर्म के अनुयायी उनके शरीर के अंतिम संस्कार के लिए लड़ते हैं। लेकिन जब वे शव से चादर निकालते हैं तो उन्हें केवल कुछ फूल मिलते हैं जिन्हें उन्होंने अपने रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार अंतिम संस्कार पूरा किया।
- समाधि से कुछ मीटर की दूरी पर एक गुफा है जो मृत्यु से पहले उनके ध्यान स्थान का संकेत देती है। कबीर शोध संस्थान नाम का एक ट्रस्ट चल रहा है जो कबीर दास के कार्यों पर शोध को बढ़ावा देने के लिए एक शोध फाउंडेशन के रूप में काम करता है। यहां शैक्षणिक संस्थान भी चल रहे हैं जिनमें कबीर दास की शिक्षाएं शामिल हैं।
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कबीर दास जयंती (Kabir Das Details in Hindi)
महान कबीर दास का जन्म ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन हुआ था, इसीलिए हर वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन ही उनकी जयंती मनाई जाती है। इस दिवस कबीर पंथ के अनुयायी कबीर के दोहे पढ़ते है उनकी शिक्षा से सबक लेते हैं। लोग कथा सत्संग का आयोजन करते है।
इस दिन लोग अक्सर उनके जन्म स्थान वाराणसी के कबीर चौथा मठ में धार्मिक उपदेश का आयोजन करते हैं। कई जगह तो कबीर दास जयंती के अवसर पर भव्य जश्न मनाया जाता है। जबकि कई जगहों पर धार्मिक जुलूस और शोभायात्रा भी निकाल जाती है।
कबीरदास की जयंती न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। संत कबीरदास की जयंती प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। साल 2024 में संत कबीरदास जी की जयंती 22 जून 2024, दिन शनिवार को मनाई जायेगी।
कबीरदास के गुरु ( Kabir das ke guru)
महान संत कबीर ने काशी के प्रसिद्ध महात्मा रामानंद को अपना गुरु माना है। कहा जाता है, कि रामानंद जी ने नीच जाति का समझकर कबीर को अपना शिष्य बनाने से इनकार कर दिया था, तब एक दिन कबीर गंगा तट पर जाकर सीढ़ियों पर लेट गये जहां रामानंद जी प्रतिदिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने जाया करते थे।
अंधेरे में रामानंद जी का पैर कबीर के ऊपर पड़ा और उनके मुख से राम राम निकला तभी से कबीर ने रामानंद जी को अपना गुरु और राम नाम को गुरु मंत्र मान लिया। कुछ विद्वानों ने प्रसिद्ध सूफी फकीर शेखतकी को कबीर का गुरु माना है।
कबीरदास जी की भाषा व प्रमुख रचनाएँ
Kabir Das Biography in Hindi
कबीर दास द्वारा लिखी गई पुस्तकें आम तौर पर दोहों और गीतों का संग्रह हैं। कुल कार्य बहत्तर हैं जिनमें कुछ महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध कार्य रेख़्तास, कबीर बीजक, सुक्निधान, मंगल, वसंत, सबदास, सखियाँ और पवित्र आगम हैं।कबीर दास की लेखन शैली और भाषा बहुत ही सरल और सुंदर है। उन्होंने अपने दोहों को बहुत ही साहस और स्वाभाविक रूप से लिखा था जो अर्थ और महत्व से भरे हुए हैं। उन्होंने अपने दिल की गहराई से इन्हें लिखा है। उन्होंने अपने सरल दोहों और दोहों में समस्त विश्व के भाव को संकुचित कर दिया है। उनकी बातें तुलना और प्रेरणा से परे हैं।
कबीर दास की रचनाएं
कबीरदास जी ने अपनी रचनाओं को बेहद सरल और आसान भाषा में लिखा है, उन्होंने अपनी रचनाओं में बड़ी बेबाकी से धर्म, संस्कृति, समाज एवं जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी राय रखी है। उनके काव्य में आत्मा और परमात्मा के संबंधों की भी स्पष्ट व्याख्या मिलती है उनकी प्रमुख रचनाएं हैं –
इन रचनाओं में कबीर का बीजक ग्रंथ प्रमुख है। उनकी रचनाओं में वो जादू है जो किसी और संत में नहीं है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को “वाणी का डिक्टेटर” कहा है। और आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने कबीर की भाषा को ‘पंचमेल खिचड़ी’ कहा है।
कबीर का साहित्यिक परिचय
कबीर एक महान संत भी थे और संसारी भी, समाज सुधारक भी थे और एक सजग कभी भी। वह अनाथ थे, लेकिन सारा समाज उनकी छत्रछाया की अपेक्षा करता था। कबीर के महान व्यक्तित्व एवं उनके काव्य के संबंध में हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ प्रभाकर माचवे ने लिखा है – “कबीर में सत्य कहने का अपार धैर्य था और उसके परिणाम सहन करने की हिम्मत भी। कबीर की कविता इन्हीं कारणों से एक अन्य प्रकार की कविता है। वह कई रूढ़ियों के बंधन तोड़ता है वह मुक्त आत्मा की कविता है।”
कबीरदास की रचनाएँ (Kabir Das Biography in Hindi)
आपको बता दे की संत कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे उन्होंने स्वयं ही कहा है –
मसि कागद छुयो नहीं, कलम गह्यो नहीं हाथ।
अतः यह सत्य है कि उन्होंने स्वयं अपनी रचनाओं को नहीं लिखा है। इसके बाद भी उनकी वाणीयों के संग्रह के रूप में कई ग्रंथों का उल्लेख मिलता है। इन ग्रंथों में- ‘ अगाध-मंगल’, ‘अनुराग सागर’, ‘अमर मूल ‘, ‘अक्षर खंड रमैनी’, ‘अक्षर भेद की रमैनी’, ‘उग्र गीता’, ‘कबीर की वाणी’, ‘कबीर ‘, ‘कबीर गोरख की गोष्ठी’, ‘कबीर की साखी’, ‘बीजक’, ‘ब्रह्म निरूपण’, ‘मुहम्मद बोध’, ‘रेख़्ता विचार माला’, ‘विवेकसागर’, ‘शब्दावली ‘, ‘हंस मुक्तावली’, ‘ज्ञान सागर’ आदि प्रमुख ग्रंथ हैं इन ग्रंथों को पढ़ने से हमें कबीर की विलक्षण प्रतिभा का परिचय मिलता है।
कबीर की वाणियों का संग्रह ‘बीजक’ के नाम से प्रचलित है इसके तीन भाग हैं –
(1) साखी
(2) सबद
कबीर दास: एक हिंदू या एक मुसलमान
- ऐसा माना जाता है कि कबीर दास की मृत्यु के बाद, हिंदुओं और मुसलमानों ने कबीर दास का शव प्राप्त करने का दावा किया था। वे दोनों कबीर दास के शव का अंतिम संस्कार अपने-अपने रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार करना चाहते थे।
- हिंदुओं ने कहा कि वे शरीर को जलाना चाहते हैं क्योंकि वह एक हिंदू था और मुसलमानों ने कहा कि वे उसे मुस्लिम संस्कार के तहत दफनाना चाहते हैं क्योंकि वह एक मुसलमान था।
- लेकिन, जब उन्होंने शव से चादर हटाई तो उन्हें उसके स्थान पर केवल कुछ फूल मिले। उन्होंने एक-दूसरे के बीच फूल बांटे और अपनी-अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार अंतिम संस्कार किया।
- यह भी माना जाता है कि जब वे लड़ रहे थे तो कबीर दास की आत्मा उनके पास आई और उन्होंने कहा कि, “मैं न तो हिंदू था और न ही मुसलमान।
- मैं दोनों था, मैं कुछ भी नहीं था, मैं ही सब कुछ था, मैं दोनों में ईश्वर को पहचानता हूं। न कोई हिंदू है और न कोई मुसलमान। जो मोह से मुक्त है उसके लिए हिन्दू और मुसलमान एक ही हैं। कफन हटाओ और चमत्कार देखो!”
- कबीर दास का मंदिर काशी में कबीर चौरा पर बना है जो अब पूरे भारत के साथ-साथ भारत के बाहर लोगों के लिए महान तीर्थ स्थान बन गया है। और उसकी एक मस्जिद मुसलमानों द्वारा कब्र के ऊपर बनाई गई थी जो मुसलमानों के लिए तीर्थ बन गई है।
कबीर दास के ईश्वर के प्रति विचार
संतकबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है। जिस प्रकार विश्व में एक ही वायु और जल है, उसी प्रकार संपूर्ण संसार में एक ही परम ज्योति व्याप्त है। सभी मानव एक ही मिट्टी से अर्थात् ब्रम्ह द्वारा निर्मित हुए हैं। कबीर दास ने ईश्वर प्राप्ति के प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है।
कबीर के अनुसार ईश्वर न मंदिर में है, न मस्जिद में; न काबा में हैं, न कैलाश आदि तीर्थ स्थानों में; वह न योग साधना से मिलता है, और न वैरागी बनने से। ये सब उपरी दिखावे हैं, ढोंग हैं। इनसे भगवान की प्राप्ति नहीं हो सकती।
कबीरदास के दोहे अर्थ सहित (Kabir Das Ke Dohe)
कबीरदास के दोहे सुनने में और मन ही मन गुनगुनाने में बड़ा अच्छा लगता है। कबीर के कुछ दोहे अर्थ सहित नीचे दिये गए हैं –
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागौं पाय,
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय।
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि एक बार गुरु और ईश्वर एक साथ खड़े थे तभी शिष्य को समझ में नहीं आ रहा था कि पहले किसके पाऊं छुए, इस पर ईश्वर ने कहा कि तुम्हें सबसे पहले अपने गुरु के पाव छूने चाहिए।
दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करें न कोय ,
जो सुख में सुमिरन करें, तो दुख काहे को होय।
अर्थ- कबीरदास कहते हैं कि लोग जब दुखी होते हैं तो ईश्वर को याद करते हैं जबकि सुख में लोग ईश्वर को याद नहीं करते। अगर लोग सुख में भी ईश्वर को याद करें उनकी आराधना करें तो उन्हें दुःख आ ही नहीं सकता।
कबीरा खड़ा बाजार में, सबकी मांगे खैर,
ना काहू से दोसती, ना काहू से बैर।
अर्थ – कबीर जी ने कहा कि जब उन्होंने इस संसार में जन्म लिया तो उनके मन में यहां के लोगों के लिए यही भावना थी कि सभी लोग अपना जीवन अच्छे से व्यतीत करें और किसी के भी मन में एक दूसरे के प्रति बैर भाव ना हो।
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ।
अर्थ -कबीरदास जी कहते हैं कि हमारा यह शरीर जहर की गठरी के समान है और हमारे गुरु अमृत की तरह है तो अगर आपको अपना शीश भी देना पड़े ऐसे गुरू के लिए तो वह सौदा भी बहुत सस्ता होता है।
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये ।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जैसे दूसरों को शीतलता मिले और साथ ही साथ स्वयं का मन भी शीतल हो जाए अर्थात हमेशा अच्छी वाणी ही बोलनी चाहिए।
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य की बोली बहुत ही ज्यादा अमूल्य है इसे बोलने से पहले हमें अपने हृदय रूपी तराजू में इसे तोलना चाहिए उसके बाद ही यह हमारे मुंह से बाहर आनी चाहिए।
साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाये ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाए ।
अर्थ – कबीरदस जी ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि हे ईश्वर! मुझे केवल उतना ही दीजिए जिसमें मैं और मेरा परिवार भूखा ना रहे और दरवाजे पर से कोई वापस न लौटें।
जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही ।
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ।
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि जब मेरे अंदर अहम था तब मुझे ईश्वर की प्राप्ति नहीं हुई लेकिन जब मुझे हरी मिल गए तो मेरे अंदर से सारा निकल गया या बिल्कुल उसी तरह निकल गया जैसे दीपक जलाने पर सारा अंधियारा मिट जाता है।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।
जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ।
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि जब मैं इस संसार में बुरा खोजने चला तो मुझे कोई भी बुरा आदमी नहीं मिला, जब मैंने अपने ही मन में झांक कर देखा तो मुझे पता चला कि संसार में मुझसे बुरा इंसान कोई नहीं है।
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि हमें कभी अपने जीवन में एक तिनके की भी निंदा नहीं करनी चाहिए क्योंकि जो तिनका हमारे पांव के नीचे होता है वही जब आंख में पड़ जाता है तो हमें कष्ट देता है।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि जो लोग इस संसार में जन्म लेते हैं पढ़ते हैं और मर जाते हैं लेकिन कोई भी पंडित नहीं हो पाता जो व्यक्ति प्रेम के ढाई अक्षर को समझ लेता है वह सबसे बड़ा विद्वान होता है।
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि इस संसार में हर एक काम धीरे-धीरे होता है जिस तरह माली अपने फूलों को 100 घड़े भी सींच ले लेकिन जब ऋतु आती है तभी उस में फल लगते हैं।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि हमें कभी भी साधु की शरीर नहीं देखनी चाहिए बल्कि हमें उनसे ज्ञान की बातें सीखनी चाहिए जिस प्रकार से तलवार की दुकान पर मूल्य केवल तलवार का होता है ना कि उसकी म्यान का जिसमें वह रखा गया है।
निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें ।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए ।
अर्थ –
बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।
पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।
अर्थ – कबीर कहते हैं कि इतना बड़ा होने से क्या होगा अगर आप किसी की सहायता न कर पाए जिस प्रकार खजूर का पेड़ इतना बड़ा होता है लेकिन वह किसी भी पक्षी को ना तो छाया दे पाता है और उसमें फल भी बहुत दूर लगते हैं।
कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये,
ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये
अर्थ – कबीर कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे तो सारा संसार हंसा था और हम रोए थे लेकिन हमें इस संसार में ऐसा काम करके जाना है कि जब हमारी मृत्यु तो हम हंसे और यह पूरा संसार हमारी मृत्यु पर आँसू बहाये ।
मांगन मरण समान है, मत मांगो कोई भीख,
मांगन से मरना भला, ये सतगुरु की सीख
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि मांगना और मरना एक समान है इसलिए भीख मत मांगो उनके गुरु कह गए हैं कि भीख मांगने से अच्छा मरना है।
लुट सके तो लुट ले, हरी नाम की लुट ।
अंत समय पछतायेगा, जब प्राण जायेगे छुट ।
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि अभी समय है अभी से ही ईश्वर की भक्ति करना प्रारंभ कर दो क्योंकि जब अंत समय आएगा और प्राण छूटने लगेंगे तब पछताने से कुछ भी नहीं होगा।
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं इस संसार में जन्म लेने के बाद मनुष्य रात में सो कर और दिन में खा कर अपने अमूल्य समय को बर्बाद कर देता है और इस हीरे रूपी जन्म को कौड़ी में बदल देता है।
कुटिल वचन सबसे बुरा, जा से होत न चार ।
साधू वचन जल रूप है, बरसे अमृत धार ।
तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार ।
सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार ।
अर्थ – कबीर का कहना है कि तीरथ जाने से हमें एक फल मिलता है वहीं अगर संत मिल जाए तो हमें चार फल मिलते हैं लेकिन अगर हमारे जीवन में एक अच्छे गुरु मिल जाए तो हमें अनेकों फल मिलते हैं।
जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप ।
जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप ।
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि जहां पर दया होती है वहां धर्म होता है जहां पर लालच होती है वहां पाप होता है और जहां पर क्रोध होता है वहां पर मृत होती है लेकिन जहां पर क्षमा होती है वहां पर स्वयं ईश्वर निवास करते हैं
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगो कब ।
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं जो काम कल करना चाहिए वह आज करो और जो आज करना है वह भी करो क्योंकि समय कब गुजर जाएगा हमें पता नहीं चलेगा और हम पछताते रह जाएंगे।
माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि मिट्टी कुंभार से कहती है कि तू मुझे क्या एक दिन ऐसा आएगा जब मैं खुद तुम्हें मिट्टी में मिला दूंगी।
धर्म किये धन ना घटे, नदी न घट्ट नीर।
अपनी आखों देखिले, यों कथि कहहिं कबीर।
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि धर्म का कार्य करने से कभी धन नहीं घटता है ना तो नदी को देखने से उसका पानी कम होता है कबीर जी कहते हैं कि यह उन्होंने अपनी आंखों से देखा है।
माला फेरत जग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं की दिन रात भगवान की पूजा करने से कुछ नहीं होगा जब तक आपका मन अंदर से शुद्ध नहीं है इसीलिए सबसे पहले हमें अपने मन को शुद्ध करना चाहिए।
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि ना तो ज्यादा बोलना ही अच्छा है और ना ही ज्यादा चुप रहना अच्छा है उसी तरह ना तो ज्यादा बरसना ही अच्छा है और ना तो बहुत ज्यादा धूप ही अच्छी है।
कबीरदास के भजन (Kabir Das Ke Bhajan)
कबीरदास के प्रसिद्ध भजन इस प्रकार है –
साकी, वो पीकर चला गया, घर आपना छोड़कर चला गया। साकी, वो पीकर चला गया। जब जब जियरा भर आया, तब तब पिया सताया। साकी, वो पीकर चला गया। अच्छा होता, जो मैं पीता, पीता तौ गोली बिखराता। साकी, वो पीकर चला गया। कबीरा ते नाउ मनु ले, मूआ तो सब कोई।
“कोई बोले राम राम, कोई खुदाइ कोई से इश्वर अल्लाह उपासे अन्य तो सिक्ख तोये, मसीत मनाये पांडित बैठे बैठे लाव नये सब ही खुदाई खपाये एक ही दिल है, एक ही जान जुआ-जैसे दूसरा माने। जैसे तिल मीठे चिन सोवा सागर से गहरा नीर राम रहीम रहीम बैरों बार सब ही एक रुपी फीका नीर।
“सुना ले रे भई राम नाम का, चितवन में घूंघट की धार चढ़ आई। दरबार में बैठी मात ध्यान में, जो मन में आवत है बड़ी भार चढ़ आई। धूप बती तेल मलीपी पासी भयो, रूप लागे चन्दन की मार चढ़ आई। प्रेम भी मलीन हो गया चह सूता, कपट तरवर सांप गरज चढ़ आई। कूदती बूँद सबकी नेत्रों में, राम रसायन नहीं नारियल बरसढ़ आई।
कबीरदास के बारे में रोचक जानकारियाँ (Kabir Das Information in Hindi)
कबीर मठ कबीर चौरा, वाराणसी और लहरतारा, वाराणसी में पीछे के मार्ग में स्थित है जहाँ संत कबीर के दोहे गाने में व्यस्त हैं। यह लोगों को जीवन की वास्तविक शिक्षा देने का स्थान है। नीरू टीला उनके माता-पिता नीरू और नीमा का घर था। अब यह कबीर के कार्यों का अध्ययन करने वाले छात्रों और विद्वानों के लिए आवास बन गया है।
कबीर दास पहले भारतीय संत हैं जिन्होंने हिंदू और इस्लाम दोनों को एक सार्वभौमिक मार्ग देकर हिंदू और इस्लाम का समन्वय किया है, जिसका पालन हिंदू और मुस्लिम दोनों कर सकते हैं।
उनके अनुसार, प्रत्येक जीवन का दो आध्यात्मिक सिद्धांतों (जीवात्मा और परमात्मा) से संबंध है। मोक्ष के बारे में उनका विचार था कि यह इन दो दैवीय सिद्धांतों को एकजुट करने की प्रक्रिया है।
उनकी महान कृति बीजक में कविताओं का एक विशाल संग्रह है जो कबीर के आध्यात्मिकता के सामान्य दृष्टिकोण को दर्शाता है। कबीर की हिन्दी एक बोली थी, उनके दर्शनों की तरह सरल। उन्होंने बस भगवान में एकता का पालन किया। उन्होंने हमेशा हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा को खारिज किया है और भक्ति और सूफी विचारों में स्पष्ट विश्वास दिखाया है।
3. उनकी कविता
उन्होंने एक वास्तविक गुरु की प्रशंसा के अनुरूप कविताओं की रचना एक संक्षिप्त और सरल शैली में की थी। अनपढ़ होने के बावजूद उन्होंने अवधी, ब्रज और भोजपुरी जैसी कुछ अन्य भाषाओं को मिलाकर हिंदी में अपनी कविताएँ लिखी थीं। हालाँकि कई लोगों ने उनका अपमान किया लेकिन उन्होंने कभी दूसरों पर ध्यान नहीं दिया।
संत कबीर को श्रेय दी गई सभी कविताएँ और गीत कई भाषाओं में मौजूद हैं। कबीर और उनके अनुयायियों का नाम उनकी काव्य प्रतिक्रिया जैसे कि बनियों और कथनों के अनुसार रखा गया है। कविताओं को दोहे, श्लोक और सखी कहा जाता है। सखी का अर्थ है याद किया जाना और उच्चतम सत्य को याद दिलाना। इन कथनों को याद करना, प्रदर्शन करना और उन पर विचार करना कबीर और उनके सभी अनुयायियों के लिए आध्यात्मिक जागृति का मार्ग है।
5.समाधि मंदिर
समाधि मंदिर का निर्माण उसी स्थान पर किया गया है जहाँ कबीर अपनी साधना करने के आदी थे। साधना से समाधि तक की यात्रा तब मानी जाती है जब कोई संत इस स्थान पर जाता है। आज भी यह वह स्थान है जहां संतों को अपार सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है। यह जगह शांति और ऊर्जा के लिए दुनिया भर में मशहूर है।
ऐसा माना जाता है कि, उनकी मृत्यु के बाद, लोग उनके शरीर को अंतिम संस्कार के लिए लेने को लेकर झगड़ रहे थे। लेकिन, जब उनके समाधि कक्ष का दरवाजा खोला गया, तो केवल दो फूल थे, जो उनके हिंदू मुस्लिम शिष्यों के बीच अंतिम संस्कार के लिए वितरित किए गए थे। समाधि मंदिर का निर्माण मिर्जापुर की मजबूत ईंटों से किया गया है।
6.कबीर चबूतरा में बीजक मंदिर
यह स्थान कबीर दास का कार्यस्थल होने के साथ-साथ साधनास्थल भी था। यहीं पर उन्होंने अपने शिष्यों को भक्ति, ज्ञान, कर्म और मानवता का ज्ञान दिया था। इस जगह का नाम कबीर चबूतरा रखा गया। बीजक कबीर दास की महान कृति थी, इसलिए कबीर चबूतरा का नाम बीजक मंदिर पड़ा।
तू आशा है दोस्तों की आपको “कबीरदास का जीवन परिचय | Kabir Das Biography in Hindi, Dohe arth sahit, quotes” यह पोस्ट जानकारी पूर्ण लगा होगा और अगर यह पोस्ट आपको पसंद आए तो यह अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करिए एक महान कबीर दास, भारत के प्रमुख आध्यात्मिक कवियों में से एक हैं जिन्होंने लोगों के जीवन को बढ़ावा देने के लिए अपने दार्शनिक विचार दिए हैं।
ईश्वर में एकता के उनके दर्शन और वास्तविक धर्म के रूप में कर्म ने लोगों के मन को अच्छाई की ओर बदल दिया है। ईश्वर के प्रति उनका प्रेम और भक्ति हिंदू भक्ति और मुस्लिम सूफी दोनों की अवधारणा को पूरा करती है। इस पोस्ट में आपको कोई भी जानकारी गलत लगे तो तुरंत हमें कांटेक्ट करके बताइए धन्यवाद !
Q.कबीर दास का पूरा नाम क्या है?
Ans.कबीर दास का पूरा नाम “संत कबीर दास” था।
Q. कबीर ने कितने दोहे लिखे ?
Ans. उन्होंने 25 दोहे लिखे।
Q. कबीर दास के गुरु कौन थे ?
Ans. कबीर दासे के गुरु का नाम रामानंद था। रामानंद एक हिंदू भक्ति नेता थे।
Q.संत कबीर दास के कितने बच्चे थे ?
Ans. संत कबीर दास के कमल नाम का एक बेटा और कमली नाम की एक बेटी थी।
Q.संत कबीर दास की कविताओं को क्या कहा जाता है?
Ans. संत कबीर दास की कविताओं को दोहा कहा जाता है।
Q : कबीर दास के माता पिता का नाम क्या था?
Ans : उनके पिता नीरू और उनकी माता नीमा थी।
Q : संत कबीर दास की मृत्यु कब हुई ?
Ans : सन् 1519 (विक्रम संवत 1575) मगहर, उत्तर प्रदेश (120 वर्ष)
Q : संत कबीर दास जयंती कब मनायी जाती है ?
Ans : जयंता पूर्णिमा को मनाया जाता है।
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Kabir Das Biography in Hindi | कबीर दास का जीवन-परिचय | Kabir Das Ka Jivan Parichay
कबीर दास का जीवन-परिचय :संत कबीरदास पंद्रहवीं शताब्दी में पवित्र शहर वाराणसी, उत्तर प्रदेश में पैदा हुए एक भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। उनके लेखन ने हिंदू धर्म भक्ति आंदोलन को प्रभावित किया, उस समय भारत में मुख्य रूप से हिंदू और इस्लाम में प्रचलित धर्मों में अर्थहीन और गलत प्रथाओं की आलोचना की।कबीरदास के अनुसार जो व्यक्ति हमेशा धार्मिकता के मार्ग पर चलता है, जो किसी से ईर्ष्या नहीं करता है और सभी को समान रूप से प्यार करता है, उसे हमेशा सर्वोच्च शक्ति का समर्थन मिलता है। उनके अनुसार एक ही सर्वोच्च सत्य है जो विभिन्न धर्मों द्वारा अलग-अलग तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। अभी भी यह कुछ ही लोगों के लिए जाना जाता है। कबीर की रचनाएँ सरल हैं लेकिन उनके अर्थ में गहरा सत्य छिपा है। ऐसे ही कई महत्वपूर्ण फैक्ट्स हम इस जीवनी लेख में लेकर आए है जो आपको कबीर दास का जीवन-परिचय विस्तार से देंगे| वहीं कई अन्य पॉइन्ट के तहत इस लेख को संकलित किया गया है जो आपको कबीर दास जी को जानने में मदद करेगा। हमने इस लेख में Kabir Das Biography in Hindi, कबीर दास का जीवन-परिचय,
Kabir Das Ka Jivan Parichay – Overview
कबीरदास कौन थे,कबीरदास जी का प्रारम्भिक जीवन,कबीरदास जी की शिक्षा व गुरु,कबीरदास जी के प्रमुख शिष्य,कबीरदास जी की भाषा व प्रमुख रचनाएँ,कबीरदास जी का दर्शनशास्त्र,संत कबीरदास जी के अनमोल दोहे (व्याख्या)कबीरदास जी की मृत्यु जैसे पॉइन्ट जोड़े है जो इस लेख को पूरा करते है। इस लेख को पूरा पढ़े और कबीर दास के बारे में विस्तार से जानें।
कबीर दास का जीवन-परिचय | Kabir Das Biography in Hindi
भारत के एक रहस्यमय कवि और महान संत दास कबीर दास का जन्म 1440 में हुआ था और उनकी मृत्यु 1518 में हुई थी। इस्लाम के अनुसार कबीर का अर्थ बहुत बड़ा और महान होता है। कबीर पंथ एक विशाल धार्मिक समुदाय है जो कबीर को संत मत संप्रदायों के प्रवर्तक के रूप में पहचान दिलाता है। कबीर पंथ के सदस्यों को कबीर पंथी के रूप में जाना जाता है जिन्होंने पूरे उत्तर और मध्य भारत में विस्तार किया था। बीजक, कबीर ग्रन्थावली, अनुराग सागर, सखी ग्रन्थ आदि कबीर दास के कुछ महान लेखन हैं। वहीं स्पष्ट रूप से उनके जन्म के बारे में ज्यादा किसी को ज्ञात नहीं है, लेकिन यह ध्यान दिया जाता है कि उनका पालन-पोषण एक बहुत ही गरीब मुस्लिम बुनकर परिवार द्वारा किया गया था। वह बहुत आध्यात्मिक थे और एक महान साधु बने। उन्होंने अपनी प्रभावशाली परंपराओं और संस्कृति के कारण पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त की।
ऐसा माना जाता है कि उन्होंने बचपन में अपने गुरु रामानंद से सभी आध्यात्मिक प्रशिक्षण प्राप्त किए थे। एक दिन, वह गुरु रामानंद के एक प्रसिद्ध शिष्य बन गए। कबीर दास के घर को छात्रों और विद्वानों के रहने और उनके महान कार्यों के अध्ययन के लिए समायोजित किया गया है।कबीर दास के जन्म के माता-पिता का कोई सुराग नहीं है क्योंकि उनका लालन पोषण नीरू और नीमा (उनके देखभाल करने वाले माता-पिता) द्वारा वाराणसी के एक छोटे से शहर लहरतारा में की गई थी। उसके माता-पिता बेहद गरीब और अशिक्षित थे, लेकिन उन्होंने दिल से छोटे बच्चे को गोद लिया और उसे अपने व्यवसाय के बारे में प्रशिक्षित किया। उन्होंने एक साधारण गृहस्थ और एक फकीर का संतुलित जीवन व्यतीत किया।
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कबीरदास कौन थे | Kabir Das Kon The (All About Kabir Das in Hindi)
संत कबीरदास पंद्रहवीं शताब्दी में पवित्र शहर वाराणसी, उत्तर प्रदेश में पैदा हुए एक भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। उनके लेखन ने हिंदू धर्म भक्ति आंदोलन को प्रभावित किया, उस समय भारत में मुख्य रूप से हिंदू और इस्लाम में प्रचलित धर्मों में अर्थहीन और गलत प्रथाओं की आलोचना की।कबीरदास के अनुसार जो व्यक्ति हमेशा धार्मिकता के मार्ग पर चलता है, जो किसी से ईर्ष्या नहीं करता है और सभी को समान रूप से प्यार करता है, उसे हमेशा सर्वोच्च शक्ति का समर्थन मिलता है। उनके अनुसार एक ही सर्वोच्च सत्य है जो विभिन्न धर्मों द्वारा अलग-अलग तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। , अभी भी यह कुछ ही लोगों के लिए जाना जाता है। कबीर का लेखन सरल है लेकिन उनके अर्थ में गहरा सत्य छिपा है। वह सबसे सम्मानित भक्ति संतों में से एक हैं, और उनकी शिक्षाओं ने सभी क्षेत्रों के लोगों को प्रभावित किया है।वह एक निर्गुण संत थे, जिन्होंने अपनी पारंपरिक शिक्षाओं के लिए हिंदू और इस्लाम जैसे प्रमुख धर्मों की सार्वजनिक रूप से आलोचना की।उनका जिज्ञासु मन था और उन्होंने बनारस में हिंदू धर्म के बारे में बहुत कुछ सीखा।रामानंद ने उन्हें हिंदू और मुस्लिम धार्मिक और दार्शनिक सिद्धांतों के गहन ज्ञान में दीक्षा दी और वे इस्लामी शिक्षाओं से परिचित हो गए।
कबीरदास जी का प्रारम्भिक जीवन | Kabir Das Early Life
अगर संत कबीरदास जी के प्रारंभिक जीवन की बात कि जाए तो कबीर दास का जन्म 1398 में, ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन ब्रह्ममुहूर्त के शुभ काल में हुआ था। कई मिथ्थकों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म माता के गर्भ से नहीं हुआ था और वे सीधे सतलोक (सर्वोच्च स्थान जो भौतिकवादी भ्रम से मुक्त हैं) से अवतरित हुए थे। ) कमल के फूल पर। अधिकांश इस्लामिक और हिंदू उन्हें रामानंद के शिष्य के रूप में वर्णित करते हैं, जो अद्वैत दर्शन के बाद भक्तिपूर्ण वैष्णववाद के लिए जाने जाते थे। कबीर दृढ़ता से काशी के पवित्र शहर से जुड़े हुए हैं। कुछ संस्करणों के अनुसार, नीरू और उनकी पत्नी नीमा ने कबीर दास को लहरतारा झील के पास पाया था और उसे अपने बच्चें के रूप में पाला था। उनके माता-पिता गरीब थे, लेकिन उन्होंने उत्सुकता से युवा शिशु को स्वीकार किया और उसका पालन-पोषण किया। एक विनम्र गृहस्वामी और एक रहस्यवादी के रूप में उनका दोहरा अस्तित्व था।बुनकरों के एक गरीब मुस्लिम परिवार ने उन्हें पाला और गोद लिया गया था। हम आपको बता दें कि कबीर दास के जन्म के बारे में काफी कम जानकारी उपलब्ध है। कबीर दास एक महान साधु थे क्योंकि वे बहुत आध्यात्मिक थे। वह रीति-रिवाजों और संस्कृति पर अपने प्रभाव के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। उन्होंने अपना सारा आध्यात्मिक प्रशिक्षण अपने गुरु रामानंद से प्राप्त किया, जब वे युवा थे और अपने गुरु के पसंदीदा शिष्य बन गए।
कबीरदास जी की शिक्षा व गुरु | Kabir Das Education
कबीर दास द्वारा किसी भी तरह कि औपचारिक शिक्षा नहीं ली गई है। वह एक गरीब बुनकर परिवार में पले बढ़े थे, वहीं उन्हें बुनकर के रूप में प्रशिक्षित भी नहीं किया गया था। जबकि उनकी कविताएँ रूपकों की बुनाई से भरपूर हैं, उनका दिल इस पेशे में पूरी तरह से नहीं था। वह सत्य की खोज के लिए एक आध्यात्मिक यात्रा पर थे, जो उनकी कविता में स्पष्ट रूप से प्रकट होती है। उन्होंने एक तथ्यात्मक गुरु की प्रशंसा से गूंजती हुई संक्षिप्त और सरल शैली में कविताओं की रचना की थी।ऐसा माना जाता है कि उन्होंने गुरु रामानंद से आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त की थी। प्रारंभ में रामानंद कबीर दास को अपना शिष्य मानने को तैयार नहीं थे। एक बार की बात है संत कबीर दास तालाब की सीढ़ियों पर लेटे हुए राम-राम का जाप कर रहे थे, प्रात:काल रामानंद स्नान करने जा रहे थे कि कबीर उनके चरणों के नीचे आ गए। रामानंद ने उस गतिविधि के लिए दोषी महसूस किया और कबीर दास जी ने उन्हें अपने छात्र के रूप में स्वीकार करने का आग्रह किया। ऐसा कहा जाता है कि आज भी कबीर चौरा में संत कबीर दास जी का परिवार रहता हैं।
कबीरदास जी की भाषा व प्रमुख रचनाएँ
कबीर दास द्वारा लिखी गई पुस्तकें आम तौर पर दोहों और गीतों का संग्रह हैं। कुल कार्य बहत्तर हैं जिनमें कुछ महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध कार्य रेख़्तास, कबीर बीजक, सुक्निधान, मंगल, वसंत, सबदास, सखियाँ और पवित्र आगम हैं।कबीर दास की लेखन शैली और भाषा बहुत ही सरल और सुंदर है। उन्होंने अपने दोहों को बहुत ही साहस और स्वाभाविक रूप से लिखा था जो अर्थ और महत्व से भरे हुए हैं। उन्होंने अपने दिल की गहराई से इन्हें लिखा है। उन्होंने अपने सरल दोहों और दोहों में समस्त विश्व के भाव को संकुचित कर दिया है। उनकी बातें तुलना और प्रेरणा से परे हैं।
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कबीरदास जी का दर्शनशास्त्र
कबीर का काव्य जीवन के बारे में उनके दर्शन का प्रतिबिंब है। उनका लेखन मुख्य रूप से पुनर्जन्म और कर्म की अवधारणा पर आधारित था। जीवन के बारे में कबीर का दर्शन बहुत स्पष्ट था। वह जीवन को बेहद सादगी से जीने में विश्वास रखते थे। ईश्वर की एकता की अवधारणा में उनका दृढ़ विश्वास था। उन्होंने कोई बोले राम राम कोई खुदाई की धारणा की वकालत की। मूल विचार यह संदेश फैलाना था कि चाहे आप हिंदू भगवान का नाम लें या मुस्लिम भगवान का, तथ्य यह है कि केवल एक भगवान है जो इस खूबसूरत दुनिया का और इस दुनिया में मौजूद सभी का निर्माता है। वहीं कबीरदास के दर्शन और सिद्धांतों की बात करें तो वे हिंदू समुदाय द्वारा थोपी गई जाति व्यवस्था के खिलाफ थे और मूर्तियों की पूजा करने के विचार का भी विरोध करते थे। इसके विपरीत, उन्होंने आत्मान की वेदांतिक अवधारणाओं की वकालत की थी। उन्होंने न्यूनतम जीवन के विचार का समर्थन किया जिसकी सूफियों ने वकालत की थी। संत कबीर के दर्शन के बारे में स्पष्ट विचार रखने के लिए, उनकी कविताओं और दो पंक्तियों के छंदों को देखें जो उनके मन और आत्मा को बोलते हैं।कबीर पाखंड की प्रथा के सख्त खिलाफ थे और लोगों द्वारा दोहरा मापदंड बनाए रखना पसंद नहीं करते थे। उन्होंने हमेशा लोगों को दूसरे जीवों के प्रति दया भाव रखने और सच्चे प्यार का अभ्यास करने का उपदेश दिया। उन्होंने मूल्यों और सिद्धांतों का पालन करने वाले अच्छे लोगों की संगति की आवश्यकता का आग्रह किया। खैर, कबीर ने अपने लेखन में अपने मूल्यों और मान्यताओं को बहुत खूबसूरती से व्यक्त किया है जिसमें दोहे, कविताएँ, रमैनियाँ, कहारवास और शबद शामिल हैं।
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कबीरदास जी की मृत्यु | Kabir Das Nidhan
विक्रम संवत 1575 में हिंदू कैलेंडर के अनुसार, उन्होंने जनवरी 1518 में माघ शुक्ल एकादशी में मगहर में दुनिया छोड़ दी। एक मिथक है कि 15वीं शताब्दी के एक सूफी कवि कबीर दास ने अपनी मृत्यु का स्थान मगहर चुना था, जो लखनऊ से लगभग 240 किलोमीटर दूर है। यह अनुमान लगाया जाता है कि उन्होंने लोगों की यादों से परी कथा (मिथक) को मिटाने के लिए मरने के लिए इस स्थान को चुना था। उन दिनों यह माना जाता था कि जिसने भी मगहर क्षेत्र में अपनी अंतिम सांस ली है और अपने प्राण त्यागें उसे कभी स्वर्ग कि प्राप्ती नहीं होगी। वहीं अगले जन्म में वह गधा बनकर जन्म लेगा।
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संत कबीरदास जी के अनमोल दोहे (व्याख्या)
जब में था तब हरि नहीं’ अब हरि है में नहीं, सब अंधियारा मिट गया, जब दीपक देख्या माहिन” “बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड खजूर पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर” “बुरा जो देख में चला, बुरा ना मिला कोए जो मन देखा आपने, मुझसे बुरा ना कोई” “गुरु गोविंद दोहू खाडे, काके लागू पाने बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताएं” “सब धरती कागज करु, लेखनी सब बनरे सात समुन्दर की मासी करू, गुरुगुण लिखा ना जाए” “ऐसी वाणी बोलिए, मन का आप खोये औरन को शीतल करे, आपू शीतल होए” पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। “निंदक निहारे राखिए, आंगन कुटी छावे बिन पानी बिन सबुन, निर्मल करे सुभाष” “बुरा जो देख में चला, बुरा ना मिला कोए जो मन देखा आपने, मुझसे बुरा ना कोई” “दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे ना कोय जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख कहे को होए” “माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोहे एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंधुगी तोहे” “चलती चक्की देख कर, दीया कबीरा रोये दो पाटन के बीच में, सब बच्चा ना कोय” “मालिन आवत देख के, कल्याण करे पुकार फूले फूले चुन लिए, काल हमारी बार” “काल करे सो आज कर, आज करे सो अब पल में प्रलय होगी, बहुरी करेगा कब” साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।
Q.कबीर दास के माता-पिता के नाम क्या थे ?
Ans.कबीर दास के असली माता पिता की जानकारी किसी के पास नहीं हैं वहीं ऐसा माना जाता है कि एक तलब किनारे एक मुस्लिम बुनकर दंपत्ति ने कबीर दास को पाया था और उनके द्वारा ही उनका लालन पोषण किया गया था।
Q. कबीर ने कितने दोहे लिखे ?
Ans. उन्होंने 25 दोहे लिखे।
Q. कबीर दास के गुरु कौन थे ?
Ans. कबीर दासे के गुरु का नाम रामानंद था। रामानंद एक हिंदू भक्ति नेता थे।
Q.कबीर दास द्वारा कौन कौन सी विभिन्न साहित्यिक कृतियाँ लिखी गई हैं?
Ans. कबीर दास ने कुल 72 रचनाएँ कि हैं और उनमें से कुछ प्रसिद्ध हैं कबीर बीजक, कबीर बानी, रेख़्तास, अनुराग सागर, सुखनिधान, मंगल, कबीर ग्रन्थावली, वसंत, सबदास, सखियाँ और आदि हैं।
Q. कबीर दास कौन से धर्म के अनुयायी थे ?
Ans. किवदंती के अनुसार कबीर दास को एक मुस्लिम दंपत्ति ने गोद लिया था। जिसके चलते उनका प्रारंभिक जीवन एक मुसलमान के रूप में बीता था। वहीं कुछ समय बाद वे एक हिंदू तपस्वी रामानंद से बहुत प्रभावित हुए थे और उनके अनुयायी बन गए थे। इसलिए उनके धर्म का कोई ठोस प्रमाण नहीं है, लेकिन वे दोनों धर्मों का सम्मान और विश्वास करते थे।
Q.क्या कबीरदास जी का पारिवारिक जीवन भी था ?
Ans. ऐसा माना जाता है कि कबीर दास ने लोई नाम की एक स्थानीय महिला से शादी की थी और उनके दो बच्चे एक बेटा और एक बेटी भी थे। बेटे का नाम कमल और बेटी का नाम कमली हैं। हालाँकि, कुछ अन्य सूत्रों का कहना है कि उन्होंने दो बार शादी की है, वहीं कई लोगों का मानना है कि उन्होंने कभी शादी ही नही की।
Q.संत कबीर दास ने ईश्वर के बारे में क्या कहा था ?
Ans. संत कबीर दास ने कहा कि ईश्वर सर्वव्यापी है यानी हर जगह मौजूद है और भक्ति और प्रेम से उसकी पूजा की जा सकती है।
Q.नीरू और नीमा को कबीर दास बचपन में कहाँ मिले थे ?
Ans. नीरू और नीमा ने कबीर दास को वाराणसी के लहरतारा तालाब में एक नवजात शिशु के रूप में पाया।
Q.संत कबीर दास के गुरु कौन थे ?
Ans. संत कबीर दास के गुरु स्वामी रामानन्द थे।
Q.संत कबीर दास के कितने बच्चे थे ?
Ans. संत कबीर दास के कमल नाम का एक बेटा और कमली नाम की एक बेटी थी।
Q.संत कबीर दास की कविताओं को क्या कहा जाता है?
Ans. संत कबीर दास की कविताओं को दोहा कहा जाता है।
इस ब्लॉग पोस्ट पर आपका कीमती समय देने के लिए धन्यवाद। इसी प्रकार के बेहतरीन सूचनाप्रद एवं ज्ञानवर्धक लेख easyhindi.in पर पढ़ते रहने के लिए इस वेबसाइट को बुकमार्क कर सकते हैं
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