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तुलसीदास जी का जीवन परिचय

तुलसीदास एक हिंदू कवि-संत थे जो हिंदी, भारतीय और विश्व साहित्य में सबसे महान कवियों में गिने जाते थे। वह भक्ति काल के रामभक्ति शाखा के महान कवि भी थे।

वह भगवान राम की भक्ति के लिए मशहूर थे और वे ‘रामचरितमानस’ महाकाव्य के लेखक के रूप में हनुमान चालीसा के रचयिता के रूप में भी जाने जाते थे उन्होनें रामचरित मानस में भगवान राम का जीवन एक मर्यादा की डोर पर बांधा है।

तुलसीदास जी को मूल रामायण के रचयिता वाल्मिीकि जी का कलियुग का अवतार भी कहा जाता है। एक शानदार महाकाव्य के लेखक और कई लोकप्रिय कार्यों के प्रणेता तुलसीदास ने अपने जीवन के कामों  के बारें में कुछ तथ्य दिए।

तुलसीदास जी का जीवन परिचय – Tulsidas in Hindi

Tulsidas

“पन्द्रह सौ चौवन विसे कालिन्दी के तीर । (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); श्रावण शुक्ला सप्तमी , तुलसी धरयो शरीर ।। ”

वेदों , साहित्य का ज्ञान –

परिणय सूत्र में बंधे –.

अस्थि चर्म मय देह यह , ता सों ऐसी प्रीति ।। नेकु जो होती राम से , तो काहे भव-भीत ?
  • Kabir das biography

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चित्रकूट के घाट पै , भई संतन के भीर। तुलसीदास चंदन घिसै , तिलक देत रघुबीर।।

मृत्यु – 

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साहित्यिक कार्य – 

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अन्य रचनाएं – 

  • रामललानहछू
  • वैराग्य-संदीपनी
  • बरवै रामायण
  • कलिधर्माधर्म निरुपण
  • कवित्त रामायण
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  • सतसई
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  • रोला रामायण
  • राम शलाका
  • कवितावली
  • दोहावली
  • रामाज्ञाप्रश्न
  • गीतावली
  • विनयपत्रिका
  • संकट मोचन

दोहे – 

“तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर। सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि । ”

Tulsidas ke Dohe

जवाब: महर्षि वाल्मिकी जी।

जवाब: जलालुद्दीन अकबर।

जवाब: संत तुलसीदास।

जवाब: हनुमान चालीसा, हनुमान अष्टक, हनुमान बाहुक इत्यादी।

जवाब: रामचरितमानस मुख्यतः अवधी भाषा मे लिखित ग्रंथ है, जिसमे बहूत से जगह पर संस्कृत के श्लोक भी मौजूद है।

जवाब: तुलसीदास जी की पत्नी रत्नावली के अनमोल सुझाव से तुलसीदास जी का मन परिवर्तन होकर वो प्रभू श्रीराम के भक्ती मे पुरी तरह डूब गये।

जवाब: प्रभू श्री रामचंद्रजी के संपूर्ण जीवन चरित रामायण पर आधारित रामचरितमानस है।

जवाब: वैसे तो तुलसीदास जी के जन्म के कोई ठोस सबुत उपलब्ध नही हुये है, पर जानकारो तथा विद्वानों के मुताबिक इनका जन्म सोलावी सदी मे हुआ था।

जवाब: हा, भारत सरकार ने डाक विभाग का टिकट तुलसीदास जी पर बनाया है।

28 thoughts on “तुलसीदास जी का जीवन परिचय”

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अद्भभुत वाक्य शैली

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nice biography sir thanku….

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please provide language of tulsidas

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तुलसीदास की जीवनी

संस्कृत से वास्वतिक रामायण को अनुवादित करने वाले तुलसीदास जी हिन्दी और भारतीय तथा विश्व साहित्य के महान कवि हैं। तुलसीदास के द्वारा ही बनारस के प्रसिद्ध संकट मोचन मंदिर की स्थापना हुयी। अपनी मृत्यु तक वो वाराणसी में ही रहे। वाराणसी का तुलसी घाट का नाम उन्हीं के नाम पर पड़ा है।

गोस्वामी तुलसीदास एक महान हिन्दू संत, समाजसुधारक के साथ ही दर्शनशास्त्र और कई प्रसिद्ध किताबों के भी रचयिता थे। राम के प्रति अथाह प्रेम की वजह से ही वे महान महाकाव्य रामचरित मानस के लेखक बने। तुलसीदास को हमेशा वाल्मिकी (संस्कृत में रामायण और हनुमान चालीसा के वास्वतिक रचयिता) के अवतरण के रुप में प्रशंसा मिली। तुलसीदास ने अपना पूरा जीवन शुरुआत से अंत तक बनारस में ही व्यतीत किया।

तुलसीदास का जन्म श्रावण मास के सातवें दिन में चमकदार अर्ध चन्द्रमा के समय पर हुआ था। उत्तर प्रदेश के यमुना नदी के किनारे राजापुर (चित्रकुट) को तुलसीदास का जन्म स्थान माना जाता है। इनके माता-पिता का नाम हुलसी और आत्माराम दुबे है। तुलसीदास के जन्म दिवस को लेकर जीवनी लेखकों के बीच कई विचार है। इनमें से कई का विचार था कि इनका जन्म विक्रम संवत के अनुसार वर्ष 1554 में हुआ था लेकिन कुछ का मानना है कि तुलसीदास का जन्म वर्ष 1532 हुआ था। उन्होंने 126 साल तक अपना जीवन बिताया।

एक कहावत के अनुसार जहाँ किसी बच्चे का जन्म 9 महीने में हो जाता है वहीं तुलसीदास ने 12 महीने तक माँ के गर्भ में रहे। उनके पास जन्म से ही 32 दाँत थे और वो किसी पाँच साल के बच्चे की तरह दिखाई दे रहे थे। ये भी माना जाता है कि उनके जन्म के बाद वो रोने के बजाय राम-राम बोल रहे थे। इसी वजह से उनक नाम रामबोला पड़ गया। इस बात को उन्होंने विनयपत्रिका में भी बताया है। इनके जन्म के चौथे दिन इनके पिता की मृत्यु हो गयी थी। अपने माता पिता के निधन के बाद अपने एकाकीपन के दुख को तुलसीदास ने कवितावली और विनयपत्रिका में भी बताया है।

चुनिया जो कि हुलसी की सेविका थी, ने तुलसीदास को उनके माता-पिता के निधन के बाद अपने शहर हरिपुर ले कर गयी। लेकिन दुर्भाग्यवश वो भी तुलसीदास का ध्यान सिर्फ साढ़े पाँच साल तक ही रख पायी और चल बसी। इस घटना के बाद गरीब और अनाथ तुलसीदास घर-घर जाकर भीख माँग कर अपना पालन-पोषण करने लगे। ऐसा माना जाता है कि देवी पार्वती ने एक ब्राह्मण का रुप लेकर रामबोला की परवरिश की।

तुलसीदास जी ने खुद भी अपने जीवन के कई घटनाओं और तथ्यों का जिक्र अपनी रचनाओं में किया है। उनके जीवन के दो प्राचीन स्रोत भक्तमाल और भक्तिरसबोधिनी को क्रमश: नभादास और प्रियदास के द्वारा लिखा गया। नभादास ने अपने लेख में तुलसीदास को वाल्मिकी का अवतार बताया है। तुलसीदास के निधन के 100 साल बाद प्रियदास नें उनपर अपना लेख लिखना शुरु किया और रामबोला के जीवन के सात चमत्कार और आध्यत्मिक अनुभवों का विवरण दिया। तुलसीदास पर मुला गोसैन चरित्र और गोसैन चरित्र नामक दो जीवनायाँ 1630 में वेनी माधव और 1770 के लगभग दासनीदस (या भवनीदस) द्वारा लिखा गया।

वाल्मिकी के अवतार

रामचरितमानस जैसे महाकाव्य को लिखने वाले तुलसीदास को वाल्मिकी का अवतार माना जाता है। हिन्दू धर्मशास्त्र भविष्योत्तर पूर्णं के अनुसार, भगवान शिव ने अपनी पत्नी पार्वती से वर्णित किया है कि वाल्मिकी का अवतार फिर से कल युग में होगा। मौजूद स्रोतों के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि वाल्मिकी जी के मुख से रामायण को सुनने के लिये हनुमान जी खुद जाया करते थे। रावण पर राम की विजय के बाद भी हनुमान हिमालय पर राम की पूजा जारी रखे हुए थे।

रामबोला (तुलसीदास) को विरक्त शिक्षा दी गयी (वैराग प्रारंभ के रुप में) जिसके बाद उनका नया नाम पड़ा ‘तुलसीदास’। जब ये सिर्फ 7 वर्ष के थे तो इनका उपनयन अयोध्या में नरहरिदास के द्वारा किया गया किया गया। रामबोला ने अपनी शिक्षा अयोध्या से शुरु की। तुलसीदास ने बताया कि उनके गुरु ने महाकाव्य रामचरितमानस को कई बार उन्हें सुनाया। 15-16 साल की उम्र में रामबोला पवित्र नगरी वाराणसी आये जहाँ पर वे संस्कृत व्याकरण, हिन्दी साहित्य और दर्शनशास्त्र, चार वेद, छ: वेदांग, ज्योतिष आदि की शिक्षा अपने गुरु शेष सनातन से ली। अध्ययन के बाद, अपने गुरु की आज्ञा पर वे अपनी जन्मस्थली चित्रकूट वापस आ गये जहाँ उन्होनें अपने पारिवारिक घर में रहना शुरु कर दिया और रामायण का व्याख्यान करने लगे।

वैवाहिक इतिहास

तुलसीदास का विवाह रत्नावली (दिनबंधु पाठक की पुत्री) से वर्ष 1583 में ज्येष्ठ महीने (मई या जून का महीना) के 13वें दिन हुआ था। विवाह के कुछ वर्ष पश्चात रामबोला को तारक नाम के पुत्र की प्राप्ति हुयी जिसकी मृत्यु बचपन में ही हो गयी। एक बार की बात है जब तुलसीदास हनुमान मंदिर गये हुए थे, उनकी पत्नी अपने पिता के घर गयी चली गयी। जब वे अपने घर लौटे और अपनी पत्नी रत्नावली को नहीं देखा तो अपनी पत्नी से मिलने के लिये यमुना नदी को पार कर गये। रत्नावली तुलसीदास की इस कृत्य से बहुत दुखी हुयी और उन्हें जिम्मेदार ठहराते हुये कहा कि अपने आप को ईश्वर के प्रति पूरी तरह समर्पित कर दो। इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी का त्याग किया और पवित्र नगरी प्रयाग चले गये जहाँ पर उन्होंने गृहस्थ आश्रम छोड़कर साधु का जीवन अपना लिया। कुछ लेखकों का ये भी मानना था कि वो अविवाहित और जन्म से साधु थे।

भगवान हनुमान से कैसे हुयी मुलाकात

तुलसीदास को अपनी कथा के दौरान ये अनुभव हुआ कि वो हनुमान के चरणों में है और वो जोर-जोर से चिल्लाने लगे कि मैं जानता हूँ कि आप कौन है अतएव आप मुझे छोड़ कर नहीं जा सकते। उसके बाद हनुमान ने उन्हें ढ़ेर सारा आशीर्वाद दिया, इस अवसर पर तुलसीदास ने अपनी संवेदनाओं को हनुमान जी के सामने प्रस्तुत किया कि वो श्री राम को अपने सामने देखना चाहते है। पवन पुत्र ने उनका मार्गदर्शन किया और उन्हें चित्रकुट जाने की सलाह दी और कहा कि वहाँ सच में तुम्हें श्री राम के दर्शन प्राप्त होंगे।

राम से तुलसीदास की मुलाकात

हनुमान जी की सलाह का अनुसरण करते हुए तुलसीदास चित्रकूट के रामघाट के आश्रम में रहने लगे। एक बार जब वो कमदगीरि पर्वत की परिक्रमा करने गये थे उन्होंने घोड़े की पीठ पर दो राजकुमारों को देखा लेकिन वे उनमें फर्क नहीं कर सके। बाद में उन्होंने पहचाना कि वो हनुमान की पीठ पर राम-लक्ष्मण थे, वे दुखी हो गये। इन सारी घटनाओं का उल्लेख उन्होंने अपनी रचना गीतीवली में भी किया है। अगली ही सुबह, उनकी मुलाकात दुबारा राम से हुयी जब वो चंदन की लकड़ी की लेई बना रहे थे। श्रीराम उनके पास आये और चंदन की लकड़ी की लेई के तिलक के बारे में पूछा, इस तरह से तुलसीदास ने राम का पूरा दर्शन प्राप्त किया। तुलसीदास बहुत खुश हुए और चंदन की लकड़ी की लेई के बारे में भूल गये, उसके बाद राम जी ने खुद से तिलक लिया और अपने और तुलसीदास के माथे पर लगाया।

विनयपत्रिका में तुलसीदास ने चित्रकूट में हुये चमत्कार के बारे में बताया है साथ ही श्रीराम का धन्यवाद भी किया है। एक बरगद के पेड़ के नीचे माघ मेला में तुलसीदास ने भारद्वाज (स्रोता) और याज्ञवल्क्य मुनि के भी दर्शन का उल्लेख किया है।

तुलसीदास का साहित्यिक जीवन

तुलसीदास ने तुलसी मानस मंदिर पर चित्रकूट में स्मारक बनवाया है। इसके बाद वे वाराणसी में संस्कृत में कविताएँ लिखने लगे। ऐसा माना जाता है कि स्वयं भगवान शिव ने तुलसीदास को अपनी कविताओं को संस्कृत के बजाय मातृभाषा में लिखने का आदेश दिया था। ऐसा कहा जाता है कि जब तुलसीदास ने अपनी आँखे खोली तो उन्होंने देखा कि शिव और पार्वती दोनों ने उन्हें अपना आशीर्वाद देते हुए कहा कि वे अयोध्या जाकर अपनी कविताओं को अवधि भाषा में लिखे।

रामचरितमानस, महाकाव्य की रचना

तुलसीदास ने वर्ष 1631 में चैत्र मास के रामनवमी पर अयोध्या में रामचरितमानस को लिखना शुरु किया था। रामचरितमानस को तुलसीदास ने मार्गशीर्ष महीने के विवाह पंचमी (राम-सीता का विवाह) पर वर्ष 1633 में 2 साल, 7 महीने, और 26 दिन का समय लेकर पूरा किया।

इसको पूरा करने के बाद तुलसीदास वाराणसी आये और काशी के विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती को महाकाव्य रामचरितमानस सुनाया।

तुलसीदास की मृत्यु

तुलसीदास की मृत्यु सन् 1623 में सावन के महीने में (जुलाई या अगस्त) गंगा नदी के किनारे अस्सी घाट पर हुआ।

तुलसीदास के दूसरे महत्वपूर्ण कार्य

रामचरितमानस के अलावा तुलसीदास के पाँच प्रमुख कार्य है:

दोहावली: ब्रज और अवधि भाषा में लगभग 573 विविध प्रकार के दोहों और सोरठा का संग्रह है ये। इनमें से 85 दोहों का उल्लेख रामचरितमानस में भी है।

कवितावली: इसमें ब्रज भाषा में कविताओं का समूह है। महाकाव्य रामचरितमानस की तरह इसमें 7 किताबें और कई उपकथा है।

गीतावली: इसमें ब्रज भाषा के 328 गीतों का संग्रह है जो सात किताबों में विभाजित है और सभी हिन्दूस्तानी शास्त्रीय संगीत के प्रकार है।

कृष्णा गीतावली या कृष्णावली: इसमें भगवान कृष्ण के लिये 61 गीतों का संग्रह जिसमें से 32 कृष्ण की रासलीला और बचपन पर आधारित है।

विनय पत्रिका: इसमें 279 ब्रज के श्लोकों का संग्रह है जिसमें से 43 देवी-देवताओं के लिये है।

तुलसीदास के अप्रधान कार्य

बरवै रामायण: इसमें 69 पद है और ये सात कंदों में विभाजित है।

पार्वती मंगल: इसमें अवधि भाषा में 164 पद है जो भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का वर्णन करते है।

जानकी मंगल: इसमें अवधि भाषा में 216 पद है जो भगवान राम और माता सीता के विवाह का वर्णन करते है।

रामालला नहछू: अवधि में बालक राम के नहछू संस्कार (विवाह से पहले पैरों का नाखून काटना) को बताता है।

रामाज्ञा प्रश्न: 7 कंदों और 343 दोहों में श्रीराम की इच्छा शक्ति का वर्णन किया गया है।

वैराग्य संदीपनी: वैराग्य और बोध की स्थिति की व्याख्या करने के लिये ब्रज भाषा में इसमें 60 दोहे है।

जनसाधारण द्वारा सम्मानित कार्य:

हनुमान चालीसा: इसमें 40 पद है जो अवधि भाषा में हनुमान जी को समर्पित है साथ ही इसमें 40 चौपाईयाँ और 2 दोहे भी है।

संकटमोचन हनुमानाष्टक : इसमें अवधि में हनुमान जी के लिये 8 पद है।

हनुमानबाहुक: इसमें 44 पद है जो हनुमान जी के भुजाओं का वर्णन कर रहा है।

तुलसी सतसाईं: इसमें ब्रज और अवधि में 747 दोहों का संग्रह है जो 7 सर्गों में विभाजित है।

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तुलसीदास का संक्षिप्त परिचय

विद्यार्थी ध्यान दें कि इसमें हमने गोस्वामी तुलसी जी की जीवनी के बारे में संक्षेप में एक सारणी के माध्यम से समझाया है। तुलसीदास की जीवनी –

प्रस्तावना — भारतीय संस्कृति के उन्नायक महाकवि तुलसीदास भक्तिकाल की सगुण काव्यधारा की रामभक्ति शाखा के प्रमुख कवि हैं। इन्होंने राम के पावन चरित्र का हिन्दी कविता के माध्यम से गुणगान किया है। ये भारतीय संस्कृति के पुजारी, संत और महान् समन्वयकारी लोकनायक के रूप में प्रसिद्ध हैं।

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तुलसीदास का जीवन परिचय (tulsidas ka jivan parichay)

जीवन-परिचय— लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन-चरित्र से सम्बन्धित प्रामाणिक सामग्री अभी तक नहीं प्राप्त हो सकी है। डॉ० नगेन्द्र द्वारा लिखित ‘हिन्दी-साहित्य का इतिहास’ में इनके सन्दर्भ में जो प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं, वे इस प्रकार हैं- बेनीमाधव प्रणीत ‘मूल गोसाईंचरित’ तथा महात्मा रघुबरदास रचित ‘तुलसीचरित’ में तुलसीदास जी का जन्म संवत् 1554 वि० (सन् 1497 ई०) दिया गया है। बेनीमाधवदास की रचना में गोस्वामीजी की जन्म-तिथि श्रावण शुक्ला सप्तमी का भी उल्लेख है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित दोहा प्रसिद्ध है—

पंद्रह सौ चौवन बिसै, कालिंदी के तीर। श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धर्यौ सरीर॥

‘शिवसिंह सरोज’ में इनका जन्म संवत् 1583 वि० (सन् 1526 ई०) बताया गया है। पं० रामगुलाम द्विवेदी ने इनका जन्म संवत् 1589 वि० (सन् 1532 ई०) स्वीकार किया है। सर जॉर्ज ग्रियर्सन द्वारा भी इसी जन्म संवत् को मान्यता दी गई है। निष्कर्ष रूप में जनश्रुतियों एवं सर्वमान्य तथ्यों के अनुसार इनका जन्म संवत् 1589 वि० (सन् 1532 ई०) माना जाता है।

तुलसीदास

इनके जन्म स्थान के सम्बन्ध में भी पर्याप्त मतभेद हैं। ‘तुलसीचरित’ में इनका जन्मस्थान राजापुर बताया गया है, जो उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले का एक गाँव है। कुछ विद्वान् तुलसीदास द्वारा रचित पंक्ति “मैं पुनि निज गुरु सन सुनि, कथा सो सूकरखेत” के आधार पर इनका जन्मस्थल एटा जिले के ‘सोरो’ नामक स्थान को मानते हैं, जबकि कुछ विद्वानों का मत है कि ‘सूकरखेत’ को ‘भ्रमवश ‘सोरो’ मान लिया गया है। वस्तुतः यह स्थान आजमगढ़ जिले में स्थित है। इन तीनों मतों में इनके जन्मस्थान को ‘राजापुर’ माननेवाला मत ही सर्वाधिक उपयुक्त समझा जाता है। जनश्रुतियों के आधार पर यह माना जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दुबे एवं माता का नाम हुलसी था। इनका बचपन का नाम ‘तुलाराम’ था।

कहा जाता है कि जब इनका जन्म हुआ तब ये पांच वर्ष के बालक मालूम होते थे, दांत सब मौजूद थे और जन्मते ही इनके मुख से ‘राम’ शब्द निकला। इसलिए इन्हें ‘रामबोला’ भी कहा जाता है। आश्चर्यचकित होकर, इन्हें राक्षस समझकर इनके माता-पिता ने इन्हें बाल्यकाल में ही त्याग दिया था। ‘कवितावली’ के “मतु पिता जग जाइ तज्यौं बिधिहू न लिख्यो कछु भाल भला है” अथवा “बारे तै ललात बिललात द्वार-द्वार दीन, चाहत हो चारि फल चारि ही चनक को” आदि अन्तःसाक्ष्य यह स्पष्ट करते हैं कि तुलसीदास जी का बचपन अनेकानेक आपदाओं के बीच व्यतीत हुआ है। माता-पिता द्वारा त्याग दिए जाने के कारण इनका पालन-पोषण एक दासी ने तथा ज्ञान एवं भक्ति की शिक्षा प्रसिद्ध सन्त बाबा नरहरिदास ने प्रदान की। इन्हीं की कृपा से तुलसीदास जी वेद-वेदांग, दर्शन, इतिहास, पुराण आदि में निष्णात हो गए। इनका विवाह पं० दीनबन्धु पाठक की पुत्री ‘रत्नावली’ से हुआ था। ऐसा प्रसिद्ध है कि रत्नावली की फटकार से ही इनके मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ। कहा जाता है कि ये अपनी रूपवती पत्नी के प्रति अत्यधिक आसक्त थे, एक बार पत्नी द्वारा बिना बताए ही मायके चले जाने पर प्रेमातुर तुलसी अर्द्धरात्रि में आंधी-तूफान का सामना करते हुए अपनी ससुराल जा पहुंचे। पत्नी ने इसके लिए इन्हें फटकारा और इस पर इनकी पत्नी ने एक बार इनकी भर्त्सना करते हुए कहा—

लाज न लागत आपको, दौरे आयहु साथ। धिक् धिक् ऐसे प्रेम को, कहा कहौं मैं नाथ॥ अस्थि-चर्ममय देह मम, तामे ऐसी प्रीति। ऐसी जो श्रीराम महँ, होत न तौ भवभीति॥

पत्नी की इस फटकार ने तुलसीदास जी को सांसारिक मोह-माया और भोगों से विरक्त कर दिया। इनके हृदय में राम-भक्ति जाग्रत हो उठी। घर को त्यागकर कुछ दिन ये काशी में रहे, इसके बाद अयोध्या चले गए। बहुत दिनों तक ये चित्रकूट में भी रहे। यहाँ पर इनकी भेंट अनेक सन्तों से हुई। संवत् 1631 (सन् 1574 ई०) में अयोध्या जाकर इन्होंने ‘श्रीरामचरितमानस’ की रचना की। यह रचना दो वर्ष सात मास में पूर्ण हुई। इसके बाद इनका अधिकांश समय काशी में ही व्यतीत हुआ तथा संवत् 1680 (सन् 1623 ई०) में श्रावण शुक्ल पक्ष सप्तमी को काशी के असीघाट पर तुलसीदास जी राम-राम कहते हुए इनकी मृत्यु हो गई। इनकी मृत्यु के सम्बन्ध में यह दोहा प्रसिद्ध है—

संवत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर। श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यो शरीर॥

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तुलसीदास का साहित्यिक परिचय

साहित्यिक सेवाएँ— तुलसीदास जिस काल में उत्पन्न हुए, उस समय हिन्दू-जाति धार्मिक, सामाजिक व राजनीतिक अधोगति को पहुँच चुकी थी। हिन्दुओं का धर्म और आत्म-सम्मान यवनों के अत्याचारों से कुचला जा रहा था। सभी ओर निराशा का वातावरण व्याप्त था। ऐसे समय में अवतरित होकर गोस्वामी जी ने जनता के सामने भगवान राम का लोकरक्षक रूप प्रस्तुत किया, जिन्होंने यवन शासकों से कहीं अधिक शक्तिशाली रावण को केवल वानर-भालुओं के सहारे ही कुलसहित नष्ट कर दिया था। गोस्वामी जी का अकेला यही कार्य इतना महान् था कि इसके बल पर वे सदा भारतीय जनता के हृदय सम्राट् बने रहेंगे।

काव्य के उद्देश्य के सम्बन्ध में तुलसी का दृष्टिकोण सर्वथा सामाजिक था। इनके मत में वही कीर्ति, कविता और सम्पत्ति उत्तम है जो गंगा के समान सबका हित करने वाली हो— “कीरति भनिति भूति भलि सोई । सुरसरि सम सबकर हित होई ॥” जनमानस के समक्ष सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन का उच्चतम आदर्श रखना ही इनका काव्यादर्श था। जीवन के मार्मिक स्थलों की इनको अद्भुत पहचान थी। तुलसीदास ने राम के शक्ति, शील, सौन्दर्य समन्वित रूप की अवतारणा की है। इनका सम्पूर्ण काव्य समन्वय-भाव की विराट चेष्टा है। ज्ञान की अपेक्षा भक्ति का राजपथ ही इन्हें अधिक रुचिकर लगा है।

तुलसीदास की प्रमुख रचनाएँ

गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखित 37 ग्रन्थ माने जाते हैं, किन्तु प्रामाणिक ग्रन्थ 12 ही माने जाते हैं, जिनमें पांच प्रमुख हैं— श्रीरामचरितमानस, विनयपत्रिका, कवितावली, गीतावली, दोहावली। अन्य ग्रंथ है— बरवै रामायण, रामलला नहछू, कृष्ण गीतावली, वैराग्य संदीपनी, जानकी-मंगल, पार्वती-मंगल, रामाज्ञा प्रश्न और हनुमान-वाहक आदि।

रचनाएं एवं कृतियाँ – कविकुलगुरु तुलसीदास जी की 12 रचनाओं का सम्पूर्ण उल्लेख मिलता है—

(1) रामलला नहछू – गोस्वामीजी ने लोकगीत की ‘सोहर’ शैली में इस नहछू-ग्रन्थ की रचना की थी। यह इनकी प्रारम्भिक रचना है। (2) वैराग्य-संदीपनी – इसके तीन भाग हैं। पहले भाग में 6 छन्दों में ‘मंगलाचरण’ है। दूसरा ‘सन्त-महिमा-वर्णन’ और तीसरा भाग ‘शान्ति-भाव-वर्णन’ का है। (3) रामाज्ञा-प्रश्न – इसमें शुभ-अशुभ शकुनों का वर्णन है। यह ग्रन्थ सात सर्गों में है। इसमें रामकथा का वर्णन किया गया है। (4) जानकी-मंगल – इसमें कवि ने श्रीराम और जानकी के मंगलमय विवाह उत्सव का मधुर शब्दों में वर्णन किया है। (5) श्रीरामचरितमानस – इस विश्वप्रसिद्ध ग्रन्थ में कवि ने मर्यादा-पुरुषोत्तम श्रीराम के चरित्र का व्यापक वर्णन किया है। (6) पार्वती-मंगल – यह मंगल-काव्य है। गेय पद होने के कारण इसमें संगीतात्मकता का गुण विद्यमान है। इस रचना का उद्देश्य ‘शिव-पार्वती-विवाह’ का वर्णन करना है। (7) गीतावली – इसमें संकलित 230 पदों में राम के चरित्र का वर्णन है। कथानक के आधार पर इन पदों को सात काण्डों में विभाजित किया गया है। (8) विनयपत्रिका – ‘विनयपत्रिका’ का विषय भगवान् राम को कलियुग के विरुद्ध प्रार्थना-पत्र देना है। इसमें तुलसी भक्त और दार्शनिक कवि के रूप में दिखाई दिए हैं। (9) श्रीकृष्णगीतावली – इसके अन्तर्गत केवल 61 पदों में कवि ने पूरी श्रीकृष्ण-कथा मनोहारी ढंग से प्रस्तुत की है। (10) बरवै-रामायण – यह गोस्वामीजी की स्फुट रचना है। इसमें श्रीराम-कथा संक्षेप में वर्णित है। (11) दोहावली – इस संग्रह-ग्रन्थ में कवि की सूक्ति-शैली के दर्शन होते हैं। (12) कवितावली – इस कृति में कवित्त और सवैया शैली में रामकथा का वर्णन किया गया है।

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तुलसीदास जी की भाषा शैली

भाषा-शैली— ब्रज एवं अवधी दोनों ही भाषाओं पर तुलसी का समान अधिकार था। कवितावली, गीतावली, विनयपत्रिका आदि रचनाएं ब्रजभाषा में और रामचरितमानस अवधी भाषा में है। अवधी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों के प्रयोग के कारण इनकी रचनाओं में साहित्यिकता उच्चकोटि की है। यत्र-तत्र अरबी, फारसी, उर्दू तथा बुन्देलखण्डी भाषाओं के शब्द भी देखने को मिलते हैं। अपने समय में प्रचलित दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया, पद आदि काव्य-शैलियों में तुलसी ने पूर्ण सफलता के साथ काव्य रचना की है। दोहावली में दोहा पद्धति, रामचरितमानस में दोहा-चौपाई पद्धति, विनयपत्रिका में गीति पद्धति, कवितावली में कवित्त- सवैया पद्धति को इन्होंने अपनाया है। इन सभी शैलियों में इन्हें अद्भुत सफलता मिली है जो इनकी सर्वतोमुखी प्रतिभा तथा काव्यशास्त्र में इनकी गहन अंतर्दृष्टि की परिचायक है। इनके काव्य में भाव-पक्ष के साथ कला-पक्ष की भी पूर्णता है जिसको नीचे समझाया गया है।

तुलसीदास की काव्यगत विशेषताएँ

काव्यगत विशेषताएँ— तुलसी की कविता का भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों ही उच्चकोटि के हैं। इसीलिए तुलसी हिन्दी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। इनकी काव्यगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

भाव पक्ष — तुलसीदास जी की भक्ति दास्य-भाव की है। वे राम के अनन्य भक्त हैं। राम स्वामी हैं और तुलसी सेवक हैं। तुलसी का काव्य हिन्दू धर्म, संस्कृति और दर्शन का पवित्र संगम है। इनकी कविता में समन्वय की भावना सर्वत्र विद्यमान है। इन्होंने शैव और वैष्णव के भेद को समाप्त करके धार्मिक समन्वय का प्रयास किया। उनके राम कहते हैं-

शिव द्रोही मम दास कहावा। सो नर मोहि सपनेहुं नहिं भावा॥

सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन का उच्चतम आदर्श ‘जन-मानस के सम्मुख रखना ही तुलसी के काव्य का आदर्श था।

कला पक्ष — तुलसी ने अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं का समान रूप में प्रयोग किया है। इन्होंने अपने समय तक प्रचलित दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया, पद आदि काव्य शैलियों में पूर्ण सफलता के साथ ‘काव्य रचना’ की है। इसकी रचना में प्रायः सभी प्रकार के अलंकारों एवं रसों का बड़ा सुन्दर और स्वाभाविक समावेश हुआ है। उपमा, रूपक और उत्प्रेक्षा तुलसी के प्रिय अलंकार हैं। उत्पेक्षा, अनुप्रास और रूपक अलंकार का एक साथ प्रयोग देखिए-

अनुराग-तड़ाग में भानु उदै। विगसी मनौ मंजुल कंज-कली॥

तुलसीदास जी का साहित्य में स्थान

साहित्य में स्थान— गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी-साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। इनके द्वारा हिन्दी कविता की सर्वतोमुखी उन्नति हुई। इन्होंने अपने काल के समाज की विसंगतियों पर प्रकाश डालते हुए उनके निराकरण के उपाय सुझाये। साथ ही अनेक मतों और विचारधाराओं में समन्वय स्थापित करके समाज में पुनर्जागरण का मन्त्र फूँका। इसीलिए इन्हें समाज का पथ-प्रदर्शक कवि कहा जाता है।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस जैसे महाकाव्य की रचना करके तुलसी हिन्दी-साहित्य ही नहीं, अपितु विश्व-साहित्य की महान् विभूति बन गये हैं। इनकी कविता में काव्य के सभी गुणों का सुन्दर सम्मिश्रण है। अयोध्यासिंह उपाध्याय जी ने इनके विषय में ठीक ही कहा है—

“कविता करके तुलसी न लसे। कविता लसी पा तुलसी की कला॥”

तुलसीदास की राम भक्ति

गोस्वामी तुलसीदास राम के भक्त थे। इनकी भक्ति दास्य-भाव की थी। सम्वत् 1631 में इन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘रामचरितमानस’ की रचना आरम्भ की। इनके इस ग्रन्थ में विस्तार के साथ राम के चरित्र का वर्णन हुआ है। तुलसी के राम में शक्ति, शील और सौन्दर्य तीनों गुणों का अपूर्व सामंजस्य है। मानव-जीवन के सभी उच्चादर्शों का समावेश करके इन्होंने राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया है। अवधी भाषा में रचित रामचरितमानस बड़ा ही लोकप्रिय ग्रन्थ है। विश्व-साहित्य के प्रमुख ग्रन्थों में इसकी गणना की जाती है। रामचरितमानस के अतिरिक्त इन्होंने जानकी-मंगल, पार्वती-मंगल, रामलला-नहछू, रामाज्ञा-प्रश्न, बरवै-रामायण, वैराग्य-संदीपनी, कृष्ण-गीतावली, दोहावली, कवितावली, गीतावली तथा विनय-पत्रिका आदि ग्रन्थों की रचना की।

तुलसीदास जी की रचनाओं में भारतीय सभ्यता और संस्कृति का पूर्ण चित्रण देखने को मिलता है। रामचरितमानस आज भी देश की जनता को आदर्श जीवन के निर्माण की प्रेरणा प्रदान करता है।

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तुलसी के राम का स्वरूप स्पष्ट कीजिए

तुलसीदास राम के अनन्य भक्त हैं। इनकी भक्ति सेवक-सेव्य भाव की है। रामविमुख प्रिय इनके लिए त्याज्य है-

“जाके प्रिय न राम वैदेही। तजिए ताहि कोटि वैरी सम जद्यपि परम सनेही॥”

तुलसी के काव्य में समन्वय की भावना उसकी प्रमुख विशेषता है। इन्होंने भक्ति एवं ज्ञान, निर्गुण एवं सगुण, शैव और शाक्त में समन्वय स्थापित किया। ये सच्चे समन्वयवादी कवि थे। गोस्वामी तुलसी जी का काव्य जनहिताय, परहिताय एवं लोकमंगल की भावना से सम्पन्न है। इनके अनुसार शक्ति, शील एवं सौन्दर्य के प्रेतिरूप राम लोककल्याण के लिए ही अवतरित हुए हैं- “परहित सरिस धर्म नहिं भाई। परपीड़ा सम नहिं अधमाई॥” तुलसीदास की काव्य-रचनाएँ मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान ‘राम’ के लोकपावन चरित्र से परिपूर्ण हैं।

FAQs. गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन से जुड़े प्रश्न उत्तर

1. तुलसीदास जी का जीवन परिचय कैसे लिखा जाता है.

जीवन-परिचय — गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म सन् 1532 ई० (भाद्रपद, शुक्ल पक्ष, एकादशी, सं० 1589 वि०) में बाँदा जिले के राजापुर ग्राम में हुआ था। कुछ विद्वान् इनका जन्म एटा जिले के ‘सोरो’ ग्राम में मानते हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने राजापुर का ही समर्थन किया है। तुलसी सरयूपारीण ब्राह्मण थे। इनके पिता आत्माराम दुबे और माता हुलसी ने अभुक्त मूल नक्षत्र में उत्पन्न होने के कारण इन्हें त्याग दिया था। इनका बचपन अनेकानेक आपदाओं के बीच व्यतीत हुआ। सौभाग्य से इनको बाबा नरहरिदास जैसे गुरु का वरदहस्त प्राप्त हो गया। इन्हीं की कृपा से इनको शास्त्रों के अध्ययन-अनुशीलन का अवसर मिला। स्वामी जी के साथ ही ये काशी आये थे, जहाँ परम विद्वान् महात्मा शेष सनातन जी ने इन्हें वेद-वेदांग, दर्शन, इतिहास, पुराण आदि में निष्णात कर दिया। तुलसी का विवाह दीनबन्धु पाठक की सुन्दर और विदुषी कन्या रत्नावली से हुआ था। इन्हें अपनी रूपवती पत्नी से अत्यधिक प्रेम था। एक बार पत्नी द्वारा बिना कहे मायके चले जाने पर अर्द्धरात्रि में आँधी-तूफान का सामना करते हुए ये अपनी ससुराल जा पहुँचे। इस पर पत्नी ने इनकी भर्त्सना की— अस्थि चर्म मय देह मम, तामें ऐसी प्रीति । तैसी जो श्रीराम महँ, होति न तौ भवभीति ॥ अपनी पत्नी की फटकार से तुलसी को वैराग्य हो गया। अनेक तीर्थों का भ्रमण करते हुए ये राम के पवित्र चरित्र का गायन करने लगे। अपनी अधिकांश रचनाएँ इन्होंने चित्रकूट, काशी और अयोध्या में ही लिखी हैं। काशी के असी घाट पर सन् 1623 ई० (श्रावण, शुक्ल पक्ष, सप्तमी, सं०1680 वि०) में इनकी पार्थिव लीला का संवरण हुआ। इनकी मृत्यु के सम्बन्ध में निम्नलिखित दोहा प्रसिद्ध है— संवत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर । श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यो शरीर ॥

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2. तुलसीदास की 12 रचनाएं कौन कौन सी है?

तुलसीदास जी द्वारा रचित 12 ग्रन्थ प्रामाणिक माने जाते हैं, जिनमें श्रीरामचरितमानस प्रमुख है। ये निम्नलिखित हैं— (1) श्रीरामचरितमानस, (2) विनयपत्रिका, (3) कवितावली, (4) गीतावली, (5) कृष्ण गीतावली, (6) बरवै रामायण, (7) रामलला नहछू, (8) वैराग्य संदीपनी, (9) जानकी-मंगल , (10) पार्वती-मंगल, (11) दोहावली, (12) रामाज्ञा प्रश्न |

3. तुलसीदास का नाम रामबोला क्यों पड़ा?

जब तुलसीदास जी का जन्म हुआ तब ये पांच वर्ष के बालक मालूम होते थे, दांत सब मौजूद थे और जन्मते ही इनके मुख से ‘राम’ शब्द निकला। इसलिए इन्हें ‘रामबोला’ कहें जाने लगा था।

4. तुलसीदास कितने पढ़े लिखे थे?

बाबा नरहरिदास ने इन्हें ज्ञान एवं भक्ति की शिक्षा प्रदान की। इन्हीं की कृपा से तुलसीदास जी ने वेद-वेदांग, दर्शन, इतिहास, पुराण आदि में निष्णात हो गए थे।

5. तुलसी जी का जन्म और मृत्यु कब हुआ था?

गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म सन् 1532 ईस्वी (संवत् 1589 वि०) को उत्तर प्रदेश के बाॅंदा जिले के राजापुर नामक ग्राम में हुआ था, तथा तुलसीदास जी की मृत्यु सन् 1623 ईस्वी (संवत् 1680 वि०) को काशी के असीघाट (वाराणसी) उत्तर प्रदेश में हुई थी।

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Tulsidas – महान कवि तुलसीदास का जीवन परिचय (जीवनी)

Tulsidas – गोस्वामी तुलसीदास (हिंदी साहित्य के महान कवि और साहित्यकार) का जन्म 1511 ई० (सम्वत्- 1568 वि०) में राजापुर, कासगंज उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था। (जन्म को लेकर एक राय नहीं है ) इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे था, माता का नाम हुसली था, पत्नी रत्नावली थी। यह एक अच्छे कवि और समाजसुधारक भी थे। इनके गुरु का नाम आचार्य रामानंद था। यह हिन्दू धर्म से तालुक रखते थे, गोस्वामी तुलसीदास भक्तिकाल के कवि कहें जाते है।

तुलसीदास (Goswami Tulsidas) की प्रमुख रचनाएं – रामचरितमानस, दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा आदि

Tulsidas Biography in Hindi – संछिप्त परिचय

tulsidas

नाम – गोस्वामी तुलसीदास जन्म – सन 1532 or 1511 (संवत – 1589), राजापुर, उत्तर प्रदेश पिता का नाम – आत्माराम दुबे माता का नाम – हुलसी पत्नी का नाम – रत्नावली कार्यक्षेत्र – कवि, समाज सुधारक मृत्यु – सन 1623 (संवत- 1680), काशी कर्मभूमि – बनारस (वाराणसी) काल – भक्ति काल विधा – कविता, दोहा, चौपाई विषय – सगुण भक्ति भाषा का ज्ञान – संस्कृत, अवधी, हिंदी

Tulsidas ka Jivan Parichay – तुलसीदास का बचपन –

कहा जाता है की भगवान शिव की प्रेरणा से प्रभावित होकर रामशैल पर रहने वाले श्री अनन्तानन्द जी महाराज के प्रिय चेले श्रीनरहर्यानन्द जी (नरहरि बाबा) ने रामबोला नाम से चर्चित तुलसीदास को बचपन में खोज निकाला था। उसके बाद उन्हीं लोगों ने मिलकर रामबोला को तुलसीदास बना दिया यानि उनका नाम तुलसीदास रखा गया। उसके बाद उन गुरुओं ने तुलसीदास को अयोध्या ले गए जहां माघ शुक्ला पंचमी (शुक्रवार) को उसका यज्ञोपवीत-संस्कार सम्पन्न कराया। संस्कार के समय तुलसीजी ने बिना बताएं गायत्री मंत्र जप डाला था। जिसको देखकर वहां बैठे सभी लोग आश्चर्य में पड़ गए थे।

तुलसीदास के जन्म को लेकर बिद्वानों में कई तरह की भ्रांतियाँ है , कुछ लोग इनके जन्म के बारे में कहते है की इनका जन्म 1497 ई./ 1511 ई./ या 1532 ई. में श्रावण मास के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था. जबकि इनकी मृत्यु को लेकर सबके मत एक जैसे है। उनकी मृत्यु 1623 ई. में हुई थी, ऐसा माना जाता है की तुलसीदास की मृत्यु 1623 ई. में हुई थी।

Tulsidas ke dohe – तुलसीदास के दोहे

चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर। तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥

अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति ! नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?

प्रेम पाट पटडोरि गौरि-हर-गुन मनि। मंगल हार रचेउ कवि मति मृगलोचनि।।

तुलसीदास  के सर्वाधिक लोकप्रिय रचनाएँ व ग्रन्थ

तुलसीदास ने अपने जीवनकाल में इतनी प्रमुख रचनाएँ और ग्रन्थ लिखे है जिसमे रामचरितमानस तुलसीदास जी का सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रन्थ रहा है। गुरुस्वामी तुलसीदास की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार है।

  • रामचरितमानस
  • हनुमान चालीसा
  • छप्पय रामायण
  • वैराग्य-संदीपनी
  • बरवै रामायण
  • पार्वती-मंगल
  • रामाज्ञाप्रश्न
  • श्रीकृष्ण-गीतावली
  • विनय-पत्रिका
  • छंदावली रामायण
  • कुंडलिया रामायण
  • करखा रामायण
  • रोला रामायण
  • कवित्त रामायण
  • कलिधर्माधर्म निरूपण

तुलसी के मानस के पूर्व वाल्मीकि रामायण की कथा ही लोक प्रचलित थी। काशी के पंडितों से मानस को लेकर तुलसीदास का मतभेद और मानस की प्रति पर विश्वनाथ का हस्ताक्षर संबंधी जनश्रुति प्रसिद्ध है।

रामचरितमानस की रचना – (संवत्‌ 1631)

संवत्‌ 1631 में रामनवमी के दिन त्रेतायुग में राम-जन्म दिन प्रातःकाल तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की। दो वर्ष, सात महीने और छ्ब्बीस दिन में यह अद्भुत ग्रन्थ तुलसीदास के द्वारा सम्पन्न हुआ। संवत्‌ 1633 के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम-विवाह के दिन सातों काण्ड पूर्ण हो गये, बताया जाता है की इसके बाद भगवान् की आज्ञा से तुलसीदास काशी चले गए। काशी पहुंचने के बाद तुलसीदास ने भगवान विश्वनाथ और माता अन्नपूर्णा को श्रीरामचरितमानस सुनाया। रात को पुस्तक विश्वनाथ-मन्दिर में रखकर सो गए, प्रात:काल जब मन्दिर के पट खोले गये तो पुस्तक पर लिखा हुआ पाया गया-सत्यं शिवं सुन्दरम्‌ जिसके नीचे भगवान शंकर की सही (पुष्टि) थी। उस समय वहाँ उपस्थित लोगों ने “सत्यं शिवं सुन्दरम्‌” की आवाज भी कानों से सुनी।

ये सब चमत्कारी बातें होने और देखने के बाद काशी के सभी साधु संतों में तुलसीदास के प्रति ईर्ष्या की भावना उत्पन होने लगी, सभी साधु दल बनाकर तुलसीदास की निंदा पर उतर आये थे कहा जाता है की वो लोग तुलसीदास की किताब रामचरितमानस को चुराना चाहते थे उसके लिए उनलोगों ने तुलसीदास की कुटिया में किताब चोरी करवाने का भी प्रयास किया था।

बाद में जब चोरों ने तुलसीदास को देखा तो उनके मन और बुद्धि में परिवर्तन आ गया और वो लोग उसी दिन से चोरी करना छोड़ दिए। और भगवान् के भजन कीर्तन में अपना मन लगाने लगे।

Tulsidas से जुडी रोचक जानकारी –

  • तुलसीदास एक रामभक्त, कवि, तथा एक समाज सुधारक, तीनों रूपों में एक साथ मान्य है।
  • Tulsidas Jayanti हर साल 20 जुलाई को होती है।
  • Tulsidas ke pad ? कवि, समाज सुधारक
  • Tulsidas Ramcharitmanas की रचना संवत्‌ 1631 में की गयी थी।
  • तुलसीदास जी की हस्तलिपि अत्यधिक सुन्दर थी।
  • बताया जाता है की तुलसीदास के गावं में आज भी श्रीरामचरितमानस के अयोध्याकाण्ड की एक प्रति सुरक्षित रखी हुई है।

इनको भी पढ़ें –

देवकीनंदन ठाकुर महाराज

योग गुरु बाबा रामदेव जी की जीवनी

Tulsidas in Hindi – तुलसीदास का जीवन परिचय (जीवनी) आपको कैसी लगी ?

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