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आज हम इस आर्टिकल में आपको लता मंगेशकर की जीवनी – Lata Mangeshkar Biography Hindi के बारे में बताएंगे।
लता मंगेशकर की जीवनी – Lata Mangeshkar Biography Hindi
Lata Mangeshkar भारत की सबसे अनमोल गायिका है।
पूरी दुनिया उनकी आवाज की दीवानी हैं पिछले 10 दशको से भारतीय सिनेमा को अपनी आवाज दे रही लता मंगेशकर बेहद शांत स्वभाव की और प्रतिभा की धनी है. Lata Mangeshkar Biography Hindi
भारत के क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर उन्हे अपनी मां मानते हैं.
आज पूरी संगीत की दुनिया उनके आगे नतमस्तक है।
लता जी ने लगभग 30 से ज्यादा भाषाओं में फिल्मी और गैर फिल्मी गाने गाए हैं।
लता जी हमेशा नंगे पावँ गाना गाती है।
लेकिन उनके पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्व गायक के रूप में रही है।
लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 को इंदौर, मध्य प्रदेश में हुआ था।
इनका बचपन में नाम ‘हेमा’ था, लेकिन जब यह 5 वर्ष की थी तो इनके माता-पिता ने इनका नाम ‘लता’ रख दिया गया। इनके पिता का नाम दीनानाथ मंगेशकर और माता का नाम शेवंती मंगेशकर था।
इनका जन्म एक मराठा परिवार में हुआ था।
लता के पिता रंगमंच कलाकार और शास्त्रीय गायकार थे.
यह पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी थी।
लता मंगेशकर के भाई बहनों के नाम इस प्रकार है- ह्रदयनाथ मंगेशकर, उषा मंगेशकर ,मीना मंगेशकर आशा भोसले ।
इन सभी ने अपनी आजीविका चलाने के लिए गायन को ही चुना।
लता मंगेशकर का जन्म इंदौर में हुआ था, लेकिन उनकी परवरिश महाराष्ट्र में हुई।
जब लता 7 साल की थी तब वह महाराष्ट्र आई।
लता मंगेशकर ने 5 साल की उम्र से ही अपने पिता के साथ एक रंगमंच कलाकार के रूप में अभिनय करना शुरू कर दिया।
लता मंगेशकर जी का निधन 92 वर्ष की आयु में हुआ .
उन्होंने 6 फरवरी 2022 को लेजेंड्री सिंगर लता मंगेशकर ने मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली.
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यह लेख स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के संपूर्ण जीवन पर प्रकाश डालने का एक छोटा सा प्रयास स्वरूप है। इस लेख के माध्यम से आप लता मंगेशकर जी के व्यक्तित्व , फिल्मी जगत तथा निजी पारिवारिक कुछ अहम जानकारियां हासिल कर पाएंगे।उनके बचपन से लेकर जीवन के प्रत्येक क्षण में व्याप्त सादगी और उनके यादगार स्मृतियों से ओतप्रोत यह लेख उनकी दिव्य छवि को प्रस्तुत करने में सक्षम है। किस प्रकार एक छोटी सी लता ने स्वर साम्राज्ञी बनने तक का सफर तय किया। क्यों आज भी उनके अनेकों चाहने वाले हैं , आज भी वह लोगों के दिलों में किसी देवी से कम स्थान नहीं रखती।आज इसी पर आधारित कुछ स्मृतियां प्रस्तुत कर रहे हैं –
Table of Contents
जन्म – 28 सितंबर 1929 स्थान – इंदौर मध्य प्रदेश भारत राष्ट्रीयता – भारतीय नाम – लता मंगेशकर उपनाम – स्वर साम्राज्ञी , राष्ट्र की आवाज , सहराबदी की आवाज , भारत कोकिला आदि। पिता – दीनानाथ मंगेशकर माता – शेवतंति मंगेशकर भाई – हृदयनाथ मंगेशकर बहन – मीना खाड़ीकर , आशा भोसले , उषा मंगेशकर। मृत्यु – 6 फरवरी 2022
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भारत रत्न , राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार , फिल्म फेयर पुरस्कार , फिल्मफेयर आजीवन पुरस्कार।
लता मंगेशकर आज वह हस्ती है , जिनको देश ही नहीं अपितु विदेश भी जानता है , और सराहना करता है। यही कारण है कि इतनी उम्र होने के बावजूद भी वह सबके लिए बड़ी दीदी बनी हुई है। यह उनके चाहने वालों का प्रेम ही है , जो उनसे सदैव जोड़े रहता है। लता जी की आरंभिक दुनिया ऐसी नहीं थी , उन्होंने अपने स्वयं के संघर्ष के बलबूते आज यह मुकाम हासिल किया है।
आज जहां देखने को मिलता है कोई बड़े सितारे का बेटा , अपने बाप की काबिलियत के माध्यम से अपने जीवन में आगे बढ़ता है। लता जी के साथ ऐसा कदाचित नहीं था।
उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर , इस प्रकार की प्रसिद्धि के सख्त खिलाफ थे।
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लता जी पास की दुकान से कुछ सामान ले आती है। दुकानदार को जब यह पता चलता है कि , यह लड़की पंडित दीनानाथ मंगेशकर की बेटी है , तो वह उनसे पैसे नहीं लेता। घर आकर लता जी ने जब पैसे न लेने की बात बताई , पिता ने काफी डांट लगाया। उन्हें वापस पैसे देकर आने को कहा और आगे भविष्य में इस प्रकार का कार्य न करने को भी सख्त हिदायत दी। पंडित दीनानाथ मंगेशकर जी का मानना था कि प्रसिद्धि किसी दूसरे के माध्यम से नहीं , अपितु स्वयं के संघर्ष और मेहनत से बनाया जाना चाहिए।
यह सीख लता जी के जीवन पर काफी गहरा प्रभाव डालने में सक्षम रहा। इसी सीख को उन्होंने सदैव अपने मन – मस्तिष्क में रखा। आज लगभग 6-7 दशक हो गए होंगे , उन्होंने निरंतर अपने जीवन में कामयाबी हासिल की। यही कारण है कि आज पूरे विश्व में उनकी प्रसिद्धि है। आज पूरा विश्व उन्हें आदर के साथ सम्मान देता है।
भारतीय सिनेमा में लता जी का आगमन संयोग नहीं था बल्कि प्रयोग था। लता जी का सपना था कि वह भारतीय सिनेमा में अपने स्वर के माध्यम से योगदान देंगी । यही कारण था कि उन्होंने आजीविका के लिए गायन का क्षेत्र चुना।
लता जी की बहन तथा भाई ने भी भारतीय सिनेमा में गायन का क्षेत्र चयन किया।
लता जी भारतीय सिनेमा में पार्श्य गायन के माध्यम से भारतीय सिनेमा को उच्च शिखर पर ले जाने का भरसक प्रयत्न किया। यही नहीं लता जी ने तीस से अधिक भाषाओं में गीत , भजन आदि गायन किया। अनगिनत अभिनेत्री और अभिनेता को अपने स्वर से पहचान दिलाई। विदेशी पत्रिका टाइम्स ने भी उनके योगदान और प्रसिद्धि को स्वीकार करते हुए , उन्हें एकछत्र स्वर साम्राज्ञी के रूप में स्वीकार किया।
यह उनके जीवन में सिनेमा क्षेत्र के योगदान के लिए बेहद ही सराहनीय पुरस्कार है।
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लता जी का जन्म मराठी , ब्राह्मण , मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ। पिता दीनानाथ मंगेशकर का लगाओ भारत के उभरते रंगमंच के प्रति था। उन्होंने रंगमंच के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। वह रंगमंच पर गायन तथा अभिनय का कार्य किया करते थे। लता जी को यहीं से भारतीय सिनेमा क्षेत्र में आने की प्रेरणा संभवत मिली होगी।
आरंभ में उनके पिता नहीं चाहते थे कि , उनके परिवार से और कोई भारतीय सिनेमा के लिए कार्य करें। यही कारण था कि लता जी ने जब पहली बार फिल्म कीर्ति हसाल के लिए एक गाना गाया। तब उनके पिता ने इस गाने को फिल्म में शामिल करने से इंकार कर दिया। किंतु लता जी के प्रतिभा को उन्होंने यहां नहीं पहचाना। लता जी के स्वर से काफी निर्देशक और फिल्म जगत के बड़े-बड़े लोग काफी प्रभावित थे। उन्होंने लता जी को प्रेरित किया।
घर में बड़ी होने के कारण जिम्मेदारी लता जी के कंधों पर आ टिकी , बहने और भाई उनसे छोटे थे। लता जी अभी महज तरह वर्ष की ही थी , अब उनके सामने अपनी आजीविका को चलाने की कड़ी चुनौती आ खड़ी हुई थी।
तब फिल्मी जगत के बड़े-बड़े लोगों ने उन्हें फिल्म के लिए अपने स्वर देने की मांग रखी। लता जी को पहले से ही गाने का बहुत शौक था , उन्होंने अभिनेत्री के रूप में कार्य करने से इंकार कर दिया , किंतु उन्होंने पार्श्व गायन को स्वीकार किया। वह पर्दे के पीछे से अभिनय करने वालों को अपना स्वर देने लगी। इन के स्वरों में वह जादुई तेज था , जिसे लोगों ने बेहद सराहना करते हुए ग्रहण किया। उनके स्वर की प्रसिद्धि दिन – प्रतिदिन बढ़ती गई। विश्व की ऐसी कोई सीमा नहीं है जो इनके स्वर को रोक सकी हो। इनके चाहने वाले किसी एक सीमा में बंधे नहीं है , देश-विदेश हर जगह इनके स्वर के कद्रदान हैं।
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जैसा कि उपरोक्त बता चुके हैं , पिता दीनानाथ मंगेशकर अपनी बेटियों को फिल्म जगत में आने देना नहीं चाहते थे। जब लता जी ने पहली फिल्म के लिए गाना रिकॉर्ड किया तो , उसे फिल्म में शामिल करने से दीनानाथ मंगेशकर जी ने मना कर दिया। किंतु पिता के असमय निधन ( 1942 ) से पूरा परिवार आर्थिक संकट में घिर गया।
सिनेमा तथा रंगमंच जगत के लोगों ने जब अभिभावक बनकर लता मंगेशकर के सामने रंगमंच तथा सिनेमा के लिए कार्य करने का अनुरोध किया तो , अपने बड़ों की बात वह टाल ना सकी। उन्होंने हिंदी और मराठी फिल्मों के लिए गायन तथा अभिनेत्री के रूप में कार्य करना स्वीकार किया।
बतौर अभिनेत्री उनकी पहली फिल्म 1942 में बनी पाहिली मनलागौर थी।
कुछ फिल्मों में लता जी ने अभिनेत्री का रोल अदा किया , साथ ही खुद के लिए पार्श्व गायन भी किया। लता जी के लिए संगीत का क्षेत्र भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं था।
इनकी लोकप्रियता इतनी थी कि किसी नए कलाकार के लिए अपनी जगह बनाना जंग जीतने के समान था।
फिर भी उन्होंने उन चुनौतियों को स्वीकार करते हुए , अपने आजीविका का क्षेत्र फिल्म जगत को ही बनाया । लता जी ने जिस पहले फिल्म के लिए गाना रिकॉर्ड किया था , पिता के आग्रह पर वह गाना पहले तो फिल्म में शामिल नहीं किया गया। वह फिल्म भी पर्दे पर कभी नहीं आ सकी।
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लता जी को गायन के क्षेत्र में 1947 में वसंत जोगलेकर जी के नेतृत्व में सफलता हाथ लगी , उन्होंने उनके लिए – ” अंग्रेजी छोरा चला गया। ” , ” दिल मेरा तोड़ा हाय कहीं का ना छोड़ा तेरे प्यार ने। “ गायन किया । इसके बाद कई बड़े हस्तियों ने लता जी को सराहते हुए फिल्म जगत में स्वागत किया जिसमें प्रमुख थे वसंत देसाई , गुलाम हैदर। इन्होंने कितने ही फिल्मों के लिए सिफारिशें की और अपने फिल्मों में कार्य दिया। वह लता जी के प्रतिभा को भलीभांति पहचान चुके थे , वह जानते थे भविष्य के उभरते जगमगाते स्वर्णिम सितारों में से एक है।
1949 में बनी फिल्म महल के लिए उन्होंने पार्श्व गायन का कार्य किया , यह फिल्म पर्दे पर बेहद सफल रही। इसके सभी गाने लोकप्रिय हुए , यहां से लता जी के लिए सफलता के मार्ग खुल चुके थे। फिर उन्होंने एक के बाद एक सभी फिल्मों में सुपरहिट गानों की माला तैयार कर दी। आज तक इन्होंने कहीं विराम नहीं लिया और अभी भी फिल्मों में पार्श्व गायन को अपना सौभाग्य मानती हैं। इनकी प्रसिद्धि आज इससे लगा सकते हैं , इन्होंने 36 से अधिक भाषाओं में गायन किया जिसमें 30000 से अधिक गाने अभी तक वह गा चुकी हैं। कितनी ही देश तथा विदेश की प्रसिद्ध ख्यातिया इन्हें प्राप्त है। पुरस्कार शायद इनके लिए ही बने हो ऐसा लगता है।
लता जी का परिवार पहले से ही रंगमंच के लिए अभिनय और गायन का कार्य किया करता था , यही उनकी कर्मभूमि थी। लता मंगेशकर को गायन और शास्त्रीय संगीत का ज्ञान विरासत में प्राप्त हुआ था। पिता उन्हें शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देना चाहते थे , उन्होंने स्कूली ज्ञान के लिए भी लता जी को विद्यालय में नाम लिखवाया। किंतु वहां शिक्षिका के साथ ठीक प्रकार से नहीं जमा। उन्होंने विद्यालय जाने का विचार बदल लिया और स्वतंत्र रूप से घर पर ही शास्त्रीय संगीत का ज्ञान अर्जन किया।
माना जाता है लता जी नित्य – प्रतिदिन शास्त्रीय संगीत का अधिक समय अभ्यास किया करती हैं। उनके जानने वाले बताते हैं वह जब भी गायन के क्षेत्र में आती हैं तो वह नंगे पांव ही गायन का कार्य करती है। यहां तक कि वह स्टूडियो में भी जब अपने गाने को रिकॉर्ड करती हैं , तब वह नंगे पांव ही होती हैं।
यही साधना उन्हें महान बनाने में योगदान देती है। मां सरस्वती स्वयं उनके जिह्वा पर विराजमान है। उनके वाणी से निकले गए शब्द स्वर लहरियों में इस प्रकार बैठते हैं की दर्शक और श्रोता मंत्रमुग्ध रह जाते हैं। मां सरस्वती की ऐसी अनुकंपा अन्यत्र दुर्लभ है।
लता जी का मानना है उन्होंने जो भी ग्रहण किया है वह समाज की देन है। उन्होंने समाज से ही अपनी सारी शिक्षा ग्रहण की है , उनकी सारी शिक्षा पर अधिकार भी समाज का है। इसलिए वह समाज में अपने ज्ञान को श्रद्धांजलि स्वरूप ऐसे शिष्य तैयार कर रही हैं , जो उनकी विरासत को भविष्य में संभाल सकें। इसलिए उन्होंने विद्यालय के माध्यम से नित्य – प्रतिदिन अपने शिष्यों को शास्त्रीय गायन की कला सिखाती है।
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जिस समय फिल्म जगत में लता मंगेशकर जी का आगमन उस समय हुआ जब कितनी ही दिग्गज कलाकार पहले से मौजूद थी। जिन्हें ख्याति प्राप्त थी , उनकी प्रसिद्धि जगजाहिर थी। ऐसे समय में अपनी जगह बनाना लता जी के लिए संभव नहीं था।
उन्होंने समय को पहचाना और उर्दू जुबान को सरल शब्दों में प्रयोग किया।
फिल्म महल 1949 का एक गाना जिसे नूरजहां के लिए पार्श्वगायन के रूप में गाया गया – “आएगा आने वाला” इस गाने ने फिल्म जगत में उनकी उपस्थिति को दर्ज कराया।
यहां से उन्होंने जो सफलता प्राप्त की , वह सफलता नित्य – निरंतर गुणात्मक रूप से उन्हें प्राप्त होती गई।
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लता मंगेशकर किसी सम्मान की मोहताज नहीं है , उनके हजारों – लाखों चाहने वाले उन्हें अपने दिलों में बसाकर रखते हैं। यह किसी भी कलाकार के लिए सबसे बड़ा पुरस्कार और सम्मान होता है। इससे बढ़कर कोई और पुरस्कार तथा सम्मान नहीं हो सकता।
कितने ही पुरस्कार आज लता मंगेशकर जी के पास आकर अपना भाग्य समझ रहे हैं।
कितने ही पुरस्कारों को लता जी ने यह कह कर लेने से मना कर दिया कि , वह किसी नए उभरते कलाकार को पुरस्कार और सम्मान दें। ताकि उनको भविष्य के लिए हौसला मिल सके।
ऐसे महान हस्ती और आत्मा को किसी और पुरस्कार तथा सम्मान की क्या आवश्यकता ?
फिर भी उनके नाम कुछ पुरस्कार और सम्मान लिखे जा चुके हैं जो कुछ इस प्रकार हैं –
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, फिल्मफेयर अवार्ड्स, महाराष्ट्र राज्य फिल्म पुरस्कार, बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन अवार्ड्स.
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आज भी लता मंगेशकर जी के साथ कार्य करने के लिए बहुत सारे कलाकार लालायित रहते हैं। किंतु उम्र और समय अब इसकी इजाजत नहीं देता। फिर भी कुछ पाबंदियों के साथ लता जी आज भी सिनेमा जगत में अपना योगदान दे रही हैं। नए सितारे उनके साथ छोटा सा भी कार्य कर कर स्वयं को सौभाग्यशाली मानते हैं। लता दीदी इतनी शांत और शील स्वभाव की हैं कि उनकी छत्रछाया में रहना प्रत्येक कलाकार के लिए गौरव की बात है।
यह कुछ प्रमुख कलाकार थे , जिनके साथ लता दीदी ने बेहद लोकप्रिय सुपरहिट गानों की प्रस्तुति दी।
आज इनके द्वारा बनाए गए संगीत घर – घर में बजते हुए सुन सकते हैं। आज भी कोरा कागज और सिलसिला जैसे फिल्मों के गाने जब कहीं बजते हुए कानों में धुन सुनाई पड़ते हैं , तो व्यक्ति ठहर कर उस गाने को पूरा सुनने को विवश हो जाता है।
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लता जी का संगीत और फिल्म जगत में आगमन लगभग आजादी के आसपास का समय माना जाता है। उस समय की पीढ़ी के साथ लता जी ने कार्य करना आरंभ किया था और यह निरंतर जारी है। आज भी कितनी ऐसी अभिनेत्री है जिनके लिए लता जी अपने स्वर के माध्यम से पार्श्व गायन करती हैं। जिसमें रानी मुखर्जी , करिश्मा कपूर , ऐश्वर्या राय , करीना कपूर आदि ऐसे नए युग की अभिनेत्रियां है , जिनके लिए लता मंगेशकर ने आग्रह पर गाना स्वीकार किया।
लता मंगेशकर ने भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के सामने जब स्टेज पर ऐ मेरे वतन के लोगों का गायन किया वहां श्रोता स्तब्ध रह गए। उनकी आंखों से निरंतर अश्रु की धारा बह रही थी। गाने की प्रत्येक पंक्ति , शब्द लोगों के दिलों में उतर रहे थे। इसके लिए लता जी को सभी लोगों ने हृदय से आभार व्यक्त किया और यह गाना उनके मुख से निकल कर अमर हो गया।
भारतीय सिनेमा में लता जी का योगदान 7 – 8 दशक का माना गया है।
उन्होंने इन दशकों में अनेकों – अनेक कलाकारों के साथ कार्य किया। क्या छोटे और क्या बड़े , सभी उनसे प्रेम करते और वह स्वयं उनसे प्रेम करती। और लोकप्रिय कलाकारों की भांति इनमें लेसमात्र का भी अहंकार और क्रोध नहीं है।
यही कारण है कि आज की पीढ़ियां भी इनका नाम आदर के साथ लेती है।
लता जी इतने शांत और सौम्य स्वभाव की है , कि उनके साथ किसी विवाद का होना विवादास्पद लगता है। फिर भी लता जी एक सामान्य व्यक्ति है , सामान्य व्यक्ति के साथ कुछ विवादों का होना तो स्वाभाविक है। उन्होंने जिस समय सिनेमा के लिए कार्य करना आरंभ किया , तब से लेकर आज तक उनके साथ कुछ छोटे-मोटे विवाद उनके साथ जुड़े रहे। जिसमें कभी उनके डायरेक्टर और संगीतकार के साथ रहे हो मनमुटाव , कभी वित्तीय लेनदेन के लिए उस समय के वरिष्ठ कलाकारों के साथ खींचतान ।
एक विवाद उनके साथ और जुड़ गया जब उन्हें सफेद साड़ी पहनने के लिए निशाना बनाया गया। लोगों को समझना चाहिए जो संगीत की पूजारन है , स्वयं वह सरस्वती देवी की भक्त अवश्य होगी।
किंतु लोगों को बात बनाने के लिए छोटा सा माध्यम चाहिए होता है। तिल को भी पहाड़ बना देने वाले लोग समाज में मौजूद हैं। उन्होंने इसको लेकर काफी विवाद उत्पन्न किया किंतु लता जी ने इन विवादों को सदैव नजर अंदाज किया।
मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर के गाने आज भी लोकप्रिय हैं। इन दोनों के बीच गाए जाने वाले गानों को लेकर रॉयल्टी के संदर्भ में कुछ मनमुटाव उस समय देखने को मिलता था।
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बात यह थी , उस समय गायकों ने एक मंडली बनाई और अपने मेहनत के लिए रॉयल्टी की मांग बड़ी कंपनियों से रखी , जिनके लिए वह गाना रिकॉर्ड किया करते थे। अग्रणी भूमिका में मोहम्मद रफी थे।
मोहम्मद रफी बड़े भोले थे ,वह कंपनियों के बाद में आ गए और उन्होंने उनकी बातों को मान लिया। जिसमें लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी जी के बीच मनमुटाव हो गया। दोनों ने एक दूसरे के साथ गाने के लिए मना कर दिया। यह विवाद तीन – साढे तीन साल तक चला , फिर लता दीदी ने खुद माफी मांग ली।
वह मोहम्मद रफी को बड़े भाई मानती थी , और बड़े भाई से ज्यादा दिन नाराज नहीं रहा जा सकता था।
एक विवाद उनके साथ और यह जुड़ गया 1962 में जब लता मंगेशकर जी के पेट में अचानक दर्द हुआ। डॉक्टर के संपूर्ण इलाज के बाद यह बात निकलकर सामने आई कि उन्हें जहर दिया गया था। इसको लेकर काफी बड़ी चर्चा हुई , किंतु यह बात निकलकर सामने नहीं आई। आखिर किसका लता जी के साथ वैर है ? और किसने उन्हें इस प्रकार का जहर दिया है ?
आज तक यह चर्चा का विषय बना हुआ है।
शादी को लेकर भी लता जी के साथ विवाद जुड़े रहे कभी कोई आरोप लगा था कि वह शादीशुदा है तो कभी उसका खंडन होता।
अनेकों छोटे-मोटे विवादों से लता जी व्यक्तिगत रूप से जुड़ी रहे , किंतु उन्होंने कभी भी स्वयं उन मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया। यही कारण है कि यह मुद्दे उन पर कभी हावी नहीं हो पाए। कुछ समय बाद अपने आप वह मुद्दे शांत हो जाते और इस प्रकार के विवाद उनको छू भी नहीं पाए।
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लता जी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि , उन्होंने शादी इसलिए नहीं कि क्योंकि पिता की असमय मृत्यु के कारण भाई-बहन की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई थी। सभी को पालन – पोषण करना और व्यवस्थित करना यह उनका दायित्व बन गया था।
अपने भाई – बहन के पालन – पोषण के अतिरिक्त उनके पास और अधिक समय नहीं बचता था , जिसके कारण वह शादी जैसे विषयों से सदैव दूर रही।
किशोर दा जी से उनकी पहली मुलाकात बेहद रोचक थी। जब लता मंगेशकर जी ने चालीस के दशक में गाना आरंभ किया था , तब वह मालवाड़ लोकल ट्रेन से जाया करती थी। उसके बाद वहां से मुंबई स्टूडियो पैदल ही निकल जाया करती थी। रास्ते में उन्हें एक व्यक्ति मिलता जो उन्हें देखकर हंसता और कभी अपनी छड़ी घुमाता और अजीब हरकतें करता है जैसे कोई मदारी या निर्देशक करता है।
इस व्यक्ति की हरकतें लता जी को पसंद नहीं आई।
यह व्यक्ति एक दिन स्टूडियो में भी पहुंच गया। यह देखकर लता जी आश्चर्यचकित रह गई , कि यह मेरा पीछा करते हुए यहां तक आ गया। उन्होंने खेमचंद प्रकाश जिसे कहा – चाचा यह लड़का मेरा रोज पीछा करता है , मुझे देख कर हंसता है। खेमचंद जोर से हंसे और कहा अरे यह अशोक कुमार का छोटा भाई किशोर दा है।
यह भी इसी फिल्म के गाने को रिकॉर्ड करने आए हैं।
वाकई यह दृश्य काफी हास्यास्पद था , उनके विषय में लता जी से बातें करते हैं , तो वह हमेशा या कहती हैं किशोर दा की बात अगर मैं करने लगु तो हंसते-हंसते समय निकल जाएगा , मगर उनकी बातें कभी खत्म नहीं होगी।
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लता मंगेशकर जी के प्रिय तो फिल्म जगत में काम करने वाले सभी हैं। उनका यही सौम्य स्वभाव सबके लिए प्रिय बनाता है। किंतु व्यक्तिगत वह जिन अभिनेत्रियों को पसंद करती हैं उनमें से –
नए युग की अभिनेत्रियां जिसमें –
उन्हें अधिक प्रिय हैं , जिनके लिए गाना , गाना उन्हें बेहद ही पसंद आता है।
मुकेश भैया और दिलीप भैया के लिए वह आज भी बातें करते हुए उसी युग में पहुंच जाती है। जब वह युवा हुआ करती थी उनकी बातें उनकी शैली आज भी याद करके उनके होठों पर मुस्कान आ जाती हैं। उस जमाने को लता जी आज भी याद कर सुकून महसूस करती हैं।
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लता मंगेशकर जी के गाने सुनना मुझे बहुत अच्छा लगता है. आपने उनकी जीवनी बहुत अच्छे तरीके से लिखी है. मुझे उनके बारे में बहुत सारी नई बातें भी पता चली जो मुझे अभी तक कहीं सुनने को या पढ़ने को नहीं मिला था.
हमें आपका कॉमेंट पढ़ कर बहुत अच्छा लगा. आप लोगों के ऐसे फीडबैक पढ़कर हमें काफी प्रेरणा मिलती है.
Biography :
Published By : Jivani.org : लता दिनानाथ मंगेशकर जन्म : 28 सितंबर, 1929 इन्दोर पिता : दिनानाथ मंगेशकर माता : शेवंती मंगेशकर लता मंगेशकर भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका हैं, जिनका छ: दशकों का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा पड़ा है। हालाँकि लता जी ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फ़िल्मी और गैर-फ़िल्मी गाने गाये हैं लेकिन उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायक के रूप में रही है। अपनी बहन आशा भोंसले के साथ लता जी का फ़िल्मी गायन में सबसे बड़ा योगदान रहा है। लता की जादुई आवाज़ के भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ पूरी दुनिया में दीवाने हैं। टाईम पत्रिका ने उन्हें भारतीय पार्श्वगायन की अपरिहार्य और एकछत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया है। आरंभिक जीवन : लता मंगेशकर का जन्म मराठी बोलने वाले गोमंतक मराठा परिवार में, मध्यप्रदेश के इंदौर में हुआ था। उनके पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर एक क्लासिकल गायक और थिएटर एक्टर थे। उनकी माता शेवंती (शुधामती) महाराष्ट्र के थालनेर से थी और वह दीनानाथ की दूसरी पत्नी थी। परिवार का उपनाम (सरनेम) हर्डीकर थे, लेकिन दीनानाथ ने इसे बदल्कार मंगेशकर रखा, ताकि उनका नाम उनके पारिवारिक गाँव मंगेशी, गोवा का प्रतिनिधित्व करे। जन्म के समय लता का नाम “हेमा” रखा गया था लेकिन बाद में उनका नाम बदलकर लता रखा गया था। लता अपने माता-पिता की पहली संतान है। इसके साथ ही मीना, आशा भोसले, उषा और हृदयनाथ उनके भाई-बहन है। मंगेशकर ने अपना पहला पाठ अपने पिता से सिखा था। पाँच साल की उम्र में लता जी ने अपने पिता के म्यूजिकल नाटक के लिये एक्ट्रेस का काम करना शुरू किया था (संगीत नाटक) । स्कूल के पहले दिन से ही उन्होंने बच्चो को गाने सिखाने शुरू कर दिये थे। जब शिक्षको ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो वह बहुत गुस्सा हो गयी थी और उन्होंने स्कूल जाना ही छोड़ दिया था। सूत्रों के अनुसार ये भी पता चला है की लता अपने साथ स्कूल में आशा को लेकर आती थी और स्कूल वालो ने उन्हें साथ लाने से मना कर दिया था इसीलिए उन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया था। 13 साल की उम्र में 1942 में एक मराठी फिल्म के लिए गाना रिकॉर्ड किया| फिल्म रिलीज़ हुई लेकिन किसी कारणवश फिल्म से गाना हटा दिया गया, इस बात से लता जी बहुत आहात हुई| इस साल लता जी के पिता की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई| लता जी अपने घर में सब भाई बहनों में बड़ी थी, तो सारी ज़िम्मेदारी उनके कंधो पर आ गई| विनायक दामोदर एक फिल्म कंपनी के मालिक थे, जो दीनानाथ जी के अच्छे मित्र थे, उनके जाने के बाद उन्होंने लता जी के परिवार को संभाला| 1945 में लता जी मुंबई आ गई और अमानत अली खान से ट्रेनिंग लेने लगी| लता जी ने 1947 में हिंदी फिल्म ‘आप की सेवा में’ के लिए भी एक गाना गया, लेकिन किसी ने उनको नोटिस नहीं किया| उस समय गायिका नूर जहान, शमशाद बेगम, ज़ोह्राभई अम्बलेवाली का दबदबा था, बस यही गायिका पूर्ण रूप से सक्रीय थी, उनकी आवाज भारी व अलग थी, उनके सामने लता जी की आवाज काफी पतली और दबी हुई लगती थी| 1949 में लता जी ने लगातार 4 हिट फिल्मों में गाने गए और सबमे उनको नोटिस किया गया| बरसात, दुलारी, अंदाज व महल फ़िल्में हिट थी, इसमें से महल फिल्म का गाना ‘आएगा आनेवाला’ सुपर हिट हुआ और लता जी ने अपने पैर हिंदी सिनेमा में जमा लिए| लता जी को सर्वाधिक गीत रिकार्ड करने का भी गौरव प्राप्त है। फ़िल्मी गीतों के अतिरिक्त आपने ग़ैरफ़िल्मी गीत भी बहुत खूबी के साथ गाए हैं। लता जी की प्रतिभा को पहचान मिली सन् 1947 में, जब फ़िल्म “आपकी सेवा में” उन्हें एक गीत गाने का मौक़ा मिला। इस गीत के बाद तो आपको फ़िल्म जगत में एक पहचान मिल गयी और एक के बाद एक कई गीत गाने का मौक़ा मिला। इन में से कुछ प्रसिद्ध गीतों का उल्लेख करना यहाँ अप्रासंगिक न होगा। जिसे आपका पहला शाहकार गीत कहा जाता है वह 1949 में गाया गया “आएगा आने वाला”, जिस के बाद आपके प्रशंसकों की संख्या दिनोदिन बढ़ने लगी। इस बीच आपने उस समय के सभी प्रसिद्ध संगीतकारों के साथ काम किया। अनिल बिस्वास, सलिल चौधरी, शंकर जयकिशन, एस. डी. बर्मन, आर. डी. बर्मन, नौशाद, मदनमोहन, सी. रामचंद्र इत्यादि सभी संगीतकारों ने आपकी प्रतिभा का लोहा माना। लता जी ने दो आँखें बारह हाथ, दो बीघा ज़मीन, मदर इंडिया, मुग़ल ए आज़म, आदि महान फ़िल्मों में गाने गाये है। आपने “महल”, “बरसात”, “एक थी लड़की”, “बडी़ बहन” आदि फ़िल्मों में अपनी आवाज़ के जादू से इन फ़िल्मों की लोकप्रियता में चार चाँद लगाए। इस दौरान आपके कुछ प्रसिद्ध गीत थे: “ओ सजना बरखा बहार आई” (परख-1960), “आजा रे परदेसी” (मधुमती-1958), “इतना ना मुझसे तू प्यार बढा़” (छाया- 1961), “अल्ला तेरो नाम”, (हम दोनो-1961), “एहसान तेरा होगा मुझ पर”, (जंगली-1961), “ये समां” (जब जब फूल खिले-1965) इत्यादि। आपने गीत, गज़ल, भजन, संगीत के हर क्षेत्र में अपनी कला बिखेरी है। गीत चाहे शास्त्रीय संगीत पर आधारित हो, पाश्चात्य धुन पर आधारित हो या फिर लोक धुन की खुशबू में रचा-बसा हो। हर गीत को लता जी अपनी आवाज़ के जादू से एक ऐसे जीवंत रूप में पेश करती हैं कि सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता है। लता जी ने युगल गीत भी बहुत खूबी के साथ गाए हैं। मन्ना डे, मुहम्मद रफ़ी, किशोर कुमार, महेंद्र कपूर आदि के साथ-साथ आपने दिग्गज शास्त्रीय गायकों पं भीमसेन जोशी, पं जसराज इत्यादि के साथ भी मनोहारी युगल-गीत गाए हैं। गज़ल के बादशाह जगजीत सिंह के साथ आपकी एलबम “सजदा” ने लोकप्रियता की बुलंदियों को छुआ। देश-भक्ति गीत : 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिये एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी उपस्थित थे। इस समारोह में लता जी के द्वारा गाए गये गीत “ऐ मेरे वतन के लोगों” को सुन कर सब लोग भाव-विभोर हो गये थे। पं नेहरू की आँखें भी भर आईं थीं। ऐसा था आपका भावपूर्ण एवं मर्मस्पर्शी स्वर। आज भी जब देश-भक्ति के गीतों की बात चलती है तो सब से पहले इसी गीत का उदाहरण दिया जाता है। संगीत प्रशिक्षण : 1945 में लता जी मुम्बई आ गयी और उन्होंने उस्ताद अमानत अली खान से संगीत प्रशिक्षण लेना शूरू कर दिया | लता जी और उनकी बहन आशा ने 1945 में विनायक की पहली हिंदी फिल्म बड़ी माँ छोटा सा किरदार भी निभाया था | इस फिल्म में लता जी ने एक भजन “माता तेरे चरणों में ” भी गाया था | इसके बाद विनायक की दुसरी हिंदी फिल्म सुभद्रा के लिए उनका परिचय संगीत निर्देश वसंत देसाई से कराया गया | 1947 में विभाजन के बाद उस्ताद अमानत अली खान पाकिस्तान चले गये इसलिए वो रजब अली खा के भतीजे अमानत खा से शास्त्रीय संगीत सीखने लगी | 1948 में विनायक की मौत के बाद गुलाम हैदर उनके संगीत गुरु बने | गुलाम हैदर ने लता जी की मुलाक़ात शशधर मुखर्जी से कराई जो उन दिनों शहीद फिल्म पर काम कर रहे थे लेकिन मुखर्जी ने यह कहकर मना कर दिया कि उनकी आवाज पतली है | उनको क्या पता था कि आने वाले दौर में निर्माता निर्देशक उनको अपनी फिल्म में गाना गंवाने के लिए उनके पैर पड़ेंगे | हैदर ने लता जी को मजबूर फिल्म में मौका दिया जिसमे उन्होंने “दिल मेरा तोडा ,मुझे कही का न छोड़ा ” गाना गाया जो उनके जीवन का पहला हिट गाना बना | यही कारण है कि लता जी गुलाम हैदर साहब को ही अपना गॉडफादर मानती है जिन्होंने उनके टैलेंट को पहचाना और उन पर विश्वास दिखाय था | लता के गाये यादगार गीतों में एन फिल्मों के नाम विशेष उल्लेखनीय है – अनारकली, मुगले आजम अमर प्रेम, गाइड, आशा, प्रेमरोग, सत्यम् शिवम् सुन्दरम्,आदी. नए फिल्मों में भी उनकी आवाज पहले की तरह न केवल सुरीली है, बल्किउसमे और भी निखार आ गया है, जैसे हिना, रामलखन, आदी में. एक समय उनके गीत ‘बरसात’, ‘नागिन’, एवं ‘पाकीजा’ जैसी फिल्मों में भी काफी चले बतौर फिल्म निर्माता – गायन के अलावा लता जी ने विविध अवसरों पर चार फिल्मों का निर्माण किया था। सबसे पहले 1953 में मराठी फिल्म ‘वाडई‘ बनाई थी। इसी वर्ष उन्होंने संगीतकार सी. रामचंद्र के साथ मिलकर हिंदी फिल्म ‘झांझर‘ का निर्माण किया था। तत्पश्चात 1955 में हिंदी फिल्म ‘कंचन‘ बनाई। उपरोक्त तीनों औसत फिल्में थीं। 1990 में उनकी निर्मित फिल्म ‘लेकिन‘ हिट गई थी। लता जी ने पांच फिल्मों में संगीत निर्देशन दिया था। सभी फिल्में मराठी थीं और 1960 से 1969 के बीच बनी थीं। बतौर संगीत निर्देशक उनकी पहली फिल्म राम और पाव्हना (1960) थी। अन्य फिल्में मराठा टिटुका मेलेवा (1962), साहित्यांजी मंजुला (1963), साधु मानसे (1955) व तबाड़ी मार्ग (1969) थीं। पुरस्कार : 1. फिल्म फेर पुरस्कार (1958, 1962, 1965, 1969, 1993 and 1994) 2. राष्ट्रीय पुरस्कार (1972, 1975 and 1990) 3. महाराष्ट्र सरकार पुरस्कार (1966 and 1967) 4. 1969 - पद्म भूषण 5. 1974 - दुनिया मे सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज़ बुक रिकॉर्ड 6. 1989 - दादा साहब फाल्के पुरस्कार 7. 1993 - फिल्म फेर का लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार 8. 1996 - स्क्रीन का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार 9. 1997 - राजीव गान्धी पुरस्कार 10. 1999 - एन.टी.आर. पुरस्कार 11. 1999 - पद्म विभूषण 12. 1999 - ज़ी सिने का का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार 13. 2000 - आई. आई. ए. एफ. का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार 14. 2001 - स्टारडस्ट का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार 15. 2001 - भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान "भारत रत्न" 16. 2001 - नूरजहाँ पुरस्कार 17. 2001 - महाराष्ट्र भूषण ( 3 ) |
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